Chandrayaan 3 : 'चांद के दुर्गम इलाके में विक्रम की सॉफ्ट लैंडिंग के सामने हैं कई चुनौतियां' - भारत मिशन मून
चंद्रमा का दक्षिण ध्रुव क्षेत्र दुर्गम भाग है. उस अज्ञात अंधेरे भूभाग पर सॉफ्ट लैंडिंग के लिए कई चुनौतियां हैं. रूस के लूना-25 के दक्षिणी ध्रुव पर दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद सभी की निगाहें चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर पर हैं. इसरो के पूर्व वैज्ञानिक और चंद्रयान-1 के परियोजना निदेशक मयिलसामी अन्नादुरई (Mylswamy Annadurai) ने खास बातचीत में आगे आने वाली बड़ी चुनौतियों के बारे में बताया.
चेन्नई: एक अरब लोगों की आशाओं को लेकर विक्रम लैंडर, प्रज्ञान रोवर के साथ, 23 अगस्त को चंद्रमा पर उतरने के लिए तैयार है. आइए मयिलसामी अन्नादुरई (Mylswamy Annadurai) से जानते हैं कि आगे चुनौतियां क्या हैं?
सवाल :माना कि चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग एक कठिन कार्य है. दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र में उतरने में किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है?
जवाब : दक्षिणी ध्रुव पर किसी जांच तक पहुंचने और उसे उतारने के लिए चंद्रमा की ध्रुवीय कक्षा तक पहुंचना एक कठिन काम है. यह केवल दोषरहित सटीक आर्बिट कुशलता (flawless accurate orbital manoeuvre) से ही संभव है. फिर भी यह पर्याप्त नहीं है क्योंकि यह इलाका दुर्गम है, यहां 9 किमी तक ऊंची पहाड़ियां, चट्टानें और गहरे गड्ढे हैं.
ऐसे में, वांछित प्रयोगों को अंजाम देने के लिए काफी बड़े मैदान पर उतरना आवश्यक है. फिलहाल हमारे पास चंद्रमा की सतह की 30 सेमी सटीकता है और लैंडिंग स्थल का पता लगाने के लिए हम विक्रम द्वारा भेजी गई तस्वीरों पर निर्भर हैं.
सवाल : जबकि इसरो ने चंद्रमा और मंगल की कक्षा में यान भेजे हैं, चंद्रमा की सतह पर उतरने में क्या कठिनाइयां हैं?
जवाब : सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण, हमें बेहतर समझ के लिए चंद्रमा की एक पूरी तस्वीर की आवश्यकता है, जिसमें उसके ध्रुवीय क्षेत्रों की तस्वीर भी शामिल है. यह केवल ध्रुवीय कक्षा पर एक जांच/मॉड्यूल होने से ही प्राप्त किया जा सकता है. संयुक्त राज्य अमेरिका और यूएसएसआर/रूस के सभी मिशन भूमध्यरेखीय क्षेत्र तक ही सीमित थे, जहां चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों के विपरीत प्रचुर मात्रा में सूरज की रोशनी होती है.
चांद की सतह पर लैंडिंग के लिए लैंडर की स्पीड कम करनी पड़ेगी. यह हाई स्पीड के साथ चंद्रमा की परिक्रमा करता है और एक बार जब यह कम हो जाती है, तो यह चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण खिंचाव के अधीन हो जाता है. इसलिए, इसे संतुलित करना और इस पर काबू पाना एक बड़ी चुनौती है. गूगल मैप के युग में हवाईअड्डे पर विमान उतारने के लिए भी बहुत प्रयास और तकनीकी सहायता की आवश्यकता होती है. 3.85 लाख किमी दूर चंद्रमा पर एक अज्ञात सतह पर एक जांच को उतारना इतना आसान नहीं है, क्योंकि अंतरिक्ष मिशन बेहद कठिन हैं.
अगर लैंडर किसी खास स्थान पर नहीं उतर पाता या उसका ईंधन खत्म हो जाता है या बैटरी खत्म हो जाती है तो स्थिति और भी चुनौतीपूर्ण हो जाती है. सुरक्षित सॉफ्ट लैंडिंग के लिए इन सभी को ध्यान में रखा गया है.
सवाल :लैंडिंग के लिए दक्षिणी ध्रुव को ही क्यों चुना गया है? भारत और कई देश उस क्षेत्र में अधिक रुचि क्यों दिखा रहे हैं?
जवाब : जैसा कि पहले कहा गया है, चंद्रमा की कोई भी खोज उसके ध्रुवीय क्षेत्रों के अध्ययन के बिना अधूरी है. चूंकि संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस के पिछले 60 या उससे अधिक मिशन भूमध्यरेखीय क्षेत्र पर केंद्रित थे, इसलिए चंद्रयान 1 को अलग तरह से डिजाइन किया गया था. इसका परिणाम चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पानी की खोज से के रूप में मिला. पानी नीचे जमी हुई बर्फ के रूप में और सतह पर फैले हुए कणों के रूप में है. यह हमारे लिए श्रेय की बात है कि चंद्रयान सबसे पहले आया. भविष्य में यदि हमें चंद्रमा से कुछ लाना हो तो हमें पानी की आवश्यकता होगी. इसलिए, हमारा शोध दूसरों के अलावा जल संसाधनों की ओर निर्देशित है.
सवाल: क्या प्रोपल्शन मॉड्यूल एक ऑर्बिटर के रूप में कार्य करेगा? SHAPE (स्पेक्ट्रो-पोलारिमेट्री ऑफ़ हैबिटेबल प्लैनेटरी अर्थ) का क्या महत्व है? चंद्रयान 2 ऑर्बिटर चंद्रयान 3 मिशन में कैसे मदद कर रहा है?
जवाब : प्रणोदन मॉड्यूल में कई वर्षों तक चलने के लिए पर्याप्त ईंधन है. इसमें SHAPE है जो चंद्रमा से पृथ्वी का अध्ययन करेगा और सौर मंडल से परे एक्सोप्लैनेट की भी खोज करेगा. बाह्य अंतरिक्ष से पृथ्वी के अध्ययन से इसमें मदद मिलेगी. चंद्रयान 2 ऑर्बिटर रोवर से प्राप्त संकेतों को ग्राउंड स्टेशन तक भेजने में रिले की भूमिका निभा रहा है.