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जानें, कैसे पड़ा जानकी बाई का नाम 'छप्पन छुरी' - जानकी बाई प्रयागराज

जानकी बाई इलाहाबादी उर्फ छप्पन छुरी, गायकी की दुनिया का एक ऐसा सितारा जिसकी चमक कभी कम न होगी. उनकी गायकी के दीवाने देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी थे. छप्पन छुरी पर देखिये ये स्पेशल रिपोर्ट...

जानकी बाई
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Published : Feb 12, 2021, 11:05 AM IST

प्रयागराज: दास्तान-ए-दिलरुबाई जानकी बाई एक ऐसा नाम है, जो इतिहास में दर्ज है. प्रयागराज की एक ऐसी गायिका, जिसकी प्रसिद्धि देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी है. जानकी की गायकी का असर लोगों पर ऐसा था कि लोगों को सुबह और शाम का कुछ पता नहीं चलता था. ऐसी थीं जानकी बाई उर्फ छप्पन छुरी.

जानकी बाई का जन्म
जानकी बाई मूल रूप से बनारस की रहने वाली थीं. जानकी के पिता शिव बालक जानकी पेशे से पहलवान थे. एक महिला के संपर्क में आने के बाद पिता ने उनकी मां का त्याग कर दिया. इसके बाद मां मानकी और जानकी बाई प्रयागराज में आकर बस गए.

पढ़ें स्पेशल रिपोर्ट.

जानकी ने प्रारंभिक संगीत की शिक्षा मंदिरों से ली, जहां भजन गाया जाता था. वे काशी के मंदिरों में होने वाले भजन कीर्तन सुनती और गुनगुनाती. मंदिरों में अपनी मधुर आवाज से लोगों का दिल जीत लेती थीं. जानकी की इस प्रतिभा को उनकी मां ने समझा और उनकी शिक्षा-दीक्षा शास्त्री संगीत के उस्तादों से दिलाई. जानकी बाई ने 12 वर्ष की आयु में एक संगीत प्रतियोगिता में भाग लिया, जिसमें उन्होंने बनारस के प्रख्यात गायक रघुनंदन दुबे को पराजित किया था.

सिक्कों से पटा चबूतरा
जानकी बाई की गायकी का जादू लोगों पर इस कदर था कि लोगों को सुबह और शाम का पता नहीं चलता था. कहा जाता है कि एक बार जानकी बाई अतरसुइया मोहल्ले में गीत गा रही थीं, जब उनका गायन खत्म हुआ तो चबूतरा चांदी के सिक्कों से पट गया था.

क्यों पड़ा छप्पन छुरी नाम
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी कहते है कि जानकी बाई के शरीर पर 56 घाव थे, इस कारण से उन्हें छप्पन छुरी कहा जाता है. दूसरी तरफ ये भी कहा जाता है कि इस बात का कहीं भी प्रमाण नहीं मिलता है. विद्वानों का यह भी मत है कि अपनी हार से विक्षुब्ध होकर रघुनंदन दुबे ने उन्हें जान से मारना चाहा, इसलिए उनके शरीर पर चाकू से अनगिनत वार किए.

जानकारी के अनुसार, जानकी की मृत्यु के पीछे भी कई मत हैं. कुछ जानकार बताते हैं कि उनकी मृत्यु साल 1930 में हुई थी, किसी का कहना है कि 1934 में जानकी ने दुनिया को अलविदा कहा.

ग्रामोफोन कंपनी में पहला हिंदी गाना गाने वाली
जानकी बाई इलाहाबादी उर्फ छप्पन छुरी ने सन् 1907 के आसपास ग्रामोफोन कंपनी में गाना गाया और 100 से भी अधिक गीतों और गजलों के रिकॉर्ड निकाले. वह ग्रामोफोन कंपनी में हिंदी गाना गाने वाली पहली महिला थीं. उस समय 20वीं शताब्दी में भी जानकी बाई एक गीत के लिए हजारों रुपये लिया करती थीं. खास बात ये है कि जब भी वह कहीं गायन के लिए जाती थीं तो वह कहती थीं कि 'मैं जानकी बाईं इलाहाबादी'.

जानकी बाई के हिट गाने
जानकी बाई ठुमरी गायन में प्रवीण थीं, तो दादरा का उनका अपना अंदाज था. जब वे 'गुलनारों में राधा प्यारी बसे' दादरा गातीं तो श्रोता सम्मोहित हो जाते. जानकी बाई को लोक धुनों की बहुत अच्छी समझ थी. पूरबी, चैती, कजरी, बन्नी बन्ना, सोहर फाग और गारी भी जानकी बाई गाती थीं.

कुछ प्रमुख गीत
'समधी देखो बांका निराला है रे, तोरी बोलिया सुनै कोतवाल तूती बोलै ले, नदी नारे न जाओ स्याम पैयां परूं, तू ही बाटू जग में जवान सांवर गोरिया, बाबू दरोगा कौने करनवा धइला पियवा मोर' ये गीत उन दिनों लोगों की जुबान पर थे.

ऐसे तो जानकी बाई के अनेकों गाने और भजन हिट हुए थे, लेकिन आज भी जानकी के कुछ गीत सदाबहार हैं. जिसमें 'रंग महल के 10 दरवाजे, नहीं भूलरे तुम्हारी सूरतिया रामा, मतवाले नैनवां जुल्म करें' इत्यादि शामिल हैं. जब वे गीत गातीं तो महफिल में उपस्थित जन श्रृंगार रस में डूब जाते.

समाज सेवा में भी आगे
जानकी बाई समाज सेवा में भी कभी पीछे नहीं हटती थीं. सभी की वे खुले दिल से मदद करती थीं. उनकी गायकी, लोगों के प्रति हमदर्दी, मदद करने की प्रवृत्ति उन्हें दूसरों से अलग बनाती थी. गरीबों और बेसहारा की मदद करना उनकी आदतों में शुमार था. गरीब बच्चों की पढ़ाई और बेसहारा लड़कियों की शादी के लिए वह हमेशा तत्पर रहती थीं.

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