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सर्जिकल स्ट्राइक के बाद हिंदी फिल्मों में फिर लगा 'देशभक्ति का तड़का'

2016 : भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक कर घुसपैठ की फिराक में सीमा के इर्द -गिर्द छिपे आतंकवादियों के ठिकाने पर हमला किया. हालांकि पाकिस्तान ने भारत के दावे का खंडन किया. इस घटना के बाद भारतीय फिल्माकारों का रुझान देशभक्ति और राष्ट्रवाद की ओर बढ़ गया.

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Published : Sep 29, 2021, 9:04 PM IST

हिंदी फिल्म
हिंदी फिल्म

नई दिल्ली : इतिहास में 29 सितंबर का दिन भारत द्वारा पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश कर उसके आतंकवादी शिविरों को नेस्तनाबूद करने के साहसिक कदम के गवाह के तौर पर दर्ज है. भारत ने जहां इस अभियान को सफलतापूर्वक अंजाम देने का दावा किया, वहीं पाकिस्तान ने ऐसी किसी भी कार्रवाई से इनकार किया. इस दिन भारत ने भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक कर घुसपैठ की फिराक में सीमा के इर्द -गिर्द छिपे आतंकवादियों के ठिकाने पर हमला करने का दावा किया.

जम्मू-कश्मीर के उरी सेक्टर में नियंत्रण रेखा के पास भारतीय सेना के स्थानीय मुख्यालय पर आतंकवादी हमले में 18 जवान शहीद हो गए थे. इसे भारतीय सेना पर सबसे बड़े हमलों में से एक माना गया. 18 सितम्बर 2016 को हुए उरी हमले में सीमा पार बैठे आतंकवादियों का हाथ बताया गया. भारत ने इस हमले का बदला लेने के लिए 29 सितंबर को पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया.

उरी हमले के 10 दिन बाद भारतीय सेना ने पाकिस्तानी आतंकियों को सबक सिखाने का प्लान बनाया. इसके लिए करीब 150 कमांडोज की एक टीम बनाई.इस टीम ने दुश्मन की सीमा में घुसकर आतंकियों के खिलाफ बहुत बड़ा ऑपरेशन प्लान किया जा रहा था. शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व संग एनएसए अजीत डोवाल की ओर से सेना को निर्देशित किया गया था और इस ऑपरेशन के लिए थोड़ी छूट दी गई थी.

भारतीय सेना के जवान पूरी तरह तैयार थे. 28-29 सितंबर की आधी रात जवानों ने पीओके में 3 किलोमीटर अंदर घुसकर आ​तंकियों के ठिकानों को तबाह कर डाला और 38 आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया. इस घटना ने केवल दुश्मनों के शिविरों को नेस्तनाबूद किया बल्कि भारतीय फिल्म उद्योग पर प्रभाव डाला. इस घटना के बाद भारतीय फिल्माकारों का रुझान देशभक्ति और राष्ट्रवाद की ओर बढ़ने लगा.

देशभक्ति से राष्ट्रवाद तक

लेखक विनोद मिरानी का कहना है कि जब भारत में फिल्म उद्योग की शुरुआत हुई, तो दर्शकों को आकर्षित करने के लिए सबसे अच्छी और सबसे सुरक्षित थीम धार्मिक कहानी वाली पौराणिक फिल्में बनाना था. भारत में फिल्म उद्योग के संस्थापक दादा साहब फाल्के ने अपनी पहली फिल्म राजा हरिश्चंद्र बनाई थी. पहली भारतीय बोलती फिल्म आलम आरा भी एक धार्मिक विषय पर आधारित थी.

1940 के दशक के दौरान स्वतंत्रता संग्राम अपने चरम पर पहुंच गया और देशभक्ति और स्वतंत्रता आंदोलन को बढ़ावा देने के लिए फिल्म बनाए जाने लगीं. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान फिल्मों को उत्साह को बढ़ावा देने के लिए एक माध्यम के रूप में इस्तेमाल किया गया था.

उस समय फिल्मों की सेंसरिंग काफी सख्त थी, और देशभक्ति से भरे फिल्म निर्माताओं को देशभक्ति को बढ़ावा देने के लिए सरोगेट का सहारा लेना पड़ा. हमारे पास देशभक्ति को बढ़ावा देने वाली कुछ बेहतरीन फिल्में थीं.

यह मनोदशा 1950 के दशक के अंत तक बनी रही. यह शहरों की सड़कों को छोड़कर धीरे-धीरे सभी जगह खत्म हो गया. प्रत्येक 14 अगस्त और 25 जनवरी को - स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर - प्रत्येक शहर और कस्बे की सड़कों पर माइक्रोफोन से देशभक्ति की धूम मची.

जैसे फिल्मों ने देशभक्ति का त्याग किया, वैसे ही सड़क पर जश्न मनाने वालों ने भी देशभक्ति फिल्मों से ब्रेक ले लिया. इस बीच पाकिस्तान के साथ 1965 के युद्ध के बाद इस देशभक्ति को कुछ समय के लिए पुनर्जीवित किया गया था. भारतीय जीत जिसने फिल्मों में देशभक्ति को पुनर्जीवित कर दिया हालांकि यह केवल कुछ समय के लिए ही था.

