नई दिल्ली : खेल और राजनीति को अलग रखने के यूटोपियन आदर्श के बावजूद खेल का दायरा कभी भी राजनीति की उथल-पुथल भरी दुनिया से बहुत दूर नहीं रहा है. ग्रीस में लगभग 12 शताब्दियों तक चले ओलंपिक खेलों के पुराने समय में भी सारी महिमा चैंपियनों के साथ जुड़ी हुई थी. बात आधुनिक समय की करें तो 1968 में मैक्सिको सिटी ओलंपिक में अमेरिकी एथलीटों टॉमी स्मिथ और जॉन कार्लोस द्वारा 'ब्लैक फिस्ट सैल्यूट' से लेकर संबंधित सत्ता ब्लॉकों द्वारा खेलों के बहिष्कार तक सबकुछ सामने आ चुका है. अब ऐसे में जब रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध छिड़ा है तो भी उसका असर खेलों और राजनीति पर पड़ना स्वाभाविक है.
ऐसा ही तब दिखा जब तुर्की और यूक्रेन की टीम के बीच चैंपियंस लीग क्वालीफाइंग फुटबॉल मैच में 20-सेकेंड तक रूस के समर्थन में नारे लगने के बाद यूरोपीय फुटबॉल संघों का संघ (UEFA) ने जांच के आदेश दिए. चैंपियंस लीग क्वालीफायर मैच बुधवार को तुर्की के क्लब फेनरबाह (Fenerbahce) और यूक्रेन के प्रमुख क्लब डायनमो कीव (Dynamo Kyiv) के बीच हुआ. नारेबाजी तब हुई जब डायनमो कीव ने अतिरिक्त समय के खेल में 2-1 की बढ़त ले ली और तुर्की क्लब को प्रतियोगिता से प्रभावी ढंग से बाहर कर दिया. इस पर फेनरबाह के समर्थकों ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के नाम से नारे लगाए.
इस पर तुर्की क्लब के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर ऑनलाइन प्रतिक्रिया के बीच डायनमो कीव ने भी विरोध जताया. यूईएफए ने एक 'नैतिकता और अनुशासन निरीक्षक' से जांच कराने का आदेश दिया है. हालांकि गुरुवार को एक बयान में फेनरबाह ने कहा कि पुतिन के समर्थन में नारेबाजी करने वालों से क्लब का कोई वास्ता नहीं है. लेकिन इस पूरे घटनाक्रम का एक और पहलू है. तुर्की कई मामलों में अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो का भागीदार रहा है. हालांकि तुर्की पर रूसी हथियार और सिस्टम खरीदने के लिए प्रतिबंध भी लगाए गए हैं. इस मामले में अपराधी शक्तिशाली S-400 वायु रक्षा और मिसाइल प्रणाली है. दूसरी ओर अमेरिका ने गैर-नाटो सदस्य भारत के लिए रूस से समान खरीदने के लिए छूट की घोषणा की है.