सामाजिक ढांचे में जेंडर या लैंगिक पहचान एक महत्वपूर्ण मुद्दा है. इस पहचान को सामाजिक मान्यताओं ने दिनों- दिन पुख्ता किया और समाज जेंडर को स्त्री-पुरुष की 'बाइनरी' में ही देखने व समझने का अभ्यस्त हो गया. इस अभ्यास के कारण ही समाज में थर्ड जेंडर को लेकर जो धारणा बनी वह उनकी पहचान पर भी संकट पैदा करने वाली थी क्योंकि वह प्रचलित बाइनरी से बाहर है. इस पहचान को लेकर थर्ड जेंडर समुदाय लंबे समय से संघर्ष कर रहा है.
यह संघर्ष सामाजिक और संवैधानिक दोनों स्तरों पर चल रहा था. हालांकि 15 अप्रैल 2014 को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले ने थर्ड जेंडर को संवैधानिक अधिकार दे दिए और सरकार को निर्देशित किया कि वह इन अधिकारों को लागू करने की प्रक्रिया को सुनिश्चित करे. 5 दिसंबर, 2019 को राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने के बाद थर्ड जेंडर के अधिकारों को कानूनी मान्यता भी मिल गई. लेकिन समान अधिकारों को वास्तविकता में हासिल करना अभी भी थर्ड जेंडर के लोगों के लिए दूर की कौड़ी मालूम होती है.
लेकिन क्या हमेशा से ही भारतीय समाजों में किन्नरों या थर्ड जेंडर की ऐसी ही स्थिति थी या यह भेदभाव नया है. महाभारत में शिखंडी की कथा का महत्व और अर्जून के किन्नर भेष में रहने की कहानी कौन नहीं जानता होगा. दरअसल महाभारत का दौर तो फिर भी बेहद पौराणिक है, इतिहास में इस बात के ठोस प्रमाण मौजूद हैं कि थर्ड जेंडर या किन्नर समुदाय को ना केवल मुगलों का विशेष संरक्षण प्राप्त था बल्कि उन्हें मुगल शासकों के राज महलों उन्हें विशेष स्थान प्राप्त था.
इतिहासकार जेसिका हिंकी के मुताबिक इस हत्या से ब्रिटिश समाज में किन्नरों के प्रति व्याप्त नैतिक आतंक का पता चलता है. जेसिका हिंकी बताती हैं कि उनकी हत्या हुई थी, लेकिन उनकी मौत को किन्नरों के अपराध और समुदाय की अनैतिकता से जोड़कर देखा गया. ब्रिटिश अधिकारियों ने यह मानना शुरू कर दिया था कि किन्नर शासन करने योग्य नहीं हैं. विश्लेषकों ने किन्नरों को गंदा, बीमार, संक्रामक रोगी और दूषित समुदाय के तौर पर चित्रित किया. इन्हें पुरुषों के साथ सेक्स करने की लत वाले समुदाय की तरह पेश किया गया.
औपनिवेशिक अधिकारियों ने कहा था कि यह समुदाय न केवल आम लोगों की नैतिकता के लिए खतरा हैं बल्कि औपनिवेशिक राजनीतिक सत्तातंत्र के लिए भी खतरा हैं. सिंगापुर के नायनयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी में इतिहास विभाग की अस्सिटेंट प्रोफेसर डॉ. हिंकी ने किन्नरों से संबंधित अंग्रेजों के शासनकाल के समय वाले दस्तावेजों को खंगाला और उस दौरान के कानूनों का इस समुदाय पर पड़ने वाले असर का अध्ययन किया. इस आधार पर उन्होंने औपनिवेशिक भारत के किन्नरों के पहले विस्तृत इतिहास के तौर पर 'गवर्निंग जेंडर एंड सेक्शुअलिटी इन कॉलोनियल इंडिया' की रचना की है.