दिल्ली

delhi

वन संरक्षण अधिनियम में संशोधन जंगल को कॉरपोरेट्स के हाथों बेचने की साजिश : वन अधिकार समूह

By

Published : Oct 12, 2021, 4:56 PM IST

Updated : Oct 12, 2021, 10:14 PM IST

मोदी सरकार द्वारा वन संरक्षण अधिनियम 1980 में संशोधन के हालिया कदम का वाम समर्थित वन अधिकार समूह ने विरोध किया है. समूह ने 12 नवंबर को देशव्यापी विरोध का आह्वान किया है, जिसके बाद सरकार द्वारा उनकी मांगों को स्वीकार नहीं करने पर आंदोलन किया जाएगा.

Forest
Forest

नई दिल्ली :2014 में एनडीए सरकार द्वारा प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण अधिनियम का विरोध करने के लिए शुरू किए गए भूमि अधिकार आंदोलन समूह ने 12 नवंबर को एक बार फिर राष्ट्रव्यापी विरोध का आह्वान करते हुए प्रस्तावित संशोधनों को तर्कहीन और असंवैधानिक बताया.

वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 2 अक्टूबर को उसी अधिनियम में 1988 में किए गए संशोधनों के संदर्भ में वन संरक्षण अधिनियम 1980 में प्रस्तावित संशोधनों पर एक परामर्श पत्र जारी किया. मंत्रालय ने इस मसौदे पर लोगों से सुझाव भी मांगे हैं. आपत्तियां और सुझाव 17 अक्टूबर तक प्रस्तुत किए जा सकते हैं लेकिन विरोधी समूह को यह समय बहुत कम और अधिकांश हितधारकों के लिए दुर्गम लगता है.

वन अधिकार समूह की प्रेस कांफ्रेंस

उन्होंने सुझावों के लिए केवल 15 दिनों का समय दिया है और मसौदा केवल एक भाषा उपलब्ध है जो केवल उनकी वेबसाइट पर अंग्रेजी में है. आदिवासी क्षेत्रों में रहने वाले लोग यह भी नहीं समझ सकते हैं कि क्या प्रस्तावित किया जा रहा है क्योंकि न तो वे इंटरनेट का उपयोग कर सकते हैं और न ही वे भाषा समझ सकते हैं.

इसका अधिक भाषाओं में अनुवाद किया जाना चाहिए था और व्यापक रूप से प्रसारित किया जाना चाहिए था. हितधारकों को अधिक समय दिया जाए ताकि वे इस पर आपत्ति कर सकें या इसमें बदलाव का सुझाव दे सकें.

हन्नान मोल्लाह ने कहा कि वन और आदिवासी समुदायों से जुड़े पर्यावरणविद, सामाजिक कार्यकर्ता और संगठनों का मानना ​​है कि इन संशोधनों के माध्यम से वन भूमि को गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिए आसानी से उपलब्ध कराने का प्रयास किया जा रहा है.

इन संशोधनों का इरादा मूल रूप से प्राकृतिक संसाधनों को कॉरपोरेट्स के हाथों में सौंपना और जंगल में प्राकृतिक संसाधन पर निर्भर समुदायों के अधिकारों से इनकार करना है. इस संशोधन ने वन अधिकार अधिनियम 2006 को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया है.

ऑल इंडिया यूनियन ऑफ फॉरेस्ट वर्किंग पीपल (AIUFWP) की सदस्य रोमा

भूमि अधिकार आंदोलन से जुड़े सदस्यों ने यह भी आरोप लगाया कि संशोधनों के पीछे मोदी सरकार का एजेंडा कंपनियों को जंगलों तक पहुंच प्रदान करने की अनुमति देना है. ऑल इंडिया यूनियन ऑफ फॉरेस्ट वर्किंग पीपल (AIUFWP) की सदस्य रोमा ने कहा कि ये संशोधन ग्राम सभा के अधिकारों को छीनते हैं और भारत के संघीय ढांचे को भारी रूप से केंद्रीकृत किया जा रहा है.

यह भी पढ़ें-बच्चों की कोवैक्सीन : डीसीजीआई से मंजूरी पर सस्पेंस, स्वास्थ्य मंत्रालय ने दिया ये जवाब

इसे निश्चित रूप से चुनौती देने की जरूरत है क्योंकि यह जैव विविधता अधिनियम की भावना के खिलाफ भी है. 10 महीने से अधिक समय से चल रहे किसान संगठनों के आंदोलन के अनुरूप समूह ने 12 नवंबर को देशव्यापी विरोध का आह्वान किया है, जिसके बाद सरकार द्वारा उनकी मांगों को स्वीकार नहीं करने पर आंदोलन किया जाएगा.

Last Updated : Oct 12, 2021, 10:14 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details