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कांग्रेस से इस्तीफा देकर टीएमसी में शामिल हुईं सुष्मिता देव, जानें इसके मायने

चार दशकों से जो परिवार कांग्रेस का हमसफर रहा वह अचानक एक ही झटके में दूर हो गया. कांग्रेस के लिए पूर्व सांसद सुष्मिता देव का इस्तीफा दोहरा झटका इसलिए है क्योंकि उन्होंने पार्टी छोड़ने के चंद घंटे बाद ही टीएमसी का दामन थाम लिया. यह विपक्षी दलों को एक छतरी के नीचे लाने की कांग्रेसी कवायद के लिए भी झटका है. साथ ही ममता बनर्जी की राष्ट्रीय राजनीति पर उभरने की पहल को मजबूत बनाता है. एक रिपोर्ट.

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Published : Aug 16, 2021, 2:57 PM IST

Updated : Aug 16, 2021, 5:58 PM IST

कोलकाता : बंगाल-असम के बड़े राजनैतिक घराने से ताल्लुक रखने वाली सुष्मिता देव कांग्रेस छोड़कर अब टीएमसी की नेता हो चुकी हैं. उन्होंने कांग्रेस छोड़ने के कुछ ही घंटे बाद टीएमसी का दामन थाम लिया जिसने कांग्रेस के भीतर ही कई सवाल खड़े कर दिए हैं. इन सवालों का जवाब ढूंढना कांग्रेस नेतृत्व के लिए भी मुश्किल भरा दिखाई दे रहा है.

सुष्मिता टीएमसी नेता अभिषेक बनर्जी और डेरेक ओ ब्रायन की उपस्थिति में वे टीएमसी में शामिल हो गईं. उनके इस कदम पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने पार्टी नेतृत्व पर सवाल दागते हुए ट्विट किया कि यह आंखे खोलने का समय है. कांग्रेस का तथाकथित युवा नेतृत्व हर गलती का ठीकरा पुराने नेताओं पर फोड़ता है. उस सभी के लिए सुष्मिता का इस्तीफा सबक की तरह है. कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने भी ट्वीट किया कि अगर यह सच है तो यह सबसे दुर्भाग्यपूर्ण है. उन्होंने सवाल किया कि क्यों? आप इस संक्षिप्त पत्र से बेहतर स्पष्टीकरण की पात्र हैं?

क्या हैं इसके राजनैतिक मायने

हाल ही कई विपक्षी दलों ने भाजपा को घेरने के लिए एक मजबूत गठबंधन बनाने की पहल की. टीएमसी नेता व बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चार दिनों तक दिल्ली में डेरा जमाए रखा और कई दलों के नेताओं से मिलीं. उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी व राहुल गांधी से भी मुलाकात की थी. तब कई कांग्रेसी नेता यह कहते सुने गए कि सभी दलों को कांग्रेस के नेतृत्व में एक होना चाहिए.

हालांकि अन्य नेताओं ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. सुष्मिता का कांग्रेस छोड़कर टीएमसी में जाना इस बात का संकेत है कि ममता बनर्जी राष्ट्रीय स्तर किसी दल की अधीनता स्वीकार नहीं करेंगी और वे खुद अपने झंडे तले सबको एकजुट करने के मिशन पर हैं. हालिया बयान और सुष्मिता प्रकरण से यह भी साफ है कि अब कांग्रेस भी उनसे परहेज कर सकती है क्योंकि टीएमसी ने परोक्ष रुप से उनके सबसे भरोसेमंद नेता को अपने पाले में शामिल कर लिया है. यह तीसरे मोर्चे व गठबंधन के लिए झटका है.

इस वजह से छोड़ी पार्टी

राजनैतिक सूत्रों का कहना है कि वे कुछ महीनों से कांग्रेस नेतृत्व से नाखुश थीं, खासकर अप्रैल-मई में असम चुनाव में एआईयूडीएफ के साथ गठजोड़ करने के फैसले को लेकर. चुनाव में उम्मीदवारों की पसंद को लेकर भी राज्य कांग्रेस नेतृत्व से भी उनकी असहमति थी. सच तो यह है कि उन्होंने बीते मार्च में ही अपना पद लगभग छोड़ दिया था लेकिन सोनिया गांधी ने उन्हें रहने के लिए मना लिया था. हालांकि वे ज्यादा दिनों तक खुद को नहीं रोक पाईं और इस्तीफा देकर ममता बनर्जी की पार्टी में शामिल हो गईं.

