नई दिल्ली :प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीन कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की घोषणा का संयुक्त किसान मोर्चा ने स्वागत किया है. लेकिन आंदोलन समाप्त होने के आसार बहरहाल नहीं दिख रहे हैं. जैसे ही प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए यह घोषणा की कि किसान नेताओं और अन्य विपक्षी पार्टी के नेताओं की भी प्रतिक्रिया आनी शुरू हो गई.
उम्मीद जताई जा रही थी कि प्रधानमंत्री के अपील पर किसान दिल्ली की सीमा को खाली कर घर वापसी शुरू कर देंगे, लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा की तरफ से बयान आया कि उचित संसदीय प्रक्रियाओं के माध्यम से घोषणा प्रभावी होने तक वह इंतजार करेंगे. बहरहाल, जब तक संसद की कार्यवाही शुरू होने के बाद ये कानून रद्द नहीं हो जाते तब तक किसान अपने मोर्चों पर बने रहेंगे. इसके साथ ही किसान मोर्चा ने आंदोलन के दौरान 700 से ज्यादा किसानों की मौत और लखीमपुर की घटना में हुई मौतों के लिए भी सरकार को जिम्मेदार ठहराया है.
जानकारी के मुताबिक, भारतीय किसान यूनियन के नेता धर्मेंद्र मालिक ने प्रधानमंत्री की घोषणा पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अच्छा होता यह निर्णय सरकार की तरफ से पहले आ गया होता. यदि सरकार ने किसानों की बात पहले सुनी होती तो आज 700 से ज्यादा किसानों की जान बच सकती थी. मालिक ने आगे कहा कि देर आए दुरुस्त आए. प्रधानमंत्री ने आज कानून वापसी की बात की है, लेकिन ये कानून तो वैसे भी किसानों पर थोपे गए थे. हमारी मुख्य मांग तो एमएसपी के गारंटी की रही है. प्रधानमंत्री कहते हैं कि देश में एमएसपी थी, है और रहेगी लेकिन हमारा कहना है कि किसानों को एमएसपी मिलती नहीं है. यह सबसे बड़ा सवाल है और इसलिए आंदोलन के आगे की दिशा संयुक्त किसान मोर्चा के बैठक में ही तय होगी.
उन्होंने कहा कि किसानों को प्रधानमंत्री सम्मान निधि का दान नहीं बल्कि फसल का पूरा दाम चाहिए. किसान मोर्चा की तरफ से आंदोलन के दौरान मृत हुए किसानों के लिए एक करोड़ प्रति परिवार मुआवजा और परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी की मांग भी कुछ नेताओं द्वारा की गई है.
हालांकि, संयुक्त किसान मोर्चा के आधिकारिक बयान में इसका जिक्र नहीं है. तीन कृषि कानूनों के वापसी को आंदोलनरत किसान एक बड़ी जीत के रूप में तो देख रहे हैं, लेकिन उनके मुताबिक बिना एमएसपी गारंटी कानून के यह लड़ाई अधूरी है और वह इस लड़ाई को जारी रखने के मूड में है.