भोपाल। संत हिरदाराम नगर की एक झुग्गी बस्ती में रहने वाली ज्योति केलकर बीटेक करना चाहती थी, लेकिन उनके पिता मिस्त्री (कारीगर) का काम करते थे, तो उनके लिए अपनी बेटी का सपना पूरा करना मुश्किल हो रहा था. 5 साल पहले उनकी मुलाकात आसूदो से हुई, आसूदो ने ज्योति के पालक पिता की भूूमिका का निर्वहन करते हुए उसका एडमिशन भोपाल के टॉप प्राइवेट इंस्टीट्यूट में करवाया. इस साल ज्योति का फाइनल है और वह सीएस ब्रांच से बीटेक कम्पलीट करने वाली है, ऐसे ही 17 बच्चों का भविष्य संवार चुके हैं 73 वर्षीय आसूदो लच्छवानी.
आसूदो ने उठाया बच्चों को बेहतर जीवन देने का बीड़ा:रिटायरमेंट के बाद आमतौर पर लोग अपना जीवन आराम करने में गुजारते हैं, लेकिन संत हिरदाराम नगर के रहने वाले आसूदो लच्छवानी ने आर्थिक रूप से कमजोर परिवार के बच्चों को बेहतर जीवन देने का बीड़ा उठा लिया. वे हर दिन नियमित रूप से अपने परमानेंट जॉब की तरह इस मिशन को करते हैं. शनिवार को जब उनकी कहानी जानने के लिए कॉल किया तो वे एक छात्र का प्रवेश कराने के लिए बस सीहोर के वीआईटी इंस्टीट्यूट लेकर गए थे, वह भी बस से. पूरी तरह साधारण जीवन जीकर आसाधरण काम करने वाले आसूदो से संत हिरदाराम जी की कुटिया के पास मुलाकात हुई, यही इनका घर है, जिसमें वे अपने परिवार के साथ रहते हैं.
आसूदो लच्छवानी से बातचीत की शुरूआत हुई तो वे बोले कि "मेरा एकमात्र लक्ष्य है कि धन के अभाव में कोई बच्चा पढ़ाई से वंचित ना हो जाए, इसी सोच के साथ बीते 7 साल से जरूरतमंद बच्चों की पढ़ाई के लिए आर्थिक मदद दिला रहा हूं. वे ऐसे बच्चों की तलाश करते हैं, जो 10वीं व 12वीं में 80 फीसदी से अधिक नंबर लाने के बाद भी अपनी आगे की पढ़ाई आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण नहीं कर पाते हैं. आसूदो ऐसे ही बच्चों की खोजबीन करके उन्हें आर्थिक मदद दिला कर न केवल कॉलेज में एडमिशन दिलाते हैं, बल्कि उन्हें डॉक्टर, इंजीनियर और सीए बनवा कर ही दम लेते हैं."
7 साल में 17 का बन गया करियर:आसूदो के प्रयासों की वजह से मदद पाकर सालाना 1.20 से 3.60 लाख रुपए तक का पैकेज स्टूडेंटस पाने लगे हैं, अब वे स्टूडेंट्स अपने आप दूसरों की भी मदद कर रहे हैं. आसूदो ने बताया कि अब तक वह 5 बच्चों को सीए(CA), 7 को इंजीनियर, एक को एमबीबीएस(MBBS) की पढ़ाई पूरी करवा चुके हैं. इन बच्चों में से कई की माताएं घरों में काम करके जैसे तैसे परिवार चलाती हैं, किसी के पिता नहीं है तो जिनके पिता हैं, वे बैरागढ़ में ही दुकानों पर काम करके गुजर बसर कर रहे हैं. अभी उनकी सूची में 65 से अधिक बच्चे शामिल है, जिन्हें हर साल 7 लाख रुपए तक की सहायता राशि पहुंचाई जा रही है.
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