हैदराबाद : राजनीति में मुद्दे किसी के लिए फायदेमंद होते हैं तो किसी के लिए नुकसानदेह साबित होते हैं. फिर भी राजनीति इन्हीं मुद्दों के इर्द-गिर्द ही घूमती रहती है. यूपी के लखीमपुर में हुई हिंसक घटना ने उत्तर प्रदेश की सुस्त पड़ी राजनीतिक इकाईयों को वह मुद्दा दे दिया है, जिसे आगामी विधानसभा चुनाव तक बनाए रखने की जिम्मेदारी अब विपक्षी दल निभाने की कोशिश करेंगे. वहीं सत्तारूढ़ बीजेपी इस मुद्दे से अपना दामन बचाकर विपक्ष को ही कटघरे में खड़ा करने में कोई कोताही नहीं बरतेगी. दरअसल, यही चुनावी राजनीति का तकाजा भी है.
हालांकि, इन सबसे इतर इस पूरे प्रकरण में एक बार फिर प्रियंका गांधी पॉलिटिक्स में 'नाइट वॉचमैन' की भूमिका निभाती दिख रही हैं और अन्य विपक्षी दलों से आगे निकलती जा रही हैं. क्योंकि उन्होंने कांग्रेस के डूबते सूरज को फिर से चमकाने के लिए सुबह तक का इंतजार नहीं किया बल्कि रात में ही रोशनी की मशाल लेकर निकल पड़ीं. खबर लिखे जाने तक प्रियंका गांधी के सीतापुर जिले के सिंधौली पहुंचने की सूचना थी और पुलिस उन्हें जगह-जगह रोकने की असफल कोशिशें कर रही है.
आधिकारिक बयान के अनुसार तीन अक्टूबर को लखीमपुर खीरी की हिंसक घटना में चार किसानों सहित कुल आठ लोगों की मौतें हो चुकी हैं. विपक्ष ने सरकार पर बयानों से हमला बोला, ट्विटर से निशाना साधा और सियासी तीर छोड़ने के लिए चार अक्टूबर की सुबह लखीमपुर कूच का ऐलान भी किया है. हालांकि ऐसे हालातों में सरकार के लिए रात भर का वक्त काफी है कि वह अपनी तैयारियां पूरी कर ले ताकि सुबह जब नेताओं के लाव-लश्कर निकलें तो उन्हें रोका जा सके.
इतना ही नहीं इस रोकथाम में सरकार और विपक्ष को बराबर की 'फुटेज' मिल सके, इसकी व्यवस्था भी रात के वक्त में ही हो जाए. हालांकि राजनीति के इन पारंपरिक हथकंडों से अलग प्रियंका गांधी वाड्रा ने एक नई लकीर खींचने की कोशिश की है जिसे 'नजरअंदाज' तो किया जा सकता है लेकिन 'झुठलाया' नहीं जा सकता.
उभ्भा नरसंहार में क्या हुआ था
कुछ ऐसा ही प्रियंका ने उस वक्त किया था जब सोनभद्र के उभ्भा गांव में जमीन के खूनी विवाद में 11 आदिवासियों की हत्या कर दी गई थी. तब भी विपक्ष ने बयानों के कई सियासी बम फोड़े लेकिन पहाड़ी गांव की पगडंडियों को नापने का काम प्रियंका ने ही किया था. तब वाराणसी से रवाना होने के बाद प्रियंका गांधी को मिर्जापुर जिले में ही पुलिस ने रोक लिया और आगे नहीं जाने दिया गया.
शाम हो चली थी लेकिन प्रियंका जिद पर अड़ी रहीं. धीरे-धीरे रात हो गई और प्रियंका गांधी ने वहीं पर चुनार के ऐतिहासिक किले की प्राचीरों में ही रात गुजारने का फैसला किया. यह सुनकर प्रशासन के होश उड़ गए. आस-पास के जिलों से कांग्रेसी कार्यकर्ता चुनार पहुंचने लगे और वहां इतनी भीड़ जमा हो गई कि प्रशासन के हाथ-पांव फूल गए. किले में गहमागहमी बढ़ गई और गंगा की खामोश लहरें भी शोर करने लगीं.