लखनऊः गिरफ्तारी के दौरान खुद को पूर्व वरिष्ठ आइपीएस बताकर धमकी देने व सरकारी कार्य में बाधा डालने आदि के एक आपराधिक मामले में मंगलवार को अदालत ने अभियुक्त अमिताभ ठाकुर को 25 अक्टूबर तक के लिए न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया है. सीजेएम रवि कुमार गुप्ता ने यह फैसला सुनाया है. उन्होंने ये आदेश इस मामले के विवेचक और एसआई अरुण कुमार मिश्रा की अर्जी को मंजूर करते हुए दिया. कोर्ट ने अमिताभ ठाकुर की अर्जी को खारिज कर दिया है.
विवेचक की इस अर्जी पर सुनवाई के दौरान अमिताभ ठाकुर जेल से अदालत में उपस्थित हुए. उन्होंने स्वयं बहस करते हुए विवेचक की अर्जी का विरोध किया. उन्होंने कहा कि न्यायिक रिमांड मांगने का एक मात्र उद्देश्य उनका शोषण और उत्पीड़न करना है. जबकि इस मामले में न तो कोई साक्ष्य है और न ही कोई तथ्य ही मौजूद है. यह एफआईआर झूठी है. उन्होंने कई निर्णयों का हवाला देते हुए यह भी कहा कि सिर्फ रुटीन ढंग से नहीं, बल्कि न्यायिक मस्तिष्क का प्रयोग करते हुए ही रिमांड दिया जा सकता है. अगर विवेचक को ऐसा लगता है, कि इस मामले में पर्याप्त साक्ष्य है, तो उन्हें आरोप पत्र प्रेषित करना चाहिए था, लेकिन इसके विपरीत पूर्णतया अस्पष्ट और मनमाना कारण रिमांड देने का आधार नहीं हो सकता. सिर्फ उनकी स्वतंत्रता को बाधित करने के लिए विधि के खिलाफ यह अर्जी दी गई है.
जबकि इससे पूर्व विवेचक का कहना था कि बीते 27 अगस्त को इस मामले की नामजद एफआईआर एसआई धनंजय सिंह ने थाना गोमतीनगर में आईपीसी की धारा 186, 189, 224, 323, 353 व 427 में दर्ज कराई थी. जिसके मुताबिक उस रोज एक आपराधिक मामले में अमिताभ ठाकुर को गिरफ्तारी देने को कहा गया. लेकिन वह अपने को पूर्व आईपीएस बताकर धमकी देने लगे और गिरफ्तारी देने से इंकार किया. लेकिन जब पुलिस द्वारा गिरफ्तारी का प्रयास किया गया, तो वह और उनकी पत्नी पुलिस कर्मचारियों पर हमलावर हो गए. कुछ पुलिस कर्मचारियों को आंशिक चोट भी आई. इनके द्वारा सरकारी कार्य में बाधा पहुंचाने से असहज स्थिति पैदा हो गई. विवेचक का कहना था कि इस मुकदमे की विवेचना के लिए मुल्जिम को न्यायिक रिमांड में लिया जाना आवश्यक है.