नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले सप्ताहांत यहां जी20 शिखर सम्मेलन (G20 Summit) के मौके पर जितनी भी द्विपक्षीय बैठकें कीं, उनमें उत्तरी अमेरिकी देश में हाल के दिनों में खालिस्तानी सक्रियता ( Khalistani activism in Canada) के मद्देनजर अपने कनाडाई समकक्ष जस्टिन ट्रूडो के साथ बैठक में सबसे तीखी रही.
रविवार को बैठक के बाद विदेश मंत्रालय का एक बयान जारी हुआ जिसमें कहा गया कि 'प्रधानमंत्री (मोदी) ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत-कनाडा संबंध साझा लोकतांत्रिक मूल्यों, कानून के शासन के प्रति सम्मान और लोगों के बीच मजबूत संबंधों पर आधारित हैं.'
उन्होंने कनाडा में चरमपंथी तत्वों की जारी भारत विरोधी गतिविधियों के बारे में हमारी कड़ी चिंताओं से अवगत कराया. उन्होंने कहा कि 'वे अलगाववाद को बढ़ावा दे रहे हैं और भारतीय राजनयिकों के खिलाफ हिंसा भड़का रहे हैं, राजनयिक परिसरों को नुकसान पहुंचा रहे हैं, और कनाडा में भारतीय समुदाय और उनके पूजा स्थलों को धमकी दे रहे हैं. संगठित अपराध, ड्रग सिंडिकेट और मानव तस्करी के साथ ऐसी ताकतों का गठजोड़ कनाडा के लिए भी चिंता का विषय होना चाहिए. ऐसे खतरों से निपटने के लिए दोनों देशों का सहयोग करना जरूरी है.'
मोदी ने ट्रूडो को यह भी स्पष्ट कर दिया कि, 'भारत-कनाडा संबंधों की प्रगति के लिए आपसी सम्मान और विश्वास पर आधारित संबंध आवश्यक है.' उदारवाद और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में ओटावा द्वारा खालिस्तानी समर्थक तत्वों को समर्थन देने के कारण भारत और ट्रूडो सरकार के बीच संबंध ख़राब रहे हैं.
इस साल जून में, ओंटारियो के ग्रेटर टोरंटो क्षेत्र में खालिस्तानी समर्थक समूहों द्वारा आयोजित एक परेड में एक झांकी थी जिसमें पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या को दर्शाया गया था और साथ ही एक संकेत भी था कि यह 'श्री दरबार साहिब पर हमले का बदला' था.
पिछले साल सितंबर में ओंटारियो में महात्मा गांधी की एक मूर्ति को तोड़ दिया गया था और उस पर 'खालिस्तान' शब्द लिख दिया गया था. फिर पिछले साल नवंबर में भारत में प्रतिबंधित सिख अलगाववादी समूह सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) ने ब्रैम्पटन में खालिस्तान के लिए जनमत संग्रह कराया.
भारत के विरोध के बावजूद, कनाडा की प्रतिक्रिया कमज़ोर रही है. दरअसल, ट्रूडो ने किसानों के विरोध जैसे भारत के घरेलू मुद्दों पर टिप्पणी की, जिसने आग में घी डालने का काम किया है. जून में परेड के बाद विदेश मंत्री एस जयशंकर ने खालिस्तानी चरमपंथियों को जगह मुहैया कराने के लिए कनाडा की निंदा की थी.
जयशंकर ने ये कहा था :जयशंकर ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, 'सच कहूं तो वोट-बैंक की राजनीति की आवश्यकताओं के अलावा, हम यह समझने में असमर्थ हैं कि कोई ऐसा क्यों करेगा... मुझे लगता है कि अलगाववादियों, चरमपंथियों की वकालत करने वाले लोगों को जो स्थान दिया जाता है, उसके बारे में एक बड़ा अंतर्निहित मुद्दा है हिंसा. मुझे लगता है कि यह रिश्तों के लिए अच्छा नहीं है, और कनाडा के लिए भी अच्छा नहीं है.'