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Friendship Day 2022: अटल दोस्ती ने देश को दी 'अटल' सौगात, रोहतांग में शान से मौजूद है दोस्ती की सुरंग

अगस्त महीने के पहले रविवार को हर साल फ्रेंडशिप डे यानी मित्रता दिवस मनाया जाता है. भारत समेत कई देश मित्रता दिवस को अपने-अपने तरीके से मनाते हैं. इस बार दोस्ती का ये खास दिन 7 अगस्त को मनाया जा रहा है. दोस्ती को समर्पित इस दिन के अवसर पर आपको एक ऐसी मित्रता के बारे में बताएंगे जिनकी मिसाल हमेशा दी जाएगी. आपको जानकर हैरानी होगी कि अटल टनल रोहतांग (Atal Tunnel Rohtang) की नींव सच्ची दोस्ती ने रखी थी. ऐसा कैसे हुआ और कौन ये दोस्त थे. जानने के लिए पढे़ं पूरी खबर...

Friendship Day 2022
Friendship Day 2022

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Published : Aug 7, 2022, 2:13 PM IST

शिमला: आज फ्रेंडशिप डे है. फ्रेंडशिप यानी दोस्ती. दोस्ती में अकसर एक-दूसरे को तोहफे दिए जाते हैं, लेकिन यहां हम एक ऐसी मित्रता की मिसाल पर बात करेंगे जिसमें एक मित्र ने ऐसा तोहफा दिया कि पूरा भारत वर्ष आज भी उसे याद कर रहा है. दो लोगों की दोस्ती में यदि एक मित्र देश का मुखिया बन जाए तो तोहफा खुद-ब-खुद बड़ा हो जाता है. पूर्व प्रधानमंत्री अटल अटल बिहारी वाजपेयी और टशी दावा की दोस्ती की ये मिसाल आज अटल टनल रोहतांग के रूप में हम सब के सामने मौजूद है.

दोस्ती की सच्ची नींव है अटल टनल:जी हां, अटल टनल रोहतांग की नींव सच्ची दोस्ती ने रखी है. पुरातन महादेश भारत के महान नेताओं में से एक पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने किशोरावस्था के मित्र टशी दावा के (Tashi Dawa and Atal Bihari Vajpayee friendship) मांगने पर एक ऐसा तोहफा दिया था, जो अब देश के लिए वरदान साबित हो रहा है. ये तोहफा रोहतांग टनल के रूप में है. रोहतांग टनल इस समय देश के लिए वरदान साबित हो रही है. न केवल भारतीय सेना के लिए इसका महत्व है, बल्कि ये भारी बर्फबारी के दौरान भी लाहौल को देश के अन्य हिस्सों से साल भर जोड़े रखती है.

पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के साथ चर्चा करते उनके दोस्त टशी दावा. (फाइल फोटो).

आरएसएस शिविर में हुई थी दोस्ती:आजादी से पहले टशी दावा और अटल बिहारी वाजपेयी आरएसएस में साथ-साथ सक्रिय थे. वर्ष 1942 में संघ के एक प्रशिक्षण शिविर में दावा अटल बिहारी वाजपेयी से मिले थे. ये प्रशिक्षण शिविर गुजरात के बड़ोदरा में आयोजित हुआ था. इसी शिविर में दोनों की गहरी दोस्ती हो गई. बाद में टशी दावा को अटल बिहारी वाजपेयी से मिलने का मौका नहीं मिला.

1998 में वाजपेयी से मिलने दिल्ली पहुंचे थे दावा:टशी दावा लाहौल के ठोलंग गांव के रहने वाले थे. उनके मन में लाहौल घाटी की कठिन जिंदगी को लेकर पीड़ा थी. बर्फबारी के दौरान लाहौल घाटी छह महीने तक शेष दुनिया से कट जाती थी. जिंदगी बहुत दुश्वार थी. खासकर बीमार लोगों को स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिल पाती थी. यदि लाहौल घाटी को मनाली से सुरंग के जरिए जोड़ दिया जाए तो ये सारी समस्याएं दूर हो सकती थीं. इसी विचार को लेकर टशी दावा अपने दोस्त और तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिलने के लिए वर्ष 1998 में दिल्ली पहुंचे. टशी दावा उर्फ अर्जुन गोपाल अपने दो सहयोगियों छेरिंग दोर्जे और अभयचंद राणा को साथ लेकर दिल्ली पहुंचे.

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के हिमाचल दौरे की तस्वीर. (फाइल फोटो).