पूर्व सांसद सुष्मिता देव

बता दें कि सुष्मिता देव असम बंगाल के बड़े नेता संतोष मोहन देव की बेटी हैं. सुष्मिता देव असम की सिल्चर सीट से सांसद भी चुनी गई थीं. वे बंगालियों के वर्चस्व वाले असम के बराक घाटी क्षेत्र में पार्टी की शीर्ष नेता थीं. राजनैतिक विश्लेषकों की मानें तो सीएए या नागरिकता संशोधन अधिनियम और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) पर अपनी पार्टी के साथ थी, जिसका नुकसान कांग्रेस को हुआ क्योंकि बराक घाटी में सीएए पर हिंदुओं का मजबूत समर्थन रहा था.

हाल ही में बराक घाटी सहित अन्य क्षेत्रों में असम-मिजोरम सीमा संघर्ष पर कांग्रेस ने जिस तरह से राजनीतिक प्रतिक्रिया दी, वह उन्हें पार्टी छोड़ने का बड़ा कारण बन गया. दरअसल, सुष्मिता देव को असम-मिजोरम मसले पर कांग्रेस की ओर से तीखी प्रतिक्रिया की दरकार थी जो कि नहीं मिली.

आजादी के बाद से ही राजनीति में परिवार

टीएमसी में शामिल हुईं सुष्मिता देव का परिवार आजादी के बाद से ही राजनीति में शामिल रहा है. बीच के कुछ वर्षों को छोड़ दें तो इस परिवार के सदस्य 1952 से ही चुनाव जीतते रहे हैं चाहे वह नगर पालिका की सीट हो, विधानसभा या लोकसभा सीट हो. असम के दूसरे सबसे बड़े शहर सिलचर में देव परिवार के लिए चुनाव महज औपचारिकता भर है. इस परिवार की राजनीतिक यात्रा भारत के स्वतंत्रता संग्राम में स्वतंत्रता सेनानी सतींद्र मोहन देव के साथ शुरू हुई, जिन्होंने बाद में राज्य में मंत्री के रूप में कार्य किया.

बाद में उनके बेटे संतोष मोहन देव ने भी इसका अनुसरण किया. संतोष मोहन देव सिलचर से 1980 में पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए. वे 1986 से 1988 तक केंद्रीय पर्यटन और संचार राज्य मंत्री थे और उसके बाद एक साल तक केंद्रीय गृह राज्य मंत्री का पद संभाला. 1991 में वे केंद्रीय इस्पात राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) भी थे. जिसके पहले वे एक वर्ष के लिए लोक लेखा समिति के अध्यक्ष थे.

वहीं सुष्मिता देव 2009 से सक्रिय राजनीति में हैं. पेशे से वकील सुष्मिता टेम्स वैली यूनिवर्सिटी लंदन और किंग्स कॉलेज लंदन यूनिवर्सिटी की पूर्व छात्रा हैं. उन्होंने 2009 में सफलतापूर्वक नगर पालिका चुनाव लड़कर सक्रिय राजनीति में कदम रखा और 2011 में विधानसभा चुनाव लड़ा और विधायक बनीं. फिर 2014 के लोकसभा चुनाव में सुष्मिता देव ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीता.

इस्तीफे से पहले तक समर्थन

हाल ही में कांग्रेस नेता राहुल गांधी का ट्विटर हैंडल लॉक हो गया था. तब भी सुष्मिता उन नेताओं में शामिल रहीं जिन्होंने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर राहुल गांधी की तस्वीर लगाकर अपने सांसद का समर्थन किया था. लेकिन उन्होंने अचानक इस्तीफा देकर सबको हैरान कर दिया. इससे पहले महिला कांग्रेस की अध्यक्ष रह चुकीं और कांग्रेस की पूर्व सांसद सुष्मिता देव ने पार्टी सोमवार को ही कांग्रेस छोड़ने का ऐलान किया था. उन्होंने अपने इस्तीफे में लिखा कि वह कांग्रेस की सदस्यता छोड़ रही हैं. आगे लिखा है कि करीब तीस साल कांग्रेस पार्टी के साथ काम करना उनके लिए यादगार रहा. उन्होंने आगे लिखा है कि वह जन कल्याण में आगे का अपना वक्त लगाना चाहती हैं.

यह भी पढ़ें-पूर्व कांग्रेस सांसद सुष्मिता देव ने दिया इस्तीफा, सिब्बल और सुरजेवाला ने दी सफाई

Last Updated : Aug 16, 2021, 5:58 PM IST

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