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यूक्रेन संकट की तरह ताइवान मुद्दे पर तटस्थ रहना भारत के लिए होगी चुनौती

रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भारत बड़ी शक्तियों अमेरिका और रूस दोनों से संतुलन बनाकर चल रहा है. ऐसे में अगर अमेरिका ताइवान (Taiwan) मुद्दा उठाता हो तो भारत के लिए संतुलन बनाए रखने की राह आसान नहीं होगी. 'ईटीवी भारत' के वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट.

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Published : Apr 19, 2022, 6:14 PM IST

नई दिल्ली :यूक्रेन संघर्ष को लेकर भारत ने रणनीतिक स्वायत्तता दिखाते हुए तटस्थ रहकर सभी पक्षों से संतुलन बनाए रखा है, लेकिन भविष्य में उसे चुनौतीपूर्ण समय का सामना करना पड़ सकता है. अगर अमेरिका ताइवान मुद्दा उठाने में सफल रहता है तो भारत के साउथ ब्लॉक स्थित राजनयिक प्रतिष्ठानों को मुश्किल होगी. यदि एक ही समय में यूक्रेन और ताइवान दो मोर्चे खुलते हैं तो भारत के लिए कशमकश की स्थिति होगी. उसे रूस और अमेरिका दोनों के साथ मैत्रीपूर्ण शर्तों पर रहने की अपनी वर्तमान स्थिति को त्यागने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.

यूक्रेन में रूस द्वारा किए जा रहे कथित 'युद्ध अपराधों' पर पश्चिम दुनियाभर का ध्यान खींच रहा है. इसे लेकर अमेरिका-रूस टकराव (US-Russia confrontation)की संभावना भी बढ़ती जा रही है. जिस तरह से काला सागर में रूसी नौसेना के जहाज 'मोस्कवा' को बैलिस्टिक मिसाइल से हमला कर तबाह कर दिया गया, उसके बाद इसके आसार बढ़ गए हैं. यूक्रेन को पश्चिम बराबर हथियारों की आपूर्ति कर रहा है.

रूस और चीन के जिस तरह करीबी संबंध हैं उसे देखते हुए यही लग रहा है कि रूस का करीब होने के कारण भारत की स्थिति भी अस्थिर होगी. जो पहले से ही एक आर्थिक और रणनीतिक गठबंधन का आकार ले रहा है. भारत और चीन के बीच पहले से ही पूर्वी लद्दाख और वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर गतिरोध चल रहा है. दोनों देशों ने पिछले दो वर्षों में अभूतपूर्व रूप से सैन्य कर्मियों और उपकरणों की तैनाती एलएसी पर कर रखी है. भारत और चीन के बीच शत्रुता को कम करने के लिए रूस मध्यस्थता करे इसके भी आसार नहीं हैं.

जिस दिन युद्धपोत मोस्कवा डूबा अमेरिकी कांग्रेसियों का छह सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल पार्टी लाइनों को तोड़कर अमेरिकी सीनेट विदेश संबंध समिति के अध्यक्ष बॉब मेनेंडेज़ के नेतृत्व में अघोषित यात्रा पर ताइपे हवाई अड्डे पर उतरा. इस प्रतिनिधिमंडल में प्रभावशाली रिपब्लिकन सांसद लिंडसे ग्राहम (Republican Lindsey Graham) भी शामिल थे, जिन्होंने शुक्रवार को ताइवान की राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन (Tsai Ing-wen) से मुलाकात की.

राष्ट्रपति त्साई से मिलने के बाद ग्राहम ने जो कहा उससे हलचल तेज हो गई है. उन्होंने कहा कि 'चीन दुनियाभर में जो कुछ भी कर रहा है हम उसके लिए उसे बड़ी कीमत चुकाने पर मजबूर करेंगे. उसे रूसी राष्ट्रपति पुतिन का सहयोग करने के लिए उसे कीमत चुकानी पड़ेगी. ताइवान को छोड़ना लोकतंत्र और आजादी को छोड़ना होगा. मुक्त व्यापार को छोड़ना होगा. हम आज यहां ताइवान के लिए अपना समर्थन दिखाने के लिए मौजूद हैं.' स्वाभाविक रूप से अमेरिकी कांग्रेस की यात्रा ने चीन से एक मजबूत प्रतिक्रिया प्राप्त की है. वहीं, चीनी सेना ने ताइवान के आसपास के समुद्र में युद्धपोतों, लड़ाकू विमानों और बमवर्षकों के साथ युद्ध अभ्यास किया, ताकि अमेरिका को शांत रहने की चेतावनी दी जा सके.

चीन के रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता वू कियान ने अमेरिकी यात्रा को 'डरपोक' बताते हुए शुक्रवार को एक बयान में कहा कि इस यात्रा ने अमेरिका के एक-चीन सिद्धांत का 'गंभीर उल्लंघन' किया है. जबकि सैन्य अभ्यास (military exercise) को लेकर वू ने कहा कि सैन्य अभ्यास चीन की संप्रभुता को बनाए रखने के लिए था. वहीं, चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियन ने कहा कि यह अभ्यास अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल की ताइवान यात्रा की प्रतिक्रिया थी.

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