दोस्त की उपस्थिति में वाजपेयी ने किया ऐलान:टशी दावा जब वाजपेयी से मिलने दिल्ली गए थे तो अटल उन्हें पहचान नहीं पाए थे. बाद में जब परिचय हुआ तो वाजपेयी ने अपनी कुर्सी से उठकर टाशी दावा को गले लगा लिया था. उन्होंने दावा से पूछा कि यहां तक कैसे आए तो उन्होंने लाहौल का दुख सुनाया. वाजपेयी ने दावा की मांग पर तुरंत हामी भरी. दावा ने लाहौल-स्पीति एवं पांगी जनजातीय कल्याण समिति का गठन किया था. तीन साल तक इस समिति ने पीएम अटल बिहारी वाजपेयी से रोहतांग टनल बनाने को लेकर पत्राचार किया था. प्रधानमंत्री के तौर पर वाजपेयी जब 3 जून, 2000 को अपने हिमाचल दौरे पर लाहौल के मुख्यालय केलांग पहुंचे तो अपने मित्र टशी दावा की उपस्थिति में जनसभा में सुरंग निर्माण का ऐलान (Atal Tunnel Himachal) किया था.

83 वर्ष की उम्र में ली अंतिम सांस:टशी दावा उस समय 18 साल के किशोर थे, जब संघ के प्रशिक्षण शिविर में वाजपेयी से मिले थे और टशी दावा उस समय 76 साल के थे, जब टनल निर्माण की घोषणा हुई. नियति ने अटल के इस प्रिय मित्र को 2 दिसम्बर, 2007 को अंतिम बुलावा दिया. 83 वर्ष की उम्र में सांस की बीमारी से पीड़ित टशी दावा को जब इलाज के लिए गांव से कुल्लू लाया जा रहा था तो रोहतांग दर्रा पार करते समय उन्होंने प्राण त्याग दिए थे.

अटल जी का स्वागत करते हुए उनके दोस्त टशी दावा. (फाइल फोटो).

दोंनों दोस्तों के नाम पर रखा जाए सुरंग का नाम:टशी दावा और अटल बिहारी वाजपेयी की दोस्ती को सच्चा साथ मानने (Atal Tunnel Rohtang) वालों का कहना था कि रोहतांग टनल का नाम वाजपेयी के नाम पर होना चाहिए. साथ ही साउथ पोर्टल का नाम टशी दावा के नाम पर रखा जाए. लाहौल-स्पीति जनजातीय कल्याण समिति के पदाधिकारी चंद्रमोहन परशीरा के अनुसार टनल का लोकार्पण होने पर दावा के सहयोगी छेरिंग दोरजे व अभय चंद राणा का भी सम्मान होना चाहिए. ये सभी बातें पूरी हुई. रोहतांग टनल का नाम अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर अटल टनल रखा गया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था टनल का लोकार्पण: खैर, अटल टनल के लोकार्पण के समय बेशक ये दोनों दोस्त मौजूद नहीं होंगे, लेकिन उनकी दोस्ती का तोहफा देश को उनकी याद दिलाएगा. रोहतांग टनल बन जाने से भारतीय सेना की ताकत भी कई गुणा बढ़ गई है. अब साल भर चीन व पाकिस्तान की सीमा तक रसद पहुंचने में कोई बाधा नहीं होगी. अटल टनल अब सैलानियों के लिए भी नया आकर्षण है. यहां आने वाले सैलानियों की संख्या अपने आप में आश्चर्य चकित करती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका लोकार्पण किया था. ये दुनिया में सबसे ऊंची जगह पर बनी हाईवे टनल है. इसके निर्माण में 3200 करोड़ रुपए की लागत आई है.

इंजीनियरिंग की अद्भुत मिसाल है अटल टनल: दो साल पहले 3 अक्टूबर 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे देश को अर्पित किया था. दोस्ती की ये सुंरग निर्माण कार्य को लेकर इंजीनियरिंग की अद्भुत मिसाल है. साढ़े चौदह हजार मीट्रिक टन स्टील का इसके निर्माण में उपयोग हुआ है. करीब ढाई लाख मीट्रिक टन सीमेंट का प्रयोग किया गया. इसके निर्माण से देश के कुशलतम इंजीनियर जुड़े थे. करीब डेढ़ सौ इंजीनियर्स और एक हजार से अधिक श्रमिकों ने दोस्ती की इस सुरंग को साकार किया.

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