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हरियाणा उपचुनाव : जानें बीजेपी की हार के पांच बड़े कारण

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Published : Nov 10, 2020, 6:24 PM IST

Updated : Nov 10, 2020, 7:22 PM IST

बरोदा विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस की शानदार जीत हुई है. हर बार की तरह इस बार भी बीजेपी यहां जीत का खाता नहीं खोल पाई. इस रिपोर्ट में जानें बीजेपी की हार के पांच बड़े कारण क्या रहे.

हरियाणा में भाजपा की शिकस्त
हरियाणा में भाजपा की शिकस्त

चंडीगढ़: हरियाणा बरोदा विधानसभा की जनता ने उपचुनाव में अपना नेता चुन लिया है. कांग्रेस उम्मीदवार इंदुराज ने बीजेपी उम्मीदवार योगेश्वर दत्त को दस हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से मात दी है. साख की लड़ाई माने जा रहे बरोदा उपचुनाव में भूपेंद्र सिंह हुड्डा अपनी धाक जमाने में कामयाब रहे हैं.

हार के बाद योगेश्वर दत्त ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि कुछ कमी रह गई है, जिस पर विचार किया जाएगा. जो भी कमी रह गई है, उसे ठीक कर लिया जाएगा. हमने काफी मेहनत की आगे भी करते रहेंगे. खेल मेरा जुनून है, और ये जुनून ही मेरी जिंदगी, खेल हमारे जीवन का अहम हिस्सा है

  • कांग्रेस उम्मीदवार इंदुराज को मिले वोट- 60367
  • बीजेपी उम्मीदवार योगेश्वर को मिले वोट- 49850
  • जीत का अंतर- 10517

बात करें भारतीय जनता पार्टी की, तो इस बार उन्होंने अपनी सहयोगी जननायक जनता पार्टी के साथ मिलकर पहलवान योगेश्वर दत्त को साझा उम्मीदवार बनाकर मैदान में उतारा था. मुख्यमंत्री से लेकर बीजेपी के दिग्गज नेता और मंत्री बरोदा विधानसभा में डेरा डाले हुए थे. बीजेपी की तरफ से जोर-शोर से चुनाव प्रचार भी किया गया. इसके बाद भी बीजेपी यहां जीत दर्ज नहीं कर सकी. यहां भाजपा को मिली हार के पांच मुख्य कारण हैं.

योगेश्वर दत्त

कृषि कानून

बीजेपी की हार का पहला और सबसे बड़ा कारण कृषि कानूनों को माना जा रहा है. प्रदेश के किसान इस बार कृषि कानून को लेकर बीजेपी सरकार के खिलाफ थे. भले ही बीजेपी के नेता एमएसपी पर धान खरीद का दावा कर रहे थे, लेकिन जमीनी हकीकत ये थी कि एमएसपी पर खरीद नहीं होने की वजह से किसानों को अपनी फसल औने-पौने दामों पर बेचनी पड़ी. कांग्रेस ने भी इस मुद्दे को जमकर भुनाया और बीजेपी के खिलाफ किसानों के साथ मिलकर मोर्चा खोल दिया. नतीजा ये कहा कि बरोदा विधानसभा सीट पर बीजेपी की जीत का सपना अब सपना ही बनकर रह गया.

जातिगत समीकरण

बरोदा विधानसभा सीट ग्रामीण परिवेश वाला क्षेत्र है. बरोदा के जातिगत आंकड़ें भी बीजेपी के पक्ष में नहीं रहे. यहां के कुल मतदाताओं में से करीब 70 हजार मतदाता जाट समुदाय से हैं और जाट समुदाय हरियाणा में हमेशा से भूपेंद्र सिंह हुड्डा का साथ देता आया है. जातिगत समीकरण को देखते हुए कांग्रेस ने इस सीट से जाट चेहरे को मैदान में उतारा, वहीं बीजेपी का नॉन जाट चेहरे का मैजिक यहां काम ना आ सका. लगातार तीन चुनाव कांग्रेस यहां से जीतती आई है. इस बार भी भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने इसे अपनी साख का सवाल बनाया और लोगों से भावनात्मक रूप से मतदान की अपील की.

विकास का मुद्दा

विकास के मुद्दों को लेकर भी बरोदा की जनता बीजेपी से नाराज नजर आई. खासकर युवाओं में बीजेपी-जेजेपी सरकार के खिलाफ रोजगार को लेकर रोष दिखा. बरोदा के युवा रोजगार को लेकर बीजेपी से नाखुश नजर आए. क्योंकि बीजेपी की तरफ से घोषणाएं तो की गई, लेकिन ना तो बरोदा में कोई नया उद्योग आया और ना ही कोई शिक्षण संस्थान बनाया गया. जिससे युवाओं में खासा रोष दिखा. इतना ही नहीं बिजली और पानी जैसे मूलभूत सुविधाएं भी बीजेपी बरोदा की जनता को उपलब्ध नहीं करवा सकी.

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बढ़ता क्राइम ग्राफ

इन दिनों प्रदेश में क्राइम ग्राफ काफी बढ़ गया है, जिसका असर इस उपचुनाव में देखने को मिला है. चाहे वो फरीदाबाद का निकिता हत्याकांड हो या फिर शराब घोटाला. जहरीली शराब के मामले को भी कांग्रेस ने जमकर भुनाया और बीजेपी पर निशाना साधने में कोई कमी नहीं छोड़ी, बढ़ता क्राइम ग्राफ भी बीजेपी की हार का कारण माना जा रहा है. राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि बीजेपी के नेताओं का अति आत्मविश्वास और बड़बोलापन भी उनको जीत के कोसों दूर ले गया है.

हुड्डा की मजबूत पकड़

सोनीपत लोक सभा सीट नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र हुड्डा का गढ़ कही जाती है. वो बात अलग है कि इसी लोक सभा सीट से साल 2019 में भूपेंद्र हुड्डा को हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन विधानसभा चुनाव में भूपेंद्र हुड्डा ने फिर से अपनी मौजूदगी का अहसास करवाया है. जाट बहूल क्षेत्र में कांग्रेस का दबदबा रहा है. बात करें बरोदा विधानसभा सीट की तो यहां से तीन बार विधायक स्वर्गीय श्रीकृष्ण हुड्डा रहे. इस बार भी कांग्रेस ये उपचुनाव जीत कर साख को बचाने में कामयाब रही है. अभी तक बीजेपी इस सीट पर खाता भी नहीं खोल पाई है.

Last Updated : Nov 10, 2020, 7:22 PM IST

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