देहरादून: यूं तो हर साल प्रदेश इस आपदा से दो-चार होता है, लेकिन वन महकमा न तो कभी इन आग की घटनाओं के वजहों की तह तक पहुंच पाया है और न ही इसके समाधान की तरफ एक भी कदम बढ़ा पाया है. लिहाजा सवाल उठना लाजमी है कि वनाग्नि की घटनाएं महज आपदा है या फिर इसके पीछे कोई बड़ी साजिश. बहरहाल मौजूदा स्थिति ये है कि पिछले डेढ़ महीने में ही अबतक करीब 215 हेक्टेयर जंगल आग की लपटों में आ चुके हैं.
उत्तराखंड में फायर सीजन शुरू होते ही जंगलों में आग का तांडव दिखने लगी है, दिनों दिन आग की घटनाओं में तेजी से इजाफा भी हो रहा है. चिंता की बात यह है कि वन विभाग के पास कागजों में इसका प्लान तो है लेकिन समाधान नहीं. वैसे इसका समाधान महकमें के बस की बात नहीं दिखाई दे रहा. ऐसा इसलिए क्योंकि, आग की ये घटनाएं हो कैसी रही है. इस पर ही विभाग खुद सवालों के घेरे में हैं.
वैसे आपको बता दें कि जंगलों में आग लगने की दो वजह मानी जाती है, पहला प्राकृतिक और दूसरा इंसानों द्वारा लगाई गई आग. ज्यादातर घटनाओं के पीछे लोग ही वजह माने जाते हैं, लेकिन वन विभाग ने इतने सालों में ऐसी घटनाओं के लिए कितने मुकदमे दर्ज किए और कितने लोगों को जेल भेजा, वह विभाग के आंकड़ों देखकर ही समझा जा सकता है. क्योंकि आंकड़े बताते हैं कि या तो वन विभाग बेहद लापरवाह है या फिर इन आग की घटनाओं के पीछे दाल में कुछ काला जैसा है.
दरअसल, आग लगने की घटनाएं वन पंचायत के जंगलों की बजाय आरक्षित वनों में ज्यादा दिखाई देती है. ऐसे भी एक सवाल यह उठता है कि वन क्षेत्रों में प्लांटेशन को लेकर जो गड़बड़ी के सवाल उठते रहे हैं, कहीं इन आग की घटनाओं का उससे कोई सीधा कनेक्शन तो नहीं. वैसे तो यह जांच का विषय है, लेकिन पहले आप ये जानिए कि उत्तराखंड में पिछले डेढ़ महीने में आग लगने की घटनाओं को लेकर क्या आंकड़ा रहा.