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France is Burning : एक वीडियो ने पूरे फ्रांस में लगा दी 'आग', इमरजेंसी लगाने पर विचार

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Published : Jul 4, 2023, 4:18 PM IST

गत मंगलवार को फ्रांस की राजधानी पेरिस के पास 17 वर्षीय एक युवक को ट्रैफिक पुलिस ने गोली मार दी. वह बस वाली लेन में कार चलाते हुए जा रहा था. ट्रैफिक पुलिस का आरोप है कि उसने उस युवक को रूकने को कहा, लेकिन वह नहीं रूका. पुलिस ने यह भी कहा कि वह उस पर कार चढ़ाने की कोशिश कर रहा था, इसिलए उसने आत्मरक्षा में गोली चलाई. हालांकि, इस घटना का जब वीडियो सामने आया, तो पुलिस को जवाब देते हुए नहीं बन रहा था. पुलिस ने नजदीक से उस युवक को गोली मार दी थी. जानें क्या थी इसकी वजह.

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फ्रांस में नस्लवाद

नई दिल्ली : फ्रांस नस्लवाद की चिंगारी में जल रहा है. मुस्लिम समाज के एक युवक की हत्या के बाद पूरा समाज गुस्से में है. वे फ्रांस की पुलिस पर भेदभाव के आरोप लगा रहे हैं. हालांकि, पुलिस ने भेदभाव से साफ इनकार किया है. फ्रांस की क्या स्थिति है, इसका अंदाजा लगा सकते हैं कि राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉं को अपना विदेशी दौरा बीच में छोड़कर ही वापस आना पड़ा.

पेरिस के नानतेरे इलाके में यह घटना हुई. पहले तो पुलिस ने युवक पर ही आरोप लगाए. लेकिन पूरी घटना का किसी ने वीडियो बना लिया था. और जब वीडियो सोशल मीडिया पर प्रसारित किया गया, उसके बाद न सिर्फ पूरे शहर में, बल्कि फ्रांस के दूसरे हिस्सों में भी हिंसा की आग भड़क उठी. वीडियो में पुलिस को नजदीक से गोली मारते हुए देखा गया. जिस युवक की हत्या की गई, उसका नाम नाइल था. वह अल्पसंख्यक समाज से आता था.

वीडियो में देखा गया कि नाइल चेक प्वाइंट पर रूका. वहां पर दो पुलिसकर्मी थे. इसके बाद एक पुलिसकर्मी ने कहा कि अगर तुम आगे बढ़े तो तुम्हें गोली मार देंगे. दूसरे पुलिसकर्मी ने कहा, गोली मार दो इसे. तभी पहले पुलिसकर्मी ने उसे गोली मार दी. उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया, पर वहां पर उसे मृत घोषित कर दिया गया.

इस वीडियो को लेकर अल्पसंख्यक समाज में गुस्सा है. नानतेरे शहर के प्रोसेक्यूटर ने पुलिस को इस घटना के लिए जिम्मेदार ठहराया है. पुलिसकर्मी हिरासत में है.

अब आइए जानते हैं कौन था नाइल. नाइल मूल रूप से अल्जीरियाई और मोरक्कन मूल का था. उसका परिवार फ्रांस में रहता था. नाइल लोकल रग्बी टीम में खेलता था. गैर कानूनी रूप से कार चलाने को लेकर नाइल को पहले भी समन भेजा जा चुका था. नाइल का परिवार नस्लीय भेदभाव का आरोप लगा रहा है.

यह संदेश पूरे फ्रांस में आग की तरह फैल गया. फिर जहां-जहां पर अल्पसंख्यक समाज के लोग रह रहे थे, उन्होंने विरोध प्रदर्शन की शुरुआत कर दी. जगह-जगह आगजनी की घटना को अंजाम दिया जाने लगा. पत्थरबाजी हुई. बसों को जलाया गया. पोस्टर फाड़े गए. पुलिस और प्रदर्शनकारी आमने-सामने आ गए. फ्रांस के दक्षिण में स्थित तोलाउस में सबसे अधिक स्थिति खराब हो गई.

