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assembly elections 2022 : क्या भाजपा के 'गले की हड्डी' बन रहे रिश्तेदारों के लिए टिकट मांग रहे नेता ?

पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव (five state assembly election) की घोषणा के साथ ही बीजेपी में रिश्तेदारों के लिए टिकट (demands for kin tickets in bjp) मांगने वाले नेताओं की लंबी कतार लगनी शुरू हो गई है. टिकट बंटवारे के मोर्चे पर भाजपा की मुश्किलें बढ़ गई हैं. यही नहीं पार्टी छोड़कर जाने वाले नेताओं या पार्टी के खिलाफ शुरू हुई बयानबाजी भी भाजपा की किरकिरी का प्रमुख कारण है. एक ओर जहां नेताओं के रिश्तेदारों को टिकट नहीं मिलने की खबरें हैं, तो दूसरी ओर कुछ लोगों को उम्मीदवारी के वादे के अलावा टिकट भी दिए गए हैं. हालांकि, ज्यादातर मामलों में भाजपा मुश्किल में दिख रही है. पढ़िए ईटीवी भारत की वरिष्ठ संवाददाता अनामिका रत्ना की रिपोर्ट

swatantra dev singh jp nadda
स्वतंत्र देव सिंह और जेपी नड्डा

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Published : Jan 21, 2022, 10:45 PM IST

नई दिल्ली : पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव (five state assembly election) के लिए 10 फरवरी से मतदान शुरू हो जाएंगे. परिवारवाद के खिलाफ बोलती रही भाजपा के सामने परिवारवाद और वंशवाद की चुनौती सिर उठाती दिख रही है. टिकट बंटवारे के दौरान भाजपा के सामने मुश्किलें आ खड़ी हुई हैं. ज्यादातर पार्टी के नेता अलग-अलग राज्यों से अपने बेटे-बेटी या रिश्तेदारों के लिए टिकट मांगने पर अड़े हैं. हाल ही में पार्टी के अंदर नेताओं की जितनी भी गलत बयानी हुई या फिर जिन नेताओं ने पार्टी छोड़ी उसके मूल में भी वजह उनके रिश्तेदारों को टिकट नहीं दिया जाना बताया जा रहा है. पार्टी आलाकमान इस परेशानी पर गहन मंथन कर रहा है, लेकिन परिवारवाद और वंशवाद मुश्किलों के पहाड़ की तरह पार्टी के सामने आ खड़ा हुआ है.

खबरों के मुताबिक भाजपा के कई बड़े नेता अपने परिवार के सदस्यों के लिए टिकट की मांग कर रहे हैं. इससे पार्टी के आला नेताओं में असमंजस की स्थिति बनी हुई है. कोई अपने बेटे-बेटी, कोई बहू तो कोई पत्नी के लिए टिकट मांग रहा है. यही नहीं हाल ही में भाजपा से अलग हुए यूपी के दिग्गज नेता स्वामी प्रसाद मौर्य की नाराजगी भी उनके बेटे को टिकट नहीं मिलना बताया गया. परिवारवाद का यह मसला बीजेपी के लिए मुसीबत बनकर सामने आया है. ना सिर्फ उत्तर प्रदेश बल्कि उत्तराखंड, गोवा और यहां तक कि पंजाब में भी कुछ बड़े नेता अपने रिश्तेदारों के लिए टिकट मांग रहे हैं. इस वजह से कई सीटें रिश्तेदारों के मोह में फंसती दिख रही है. पार्टी के विश्वस्त सूत्र की मानें तो उत्तर प्रदेश की दूसरी लिस्ट जारी होने में भी परिवारवाद की वजह से देर हुई.

आइए विस्तार से जानते हैं, किन-किन सीटों पर भाजपा नेताओं ने कथित तौर से रिश्तेदारों के लिए टिकट मांगे हैं. विश्वस्त सूत्रों की मानें तो पार्टी से इस्तीफा दे चुके स्वामी प्रसाद मौर्य के अलावा राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्रा अपने बेटे के लिए यूपी की देवरिया विधानसभा सीट से टिकट मांग रहे हैं. बिहार के राज्यपाल फागू चौहान अपने बेटे रामविलास चौहान के लिए यूपी में ही मऊ की मधुबनी विधानसभा सीट से टिकट की मांग कर रहे हैं. इस सीट पर पहले पार्टी छोड़ कर जा चुके दारा सिंह चौहान पार्टी के विधायक रहे हैं. केंद्रीय मंत्री कौशल किशोर अपने बेटे प्रभात किशोर के लिए सीतापुर सिधौली विधानसभा से पार्टी का टिकट मांग रहे हैं. कौशल किशोर अपने दूसरे बेटे को मोहनलालगंज से मैदान में उतारना चाहते हैं. इससे पहले के चुनाव में मोहनलालगंज में भाजपा ने किशोर की पत्नी को टिकट दिया था.

