नई दिल्ली : भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी का 91 वर्ष की आयु में निधन हो गया. बता दें कि सोराबजी पहले 1989 से 1990 तक अटॉर्नी जनरल रहे थे. इसके बाद उन्होंने साल 1998 से 2004 तक यह जिम्मेदारी निभाई थी. सोली सोराबजी को पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है. उच्चतम न्यायालय ने विख्यात न्यायविद् सोली सोराबजी को श्रद्धांजलि दी. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोराबजी के निधन पर शोक जताते हुए कहा, 'वह उन लोगों में से थे जिनकी भारत के संवैधानिक कानूनों के विस्तार में प्रमुख भूमिका रही.
प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण और न्यायमूर्ति सूर्य कांत एवं न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए न्यायालय की दिन की कार्यवाही शुरू होने से ठीक पहले कहा, बेहद दुखद समाचार है कि मानवाधिकारों के लिए लड़ने वाले सोली सोराबजी का आज सुबह निधन हो गया. हम नेक आत्मा के लिए प्रार्थना करते हैं.
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने ट्वीट कर जताया दुख.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोराबजी के निधन पर शोक जताते हुए कहा, 'वह उन लोगों में से थे जिनकी भारत के संवैधानिक कानूनों के विस्तार में प्रमुख भूमिका रही.
केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ट्वीट कर दी श्रद्धांजलि.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण समेत अन्य वरिष्ठ नेताओं ने शोक प्रकट कर श्रद्धांजलि दी है. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने दुख व्यक्त करते हुए कहा कि उनका व्यक्तित्व महान था.
उन्हें कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद दक्षिण दिल्ली के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एन वी रमण ने भी सोराबजी के निधन पर दुख जताया. उन्होंने कहा, 'मुझे भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल श्री सोली जहांगीर सोराबजी के निधन के बारे में सुनकर बहुत दुख हुआ. न्यायिक जगत के साथ अपने करीब 68 वर्ष लंबे संबंध में उन्होंने मानवाधिकारों और मौलिक अधिकारों के वैश्विक न्यायशास्त्र को समृद्ध बनाने में उल्लेखनीय योगदान दिया.'
सर्वश्रेष्ठ संवैधानिक विधि विशेषज्ञों में से एक माने जाने वाले सोराबजी ने कानून और न्याय, प्रेस सेंसरशिप और आपातकाल पर कई किताबें लिखीं तथा मानवाधिकार और मौलिक अधिकारों के खिलाफ जोरदार ढंग से लड़ाई लड़ी.
धारा 66-ए असंवैधानिक होने पर सोराबजी की दलील
मौलिक अधिकार उल्लंघनों से जुड़ी उनकी हाल की कानूनी लड़ाई श्रेया सिंघल मामला था जिसमें 2015 में उच्चतम न्यायालय उनकी दलीलों पर राजी हो गया और उसने भाषण एवं अभिव्यक्ति की ऑनलाइन स्वतंत्रता पर पाबंदी से संबंधित सूचना प्रौद्योगिकी कानून का एक प्रावधान रद्द कर दिया. शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि धारा 66-ए असंवैधानिक है क्योंकि यह संविधान के तहत भाषण की स्वतंत्रता का उल्लंघन करती है. सोराबजी ने भी यही दलील दी थी.
पाक ने मांगा मुआवजा
वाजपेयी के करीबी माने जाने वाले सोराबजी ने अंतरराष्ट्रीय न्याय अदालत (आईसीजे) में भारत की लड़ाई का तब नेतृत्व किया जब पाकिस्तान ने करगिल युद्ध के बाद 1999 में उसके नौसैन्य गश्ती विमान अटलांटिक को मार गिराने के लिए भारत से मुआवजा मांगा था.
भारत के हक में हुआ फैसला
नीदरलैंड के हेग में स्थित आईसीजे ने सोराबजी की दलीलों को स्वीकार करते हुए भारत के पक्ष में फैसला दिया था. उन्होंने नागरिकों की न्याय समिति के लिए भी काम किया जो सिख विरोधी दंगों के पीड़ितों का प्रतिनिधित्व करती है.
बोम्मई मामले समेत कई महत्वपूर्ण मुदकमों में पैरवी
एक पारसी परिवार में 1930 में जन्मे सोराबजी 1953 में बार में पंजीकृत हुए और बंबई उच्च न्यायालय ने 1971 में उन्हें वरिष्ठ अधिवक्ता बनाया. सोराबजी ने केशवानंद भारती मामले ओर राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने से संबंधित एस आर बोम्मई मामले समेत कई महत्वपूर्ण मुदकमों में पैरवी की.
अफ्रीकी देश के विशेष दूत बने
संयुक्त राष्ट्र ने नाइजीरिया में मानवाधिकारों की स्थिति पर रिपोर्ट देने के लिए 1997 में उन्हें अफ्रीकी देश का विशेष दूत नियुक्त किया और बाद में उन्हें 1998 से 2004 तक मानवाधिकारों के प्रचार एवं रक्षा पर संयुक्त राष्ट्र के उप-आयोग का अध्यक्ष तथा सदस्य बनाया.
अंतरराष्ट्रीय अदालच में मध्यस्थता अदालत के सदस्य
सोराबजी 1998 से अल्पसंख्यकों के भेदभाव निवारण और उनकी रक्षा पर संयुक्त राष्ट्र के उप-आयोग का सदस्य भी रहे. वह 2000 से 2006 तक हेग में स्थायी मध्यस्थता अदालत के सदस्य भी रहे.
मुंबई आतंकी हमले को लेकर जनहित याचिका
सोराबजी ने अपनी तरफ से बमुश्किल कभी कोई जनहित याचिका दायर की थी, लेकिन वह 2008 में मुंबई में आतंकवादी हमले से इतने आहत हुए कि उन्होंने शीर्ष न्यायालय में खुद जनहित याचिका दायर कर आतंकवादी हमलों से निपटने के लिए पुलिस बल को प्रशिक्षित करने तथा उपकरणों से लैस करने के निर्देश देने की मांग की.
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सोली सोराबजी का पूरा नाम सोली जहांगीर सोराबजी था. उनका जन्म साल 1930 में मुंबई में हुआ था. उन्होंने साल 1953 से बॉम्बे हाई कोर्ट में प्रैक्टिस शुरू कर दिया था, जिसके बाद 1971 में वह सुप्रीम कोर्ट के सीनियर काउंसिल बन गए थे.