इसके अलावा मार्सिले शहर में लाइब्रेरी को जला दिया गया. 165 साल पुरानी इमारत में यह लाइब्रेरी था. गनीमत थी कि समय पर पुलिसकर्मी पहुंच गए और 10 लाख से अधिक किताबों को सुरक्षित हटा लिया गया. प्रदर्शनकारियों ने कई जगहों पर गोलीबारी की. बैंक में आगजनी की गई.

पुलिस का कहना है कि उन्होंने 3000 के करीब उपद्रवियों को गिरफ्तार किया है. 200 से ज्यादा पुलिसकर्मी घायल हो गए हैं. 40 हजार से अधिक पुलिसकर्मियों को स्थिति संभालने में लगाया गया है.

हिंसा से चिंतित सरकार अब आपातकाल लगाने पर भी विचार कर रही है. फ्रांस के गृह मंत्री ने कहा कि वह सारे विकल्पों पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं. फ्रांस में पिछले 60 सालों में चार पर इमरजेंसी लगाई जा चुकी है. पिछली बार 2005 में आपातकाल लगाया गया था. तब भी दो युवकों की मौत के बाद हिंसा भड़क गई थी.

फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रॉं को जर्मनी की यात्रा छोड़कर वापस आना पड़ा.

कहा जा रहा है कि 2015 में फ्रांस ने आतंकवादी हमले के बाद अपने कानून को सख्त किया. 2017 में आंतरिक सुरक्षा का कानून लाया गया. इस कानून में पुलिस को हथियार के प्रयोग करने में ढिलाई दी गई. कानून के मुताबिक यदि पुलिस को लगता है कि उसकी जान या फिर आम जनता की सुरक्षा खतरे में है, तो वह गोली चला सकती है.

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार जब से यह कानून बना है, तब से 25 से ज्यादा युवकों की मौत हो चुकी है, और इनमें से अधिकांश अरब या फिर अफ्रीकी मूल के थे. फ्रांस में यह धारणा भी प्रबल होती जा रही है कि जब भी सर्च अभियान पुलिस चलाती है, तो श्वेतों के बजाए अश्वेतों को ज्यादा परेशान किया जाता है.

इस तरह के भेदभाव की घटना को लेकर जब काफी आलोचना हुई, तो फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रॉं ने 2020 में खुद इसे स्वीकार किया था. राष्ट्रपति ने कहा था कि हो सकता है कि पुलिस ऐसा करती हो. इसके बाद पुलिसकर्मी काफी 'खिन्न' हो गए थे.

विश्लेषक मानते हैं कि इस्लामी कट्टरता से फ्रांस परेशान है. इसलिए फ्रांस चाहता है कि वहां पर रह रहे मुस्लिम मदरसा शिक्षा पर जोर न दें, बल्कि आधुनिकता को स्वीकार करें. फ्रांस में 10 फीसदी के आसपास मुस्लिम आबादी है. पेरिस में 15 फीसदी, मार्से में 20 फीसदी और मोपैलियो में 26 फीसदी तक मुस्लिम रहते हैं.

राष्ट्रपति मैक्रॉं खुद दबाव में हैं. उन पर वामपंथी और दक्षिणपंथी, दोनों हमले कर रहे हैं. दक्षिणपंथियों की चाहत है कि मैक्रॉं को और अधिक सख्त कदम उठाने चाहिए, जबकि वामपंथियों का आरोप है कि वर्तमान सरकार अल्पसंख्यकों पर जुल्म ढहा रही है, उनका ये भी मानना है कि अल्पसंख्यक समाज को जानबूझकर गरीब रखा जा रहा है और उनकी उपेक्षा की जा रही है.

बीबीसी के अनुसार यूएन ने खुद फ्रांस के सुरक्षा बलों पर 'सिस्टमैटिक ढंग' से नस्लवाद का आरोप लगाया है. वैसे, फ्रांस की एलिट पुलिस फोर्स एसपीजी यूनिट के जनरल सेक्रेटरी इन आरोपों से इनकार करते रहे हैं.

कुछ दिनों पहले भी फ्रांस में बड़े प्रदर्शन हुए थे. पेंशन से जुड़े नियमों को लेकर काफी उग्र प्रदर्शन हुए थे. उसके बाद रिटायरमेंट की उम्र 62 से 64 करने पर भी लोगों में नाराजगी थी, और विरोध हुआ था. ऊपर से यूक्रेन युद्ध की वजह से महंगाई ने जनता को परेशान कर रखा है.

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