1948 और 1962 के युद्धों के बाद से भारत ने पहली बार ऐसे परिणाम प्राप्त किए, जो सशक्त रूप से राष्ट्र के पक्ष में थे. तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री द्वारा गढ़े गए 'जय जवान जय किसान' के नारे से प्रेरित होकर, मनोज कुमार ने एक आदर्श फिल्म उपकार की पटकथा लिखी. इसने पहलवान-अभिनेता दारा सिंह और कुछ अन्य लोगों को भी देशभक्ति का पालन करने के लिए प्रेरित किया.

1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद भारत में लोगों की देशभक्ति को धक्का लगा. इस दौरान लता मंगेशकर द्वारा लाइव गाया गया हकीकत फिल्ग का गीत 'ऐ मेरे वतन के लोगों' ने जनता में वो उत्साह नहीं भर सका, जो पहला था. आज, लोगों को यह भी लगता है कि यह गाना अब और नहीं बजाया जाना चाहिए क्योंकि इसमें एक हारते हुए राष्ट्र के बारे में निराशाजनक कहानी है. विभिन्न राज्य सरकारों से मनोरंजन छूट के बावजूद हकीकत विफल रही. इसके बाद हिंदुस्तान की कसम से निर्देशक ने लोगों में देशभक्ति भरने का एक और प्रयास था.

हालांकि कारगिल युद्ध के बाद देशभक्ति फिर से जाग उठी. निर्माता-निर्देशक जेपी दत्ता, जिनका झुकाव युद्ध फिल्मों की ओर है (उनके भाई एक वायु सेना के पायलट थे, जिनकी कार्रवाई में मृत्यु हो गई), उन्होंने, एलओसी: कारगिल का निर्देशन किया.

फिल्म को नाटकीय रिलीज से कुछ दिन पहले मुंबई के प्रमुख फाइनेंसरों और हीरा व्यापारियों के साथ-साथ अन्य व्यापारिक नेताओं के लिए प्रदर्शित किया गया था. इसे सर्वसम्मति से एक बोरिंग डड घोषित कर दिया गया. हो सकता है, उनके अवलोकन फिल्म की योग्यता पर थे, लेकिन वे राष्ट्रीय मनोदशा को पढ़ने में विफल रहे. यह फिल्म हिट बनकर उभरी. इसके बाद दत्ता ने कुछ और देशभक्ति फिल्में कीं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

समय के साथ, 'जीवन संग्राम', 'सात हिंदुस्तानी', 'शहीद', 'विजेता', 'बॉर्डर', 'एलओसी: कारगिल', 'स्वदेश' और 'मंगल पांडे' जैसी कई देशभक्ति फिल्में बनाई गई हैं. लोग काफी उत्साहित नहीं हुए और इनमें से अधिकांश फिल्मों नाकाम रहीं. एक हिट शहीद थी, जिसके बाद इस फिल्म के पीछे के व्यक्ति, मनोज कुमार ने खुद को देशभक्ति फिल्मों के सर्वश्रेष्ठ फिल्म निर्माता के रूप में स्थापित किया, क्योंकि उन्होंने इसके बाद उपकार, पूरब और पश्चिम और क्रांति जैसी फिल्मों में काम किया.

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इस के साथ चीजें बदल गईं. देशभक्ति ने अब अपना दायरा बढ़ा लिया और इसे राष्ट्रवाद के रूप में वर्णित किया गया और यह लोगों की मनःस्थिति के अनुरूप प्रतीत होता है.हमारे पास हाल के वर्षों में राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने वाली फिल्मों की एक श्रृंखला है और उनमें से कई को अनुकूल प्रतिक्रिया मिली है.

ऐसी फिल्में हैं जो इवेंट बेस्ड होती हैं. ये हैं: ए वेडनेसडे!, एयरलिफ्ट, उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक, मिशन मंगल, परमाणु: द स्टोरी ऑफ पोखरण, राजी, मणिकर्णिका: द क्वीन ऑफ़ झांसी, द गाजी अटैक और इस साल की अब तक की सबसे बड़ी हिट तानाजी: द अनसंग वॉरियर. वास्तव में, पिछले साल की सबसे बड़ी हिट फिल्मों में से कई देशभक्ति पर बेस है.

राष्ट्रवाद को प्रेरित करने का एक और तरीका फिल्मों के माध्यम से देश को गौरवान्वित करना है. जैसा कि दंगल, गोल्ड, धोनी: द अनटोल्ड स्टोरी, डी डे, रंग दे बसंती, पद्मावत, मैरी कॉम, केसरी, बजरंगी भाईजान, एक था टाइगर, सुपर 30 ने कर के दिखाया.

जैसा कि वे कहते हैं, रील लाइफ वास्तविक जीवन का प्रतिबिंब है. स्वतंत्रता के बाद, सभी प्रकार की फिल्में बनाई गईं, और संगीत के साथ रोमांस और पारिवारिक सामाजिकता ने 1960 के दशक की शुरुआत तक अच्छी तरह से काम किया. 70 के दशक के मध्य में, चलन स्थापना विरोधी फिल्मों का था. इसके बाद अनिश्चितता का दौर आया जब कोई नहीं जानता था कि क्या काम करेगा. केवल रोमांटिक संगीत बनाना ही सुरक्षित माना जाता था. लेकिन पिछले दशक ने राष्ट्रवाद की भावना को फिर से जगाया है.

(इनपुट- एजेंसी)

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