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केंद्र में मंत्री एसपी बघेल अपनी पत्नी के लिए टूंडला विधानसभा सीट से टिकट की मांग कर रहे हैं. सूर्य प्रताप शाही खुद की सीट छोड़कर अपने बेटे के लिए पत्थरदेवा विधानसभा सीट से टिकट मांग रहे हैं. पूर्व मंत्री रीता बहुगुणा जोशी अपने बेटे मयंक जोशी के लिए लखनऊ कैंट विधानसभा सीट से टिकट मांग रही हैं. बहुगुणा ने तो यहां तक प्रस्ताव रख दिया है कि वह अपने बेटे के लिए पद से त्यागपत्र देने को तैयार हैं.

योगी सरकार में मंत्री और बहराइच के कैसरगंज सीट से विधायक मुकुट बिहारी वर्मा भी पुत्र गौरव वर्मा के लिए टिकट मांग कर रहे हैं. हालांकि, उनके पुत्र विधायक प्रतिनिधि के तौर पर कार्य कर रहे हैं. अब मुकुट बिहारी वर्मा अपनी जगह अपने बेटे के लिए पार्टी से टिकट मांग रहे हैं. इसी तरह कानपुर की गोविंद नगर सीट से टिकट के लिए बीजेपी के कानपुर से सांसद सत्यदेव पचौरी भाजपा पर दबाव बना रहे हैं. सांसद सत्यदेव अपने बेटे अनूप पचौरी के लिए टिकट मांग रहे हैं. हालांकि इस सीट पर सुरेंद्र मैथानी पहले से विधायक हैं और वह अपनी दावेदारी छोड़ना नहीं चाह रहे. मथानी से पहले पचौरी भी इस सीट से विधायक रह चुके हैं.

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उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष और उन्नाव के भगवंत नगर सीट से विधायक हृदय नारायण दीक्षित भी अपनी बढ़ती उम्र की वजह से अपनी राजनीतिक विरासत अपने बेटे को सौंपना चाहते हैं. उन्होंने उन्नाव की पुरवा सीट से अपने बेटे दिलीप दीक्षित के लिए पार्टी से टिकट की मांग की थी. इस सीट पर बीएसपी के बागी विधायक अनिल सिंह विधायक हैं. अनिल सिंह अब बीजेपी का दामन थाम चुके हैं, और भाजपा ने अनिल सिंह को पुरवा सीट से टिकट भी दिया है. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले टिकट बंटवारे को लेकर लंबी चौड़ी मांगों की लिस्ट महज नजीर है, ऐसी खबरें हैं कि बाकी चुनावी राज्यों के नेता भी रिश्तेदारों के लिए टिकट मांग रहे हैं. ऐसे में सीट बंटवारे को लेकर भाजपा दबाव में दिख रही है.

तमाम खबरों और अटकलों के बीच यह देखना दिलचस्प होगा कि यूपी में योगी आदित्यनाथ के चेहरे पर चुनाव लड़ रही भाजपा, पहली बार भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा की अध्यक्षता में उत्तर प्रदेश की कितनी सीटें जीत पाती है. चुनाव के एलान से पहले पीएम मोदी और योगी की मुलाकात भी सुर्खियों में रही थी, जिसकी फोटो खुद पीएम ने ट्वीट की थी. इस फोटो में पीएम मोदी योगी के कंधे पर हाथ रखे गहन चर्चा करते दिखे थे. इससे पहले योगी और केंद्रीय नेतृत्व के बीच तनातनी की अटकलें भी लगाई गई थी.

गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री और देश के रक्षा मंत्री रहे मनोहर पर्रिकर के बेटे उत्पल को पणजी से टिकट नहीं मिला है. उत्पल ने पणजी से निर्दलीय चुनाव लड़ने का एलान किया है. उत्पल प्रकरण में भाजपा का कहना है कि पार्टी ने उन्हें दो अन्य विकल्प दिए थे. उन्होंने मानने से इनकार कर दिया. गोवा भाजपा प्रभारी फडणवीस ने तो यहां तक कह दिया था कि टिकट की पात्रता के लिए पर्रिकर का पुत्र होना ही काफी नहीं. इसी बीच सूत्रों की मानें तो रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के दूसरे पुत्र नीरज सिंह के लिए भी टिकट की मांग की जा रही है. बता दें कि राजनाथ के बड़े बेटे पंकज सिंह नोएडा से विधायक हैं. पार्टी ने इस बार भी पंकज को नोएडा से टिकट दिया है. ईटीवी भारत से बात करते हुए पंकज सिंह ने कहा था कि भाजपा यूपी विधानसभा चुनाव में 300 से अधिक सीटें जीतेगी.

उत्तराखंड की बात करें तो पार्टी से 6 साल के लिए निलंबित यह गए हरक सिंह रावत ने भी अपने रिश्तेदारों के लिए टिकट की मांग की थी, लेकिन भाजपा में हरक सिंह रावत की मांग स्वीकार नहीं हुई. अब हरक सिंह रावत ने कांग्रेस का हाथ थाम लिया है. उन्होंने कहा है कि वे भाजपा को हराने के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे.

हालांकि, उत्तराखंड में टिकट को लेकर सिरफुटौव्वल के आरोपों पर ईटीवी भारत से बात करते हुए भाजपा नेता श्याम जाजू ने कहा था कि जिस तरह से भाजपा सरकार ने उत्तराखंड में काम किया है उस आधार पर उनकी पार्टी दोबारा सत्ता में आएगी. उन्होंने कहा कि जहां तक हरक सिंह रावत का सवाल है, उनके लिए अब एक भी पार्टी ऐसी बची नहीं, जहां वह नहीं गए. भाजपा में भी वह कांग्रेस से आए थे, वह बसपा, सपा और कांग्रेस के नेता रहे. बीच में वह भाजपा में आए, इसीलिए नेताओं की जो क्रेडिबिलिटी होती है वह जनता तय करेगी. लेकिन जहां उनका मानना है कि उत्तराखंड में भाजपा की बहुत अच्छी स्थिति है और वहां बीजेपी निश्चित तौर पर दोबारा सरकार बनाएगी.

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भाजपा में रिश्तेदारों को टिकट दिए जाने की मांग पर राजनीतिक विश्लेषक देश रतन निगम का कहना है कि भाजपा के लिए यह कोई बड़ी मुसीबत नहीं है. उन्होंने कहा कि नेता इधर-उधर हो सकते हैं लेकिन पार्टी का वोटर कहीं नहीं जाता. निगम का कहना है कि सर्वे देखने से अनुमान होता है कि पार्टी का वोटर टिका हुआ है. बकौल निगम, बीजेपी परिवारवाद में विश्वास नहीं करती, लेकिन यदि किसी में गुण है और वह पार्टी में निचले स्तर से काम करते हुए ऊपर आ रहा है तो भाजपा इनकी अनदेखी भी नहीं करती.

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निगम ने कहा कि भाजपा में अगर कोई किसी वरिष्ठ नेता या मंत्री का पुत्र है, लेकिन पार्टी कार्यकर्ता-पदाधिकारी के रूप में उसने उल्लेखनीय योगदान दिया है, तो उसकी अनदेखी भी नहीं की जाती. उन्होंने कहा कि जिस तरह से रीता बहुगुणा जोशी अपने बेटे के लिए टिकट की मांग पर अड़ी हैं, और इस्तीफा देने की बात कर रही हैं, तो यह मांग गलत है. निगम ने कहा कि बहुगुणा ने किस परिप्रेक्ष्य में सीट जीती, किन मुद्दों पर जीती और किस माहौल में जीती, तमाम बातें अलग हैं. अब यह मांग करना कि वह अपनी सीट से इस्तीफा देंगी और उनके बेटे को टिकट दिया जाए, गलत तर्क है.

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राजनीतिक विश्लेषक देश रतन निगम ने कहा, मैं कई ऐसे लोगों को जानता हूं जो कम्युनिस्ट थे और बसपा में गए. अब भाजपा में जाने की सोच रहे हैं, क्योंकि इन लोगों को लगता है कि बीजेपी ही ऐसी जगह है जहां मेहनत के साथ आगे बढ़ा जा सकता है, इन नेताओं का मानना है कि भाजपा में वंशवाद नहीं है. यह बीजेपी का प्राकृतिक आकर्षण है, इसलिए कहा जा सकता है कि नेता भले ही इधर से उधर हो जाएं, भाजपा का वोटर जुड़ा रहता है.

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