लखनऊ : राजकीय बाल गृह (प्राग नारायण रोड) की अंतरा, लक्ष्मी, आयुषी व दीपा की मौत हो चुकी है, जबकि मून का इलाज चल रहा है. बालगृह की जांच के लिए पहुंची सीएमओ की टीम का दावा है कि मासूमों को ठंड से बचाने के पर्याप्त इंतजाम नहीं थे. दिसंबर-जनवरी में उचित देखभाल न होने से बच्चे ठंड की चपेट में आ गए और उन्हें निमोनिया हो गया. सिविल अस्पताल प्रशासन का भी कहना है कि 'बच्चे गंभीर हालत में लाए गए थे.' डीपीओ विकास सिंह ने पोस्टमार्टम करवाने के साथ मजिस्ट्रेटी जांच का आदेश दिया है. इसके साथ ही बालगृह अधीक्षक को कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए तत्काल रिपोर्ट मांगी गई है. बालगृह की व्यवस्थाओं की निगरानी के लिए दिनेश रावत को प्रभारी बनाया गया है. मामले में बालगृह प्रबंधन का कहना है कि 'बच्चियां गंभीर हालत में शिशु गृह लाई गई थीं.'
बालगृह की चार बच्चों की मौत का कारण निमोनिया बना है. सिविल अस्पताल में इलाज के दौरान इनमें से एक ने मंगलवार को दम तोड़ा. तीन अन्य की मौत 10 से 12 फरवरी के बीच हुई. सिविल अस्पताल में भर्ती एक बच्चे की हालत गंभीर बनी हुई है. जिसका इलाज अभी चल रहा है. सिविल अस्पताल के सीएमएस डॉ. आरपी सिंह का कहना है कि 'बच्चे गंभीर हालत में अस्पताल लाए गए थे. दो की हालत बेहद नाजुक थी, जिन्हें केजीएमयू भेजा गया था. अभी एक बच्चा भर्ती है. डॉक्टरों की टीम उस पर लगातार नजर बनाए है. इलाज में किसी तरह की कोताही नहीं हुई है.'
डीपीओ ने बालगृह अधीक्षक किंशुक त्रिपाठी को कारण बताओ नोटिस जारी कर बृहस्पतिवार सुबह तक जवाब मांगा गया है. मजिस्ट्रेटी जांच के भी आदेश दे दिए गए हैं. डीपीओ ने कहा कि 'इलाज के स्तर पर बालगृह से लापरवाही नहीं हुई है. बच्चों के बीमार होने पर उन्हें तत्काल अस्पताल पहुंचाकर इलाज करवाया गया. हालांकि, बच्चे क्यों नहीं बच पा रहे हैं, यह तो डॉक्टर ही बता सकेंगे. फिर भी बालगृह में किस स्तर पर लापरवाही हुई है, इसकी जांच कर दोषियों पर कार्रवाई होगी.' इसके अलावा राज्य बाल अधिकार आयोग की सदस्य अनिता अग्रवाल बालगृह पहुंचीं. उन्होंने अधीक्षक को फटकार लगाई और सूचना न देने पर जवाब तलब किया. उनके साथ बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) के अध्यक्ष रवीन्द्र जादौन भी निरीक्षण के लिए पहुंचे थे. इसके बाद टीमें अस्पताल भी गईं. पदाधिकारियों का आरोप था कि बालगृह से बच्चों की हालत गंभीर होने की ये सूचना ही नहीं दी गई. अनिता ने कहा कि 'हम अस्पताल की ओर से दिए गए इलाज की भी जांच करवाएंगे.'
यह है पूरा मामला :बालगृह में जब अंतरा को लाया गया था, तब वह 10-15 दिन की थी. उसकी मौत 10 फरवरी को हुई. इससे पहले वह 19 से 28 जनवरी तक भर्ती थी. डिस्चार्ज होकर आने के बाद तबीयत बिगड़ने पर उसे फिर भर्ती कराया गया था, वहीं दिसंबर में बालगृह लाई गई करीब 15 दिन की लक्ष्मी की तभी से तबीयत खराब चल रही थी. इस बीच उसका इलाज होता रहा. 23 जनवरी को दोबारा बुखार आने पर सिविल अस्पताल में भर्ती कराया गया. 11 फरवरी को इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई. आयुषी भी दिसंबर में लाई गई थी, तब वह 16 दिन की थी. वजन कम होने पर उसे केजीएमयू और सिविल अस्पताल में दिखाया गया. आठ फरवरी की सुबह डॉक्टर ने फिर उसकी जांच की, रात को तबीयत बिगड़ने पर अस्पताल में भर्ती कराया गया. उसे सांस लेने में तकलीफ हो रही थी. 12 फरवरी को उसने दम तोड़ दिया. इसी तरह दिसंबर में जब दीपा लाई गई, तब वह 20 दिन की थी. उसे निमोनिया था. इस बीच थैलेसीमिया होने का भी पता चला. कई बार उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया. 23 जनवरी को बुखार आने के बाद एडमिट कराया गया. मंगलवार को उसकी भी मौत हो गई, वहीं चार-पांच दिन पहले आए डेढ़ महीने के बच्चे मून की बोनमैरो जांच करवाई गई है. उसकी प्लेटलेट्स लगातार कम हो रही हैं. फिलहाल वह सिविल अस्पताल में भर्ती है.
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