नई दिल्ली: जहां एक तरफ सरकार द्वारा एमएसपी को प्रभावशाली बनाने के उद्देश्य से गठित कमेटी की दूसरी बैठक हैदराबद में अगले हफ्ते होनी तय है, वहीं दूसरी तरफ एमएसपी पर अनिवार्य खरीद के लिये कानून बनाने के पक्ष में संघर्ष कर रहे किसान संगठनों का दावा है कि उनके सुझाए फॉर्मूले से किसानों के फसल की खरीद एमएसपी पर संभव है. हालांकि शर्त यह है कि सरकार इस पर काम करे. दिल्ली में किसान संगठनों द्वारा एमएसपी पर आयोजित अधिवेशन में देश के कई बड़े किसान नेता जुटे.
इस अधिवेशन के बाद पारित प्रस्ताव में यह कहा गया है कि किसानों के कुल फसल को सरकार द्वारा ही एमएसपी पर खरीद पाना बिल्कुल संभव है. हालांकि विशेषज्ञ कहते रहे हैं कि सरकार के लिये यह संभव हो ही नहीं सकता. वर्तमान में सरकार द्वारा 23 फसलों पर एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा रबी और खरीफ मौसम के लिये की गई है. इन फसलों में धान, गेहूं, मक्का, ज्वार, बाजरा, रागी, जौ, चना, अरहर, मूंग, उड़द, मसूर, मूंगफली, सोयाबीन, सरसों, सूरजमुखी, तिल, कुसुम, रामतिल, गन्ना, कपास, कच्चा जूट और नारियल शामिल हैं.
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यदि इन सभी 23 फसलों के कुल उत्पादन को एमएसपी पर खरीद की जाए तो कुल राशी 10.78 लाख रुपये बनती है. लेकिन एक तथ्य यह भी है कि कृषि के इन 23 फसलों के कुल उत्पादन के खरीद की आवश्यकता भी नहीं पड़ती, क्योंकि कुल उत्पादन का एक हिस्सा किसान स्वयं के उपभोग, अगले मौसम की बुआई और पशुओं के आहार के लिये भी बचा कर रखता है. ऑल इंडिया किसान खेत मज़दूर संगठन द्वारा इसे लेकर आंकड़े जारी किए हैं.
इन आंकड़ों के अनुसार रागी के कुल उत्पादन का 50% से कम, गेहूँ का 75%, धान 80%, गन्ना 85%, अधिकांश दालें 90% और कपास जूट आदि के कुल उत्पादन का 95% हिस्सा बिक्री के लिये उपलब्ध होता है. यदि कुल उत्पाद की औसत मात्रा 75% है, तो इसे एमएसपी पर खरीदने के लिये आठ लाख करोड़ से कुछ ज्यादा धन राशि की जरूरत होगी. संगठन का कहना है कि इस सूची में से गन्ने को बाहर रखना चाहिये, क्योंकि गन्ने की खरीद मिल मालिक करते हैं और किसानों को सीधा भुगतान होता है.
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कपास और जूट की बात करें तो विशेषज्ञ किसानों का कहना है कि यदि सरकार केवल कुल उत्पाद का 40% भी खरीद लेती है तो किसानों को खुले बाज़ार में लाभकारी कीमत मिल पाएगी और सरकार पर ज्यादा बोझ नहीं रहेगा. यदि सरकार द्वारा ही खाद्य और अन्य आवश्यक कृषि उपज जनता को सस्ते दर में बेचा जाए तो लोगों को वस्तुएं सस्ते दर पर मिलेंगी और सरकार के खजाने में भी बड़ी रकम एकत्रित होगी.