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जब स्कूटर और मोपेड पर ढोए गए सांड़, जानिए क्या था 'चारा घोटाला' - जानिए क्या था चारा घोटाला

बहुचर्चित चारा घोटाला के मामले में 15 फरवरी को सीबीआई की विशेष अदालत द्वारा फैसला सुनाया जाना है. डोरंडा ट्रेजरी से पशुचारा और पशुओं की ढुलाई पर जिस तरह से फर्जीवाड़ा हुई इसकी पूरी दास्तान है. जानिये इस महाघोटाले के बारे में.

fodder scam
पशुओं को स्कूटर पर ढोया

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Published : Feb 11, 2022, 10:37 AM IST

रांची: क्या आपने स्कूटर पर सांड़ की सवारी करते हुए देखा या सुना है? लेकिन यह सही है. यह बात किसी फिल्म की नहीं है बल्कि सरकारी दस्तावेज ऐसा कह रहे हैं जिसका देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई ने रहस्योदघाटन किया है. दरअसल, यह मामला 1990-92 के बीच का है जब देश का सबसे बड़ा घोटाला संयुक्त बिहार में हुआ. कहने को तो यह चारा घोटाला के नाम से यह जाना जाता है, मगर इस महाघोटाले में पशुओं को भी फर्जी रुप से स्कूटर पर ढोने की पूरी दास्तान शामिल है.

सीबीआई जांच में यह पाया गया कि डोरंडा ट्रेजरी से अवैध निकासी मामले में 400 को सांड़ हरियाणा और दिल्ली से स्कूटर और मोटरसाइकिल पर रांची तक ढोया गया. इस मामले में हिन्दुस्तान लाइव स्टॉक एजेंसी दिल्ली के आपूर्तिकर्ता संदीप मल्लिक आरोपी बनाये गये हैं. वहीं पशुपालन विभाग ने इस पर 1990-92 के दौरान करीब 20 लाख रुपये खर्च किये थे. इतना ही नहीं पशुपालन विभाग ने इस दौरान क्रॉस ब्रिड बछिया और भैंस की खरीद पर 84 लाख 93 हजार 900 रुपये का भुगतान मुर्रा लाइव स्टॉक दिल्ली के दिवंगत प्रोपराइटर विजय मल्लिक को की थी. इसके अलावा विभाग ने भेड़ और बकरी की खरीद पर भी 27 लाख 48 हजार रुपया खर्च किये थे.

जानिए क्या था चारा घोटाला

फर्जीवाड़े के इस खेल में सबसे खास बात यह है कि जिस गाड़ी नंबर को विभाग ने दर्शाया था वह सभी स्कूटर और मोपेड के थे. सीबीआई ने जांच के दौरान यह भी पाया है कि लाखों टन पशुचारा, भूसा, पुआल, पीली मकई, बादाम, खल्ली, नमक आदि स्कूटर, मोटरसाइकिल और मोपेड पर ढोये गये. आपूर्तिकर्ता ने जिस ट्रांसपोर्टर से माल ढुलाई किया और उसके चालान बिल पर जो दर्शाया गया है उसकी जांच देश के सभी राज्यों के लगभग डेढ़ सौ डीटीओ, आरटीओ से कराई गई. गवाह के रुप में सीबीआई कोर्ट में सुनवाई के दौरान पेश हुए परिवहन विभाग के अधिकारियों ने भी इसे सत्यापित भी किया है. उन सभी ने सीबीआई अनुसंधानकर्त्ता द्वारा मांग किये जाने पर रजिस्ट्रेशन रजिस्टर की सत्यापित प्रतिलिपि भी पेश किया है जिससे पता चला है कि जो ट्रक का नंबर दर्शाया गया है वह ट्रक नहीं मोटरसाइकिल का नंबर है.

महाघोटाले की इस दास्तान में राजनेता से लेकर ब्यूरोक्रेट्स तक पर किरदार निभाने का आरोप है, जिसे खंगालने में सीबीआई को 26 वर्ष लग गये. बहरहाल करीब 139.35 करोड़ के सरकारी राशि गबन मामले में सबकी नजर सीबीआई कोर्ट पर टिकी है जो 15 फरवरी को फैसला सुनायेगी.

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