न्यूयॉर्क : विदेश मंत्री एस जयशंकर रविवार को अमेरिका के दौरे पर पहुंचे. भारत के इस साल जनवरी माह में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य बनने के बाद विदेश मंत्री का अमेरिका का यह पहला दौरा है. जयशंकर इस दौरान संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंतोनियो गुतारेस तथा अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन से मुलाकात करेंगे.
विदेश मंत्री मंगलवार की सुबह संरा महासचिव से मुलाकात करेंगे और उसके बाद वॉशिंगटन डीजी जाएंगे जहां वह ब्लिंकन से मुलाकात करेंगे.
जनवरी में राष्ट्रपति जो बाइडेन के कार्यभार संभालने के बाद भारत के किसी वरिष्ठ मंत्री का अमेरिका का यह पहला दौरा है. इस दौरान विदेश मंत्री से कोविड-19 पर चर्चा करने की उम्मीद है, जो उनके एजेंडे के साथ-साथ अन्य संबंधित स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों में सबसे ऊपर है.
इसके अलावा, अफगानिस्तान जैसे अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय मुद्दों की एक पूरी श्रृंखला के साथ-साथ भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच द्विपक्षीय संबंधों को गहरा करने पर चर्चा की जाएगी.
जयशंकर की यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब भारत कोरोना वायरस की दूसरी लहर से जूझ रहा है और स्वास्थ्य प्रणाली डूब रही है, क्योंकि देश टीकों, जीवनदायी ऑक्सीजन और अन्य स्वास्थ्य सहायता की कमी है.
हालांकि महामारी की दूसरी लहर के खिलाफ लड़ाई में भारत की मदद के लिए कई देश आगे आए हैं. है टीकों की खरीद और निर्माण में अमेरीका दिल्ली के साथ जुड़ा हुआ है, इसलिए देश में टीकाकरण अभियान को आसान बनाने की उम्मीद है. जयशंकर की यात्रा वैक्सीन उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करेगी, जो दोनों देशों के बीच मजबूत वैक्सीन कूटनीति को स्थापित करने जा रही है.
ईटीवी भारत से बात करते हुए पूर्व राजदूत अशोक सज्जनहार ने कहा कि जयशंकर का दौरा इसलिए भी अहम है क्योंकि भू-राजनीतिक परिस्थितियों में बहुत तेजी से बदलाव हो रहा है.
विदेशमंत्री का यह दौरा 12 मार्च को हुए पहले क्वाड शिखर सम्मेलन और में महामारी से निपटने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा मिले समर्थन के बाद हो रहा है.
इसलिए उनकी यात्रा मूल रूप से सहयोग को और मजबूत करने के साथ अन्य मु्द्दों जहां हम एक साथ काम कर सकते हैं के लिए महत्वपूर्ण होगी.
उनकी यात्रा के दौरान तीन मुद्दों पर चर्चा हो सकती है-पहली रक्षा उत्पादन अधिनियम में छूट, दूसरा वैक्सीन उत्पादन के लिए भारतीय कंपनियों द्वारा आवश्यक आपूर्ति श्रृंखला और तीसरा विश्व व्यापार संगठन में टीआरआईपी की छूट.
अमेरिकी का कहना है कि पेटेंट अधिकारों की छूट 16-18 महीने के लिए होनी चाहिए, जबकि भारत का कहना है कि यह तीन साल के लिए हो, दूसरी ओर भारत के पास टीकों के अलावा चिकित्सा उपकरणों की बहुत व्यापक मांग की सूची है.