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बिहार में सरकारी अस्पताल ने मुंह फेरा, पिता ने अपनी सांसों से बच्चे की जिंदगी लौटाई - पिता ने अपनी सांसों से बच्चे की जिंदगी लौटाई

बिहार में कोरोना की दूसरी लहर (second wave of corona in bihar) के दौरान ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए दर-दर भटकते लोगों की तस्वीरें सभी को याद होंगी. तब अस्पतालों और घरों में कोरोना के मरीज (Corona patients in hospitals and homes) एक-एक सांस के लिए तड़पते दिखे थे. आज ऐसी ही एक तस्वीर बिहार के भोजपुर जिले से आई है, जो एक बार फिर सोचने के लिए मजबूर करती है कि हमारी व्यवस्था कितनी पंगु है.

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Published : Mar 15, 2022, 7:52 PM IST

भोजपुर:बिहार के भोजपुर जिले का वीडियो सोशल मीडिया (Bhojpur child Video Viral) में तेजी से वायरल हो रहा है. इसमें एक पिता अपने दुधमुंहे बच्चे को मुंह से ऑक्सीजन दे रहा है. दावा किया जा रहा है कि पीरो बाजार के शिवनाथ टोला निवासी अर्जुन चौधरी का 2 साल का बेटा ऋषभ घर के बाहर खेल रहा था. तभी खेलते वक्त बच्चा नाली में गिर गया और बेहोश हो गया. नाली ज्यादा गहरी होने के कारण पानी बच्चे के फेफड़ों में भर गया.

सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में देखा जा रहा है पिता अपने 2 साल बच्चे की जान बचाने के लिए मुंह से ऑक्सीजन (Father gave oxygen from mouth to save child) दे रहा है. वीडियो देखने से ऐसा लग रहा है जैसे कि बच्चे को सांस लेने में तकलीफ हो रही है. इस वजह से पिता गोद में लिए अपने बच्चे को ऑक्सीजन दे रहा है. बेटे की हालत गंभीर होता देखकर पिता अपनी बहन के साथ बाइक से लेकर स्वास्थ्य केंद्र पहुंचा, लेकिन अस्पताल में डॉक्टर मौजूद नहीं थे.

देखें वायरल वीडियो

परिजन अस्पतालकर्मियों से गुहार लगाते रहे लेकिन बिना किसी जांच या रेफर प्रोटोकॉल के उन्हें आरा सदर अस्पताल ले जाने को बोल दिया गया. बच्चे की हालत देखकर पिता बदहवास था. बेटे की सांसें उखड़ने लगी तो बेबस पिता अस्पताल के सामने ही बाइक पर बैठे-बैठे मुंह से बच्चे को ऑक्सीजन देने लगा. उसके सीने को हाथ से दबाकर सीपीआर देने लगा तब जाकर बेटे में हलचल हुई. इसके बाद वे 40 किलोमीटर दूर बाइक से उसे सासाराम के एक प्राइवेट अस्पताल ले गए. फिलहाल बच्चे की हालत ठीक है. डॉक्टरों के मुताबिक उसे पिता ने समय पर मुंह से सांस और सीपीआर नहीं दिया होता तो कुछ भी अनहोनी हो सकती थी.

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वहीं स्थानीय लोगों ने बताया कि सरकारी अस्पताल से डॉक्टर हमेशा नदारद रहते हैं. अस्पताल में मरीजों की देखरेख ठीक से नहीं होती. ऋषभ के मामले में अगर पिता ने ये सब ना किया होता तो हमारे सिस्टम ने मासूम को मार डाला होता. जब जरूरतमंदों को समय पर इलाज नहीं मिल पाता तो सवाल उठता है कि आखिर किस काम के ये डॉक्टर, अस्पताल और सिस्टम? क्या सिर्फ तनख्वाह लेकर लापता रहने के लिए है ये पूरी व्यवस्था. एक बार सरकार और प्रशासन को इस विषय पर गंभीरता से सोचना होगा.

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