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अमजद खान व उनके पिता जयंत का अलवर से रहा है गहरा नाता, आज भी जिंदा हैं यादें

हिन्दी सिनेमा की चर्चित फिल्म 'शोले' के गब्बर सिंह यानी अमजद खान और उनके पिता अभिनेता जयंत का राजस्थान के अलवर जिले से पुराना रिश्ता रहा है. मुंबई इनकी कर्म भूमि रही है तो बचपन अलवर में बीता है. उनका पुराना मकान आज भी वहां मौजूद है. जकारिया खान यानी जयंत का काफी दिनों तक अलवर आना जाना भी था. जयंत और उनसे जुड़ी बातें आज भी अलवर वासियों के जहन में हैं.

Jayant have deep relations with Alwar
जयंत का अलवर से रहा है गहरा नाता

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Published : Jun 2, 2022, 9:32 AM IST

अलवर. फिल्मी दुनिया में कभी न मिटने वाली पहचान बनाने वाली और अपनी अमिट छाप छोड़ने वाली फिल्म शोले का नाम जब भी आता है तो गब्बर सिंह का किरदार लोगों के जहन में कौंधने लगता है. गब्बर सिंह का किरदार निभाने वाले अमजद खान का नाम और उनके फेमस डॉयलॉग 'जो डर गया...समझो मर गया' आज भी लोगों की जुबान पर चढ़े हैं. खास बात ये है कि मुंबई में अपनी खास पहचान बनाने वाले अमजद खान और उनके पिता जकारिया खान का अलवर से गहरा नाता रहा है. जकारिया खान भी सफल फिल्मी कलाकार रहे हैं. फिल्मी दुनिया में कदम रखने से पहले जकारिया अलवर में पुलिस ऑफिसर के पद पर तैनात थे. जिले में जहां वह रहते थे, वहां के लोग आज भी उनको याद करते हैं. दिवंगत जकारिया खान को फिल्मी दुनिया में लोग 'जयंत' के नाम से जानते हैं.

जयंत का जन्म नोदेह पायन (नवा काली), पेशावर, उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत, ब्रिटिश भारत में 15 अक्टूबर 1915 को हुआ था. उनका नाम जकारिया खान रखा गया था. वह एक पश्तून परिवार से थे. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पाकिस्तान में पूरी की. उसके बाद वह अपने परिवार के साथ हिंदुस्तान आ गए. हिंदुस्तान में उन्होंने आगे की पढ़ाई पूरी की. अलवर के महाराज जय सिंह से जयंत के पिता की दोस्ती थी. इसलिए उनका राज परिवार में आना जाना भी था.

राजस्थान के अलवर से रहा है जयंत का पुराना नाता

महाराज जयसिंह ने जयंत को पुलिस ऑफिसर का दिया था पद
राज परिवार के प्रतिष्ठित सम्मानीय सलाहकारों में उनकी गिनती हुआ करती थी. महाराज जयसिंह ने जयंत को पुलिस में ऑफिसर का पद दिया था. कई सालों तक उन्होंने पुलिस में ऑफिसर के पद पर नौकरी की. अलवर के कटला क्षेत्र में चर्च के सामने जयंत का मकान है जहां वह अपने परिवार के साथ रहते थे. हालांकि उनके जाने के बाद उस मकान को किसी अन्य बड़े परिवार को बेच दिया गया. स्थानीय लोगों ने कहा कि आज भी उनकी यादें लोगों के जहन में हैं. फिल्मी दुनिया में कदम रखने से पहले जयंत अपने दोनों बेटे और परिवार के साथ अलवर में रहते थे. उनके नाम पर आज भी यहां एक संस्था चलती है जिसकी ओर से समय-समय पर कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं.

निर्माता-निर्देशक विजय भट्ट ने दिया था 'जयंत' नाम
जयंत लंबे कद के थे और उनकी आवाज भी भारी थी. उन्होंने जयंत नाम से कई भारतीय फिल्मों में अभिनय किया है. उन्होंने विजय भट्ट की पहली गुजराती फिल्म संसार लीला (1933) में काम किया था. जयंत नाम उन्हें निर्देशक और निर्माता विजय भट्ट ने ही दिया था. उन्होंने बॉम्बे मेल (1935), चैलेंज (1936), हिज हाईनेस (1937) और स्टेट एक्सप्रेस (1938) जैसी कई फिल्मों में मुख्य भूमिका निभाई थी. जयंत शादीशुदा थे और उनके बच्चे अमजद खान (गब्बर सिंह) और इम्तियाज खान थे. वह शादाब खान, अहलम खान, सीमाब खान और आयशा खान के दादा और शैला खान और कृतिका देसाई खान (इम्तियाज की पत्नी) के ससुर थे.

अलवर में जयंत का पुराना मकान

जयंत का निधन उनके बेटे अमजद खान की सबसे सफल फिल्म शोले की रिलीज से दो महीने पहले 2 जून 1975 को 60 साल की उम्र में मुंबई में ही हुआ था. उनकी मृत्यु गले के कैंसर के कारण हुई थी. उन्हें मुंबई में बांद्रा पश्चिम के नौपाड़ा कब्रिस्तान में दफनाया गया था. लोग आज भी अमजद खान व उनके पिता जयंत खान को याद करते हैं.

परिवार के सदस्य थे खूबसूरत व अलवर में थी नामी परिवारों में पहचान
स्थानीय लोगों ने बताया कि जयंत व उनके परिवार की पहचान अलवर के नामी परिवारों में होती थी उनका परिवार पढ़ा-लिखा विराज परिवार से संबंध रखता था परिवार के सभी सदस्य दिखने में खूबसूरत व डीलडौल में मजबूत थे। लोग उनके साथ फोटो खिंचवाने व मिलने के लिए बेताब रहते थे।

इप्टा के थे सदस्य:अमजद खान और उनके पिता जयंत इप्टा के सदस्य रहे हैं. हालांकि स्थानीय लोगों ने कहा कि अलवर से जाने के बाद वह कभी लौटकर अलवर नहीं आए. कई बार इप्टा के प्रोग्राम में उनको यहां लाने का प्रयास किया गया लेकिन व्यस्तता के चलते वह नहीं आ पाए थे.

दंगों के दौरान पूरा परिवार अलवर छोड़कर मुंबई गया:जयंत और उनका पूरा परिवार अलवर में चर्च रोड स्थित जिस हवेली में रहता था वह पुराने समय में एक मस्जिद हुआ करती थी. आजादी के समय 1947 में देशभर में दंगे होने लगे थे. अलवर हमेशा से हिंदू संगठनों का गढ़ रहा है. ऐसे में यहां होने वाले दंगों के दौरान अलवर छोड़कर पूरा परिवार मुंबई चला गया था.

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