नई दिल्ली :संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन तीन कृषि कानूनों को निरस्त किये जाने के बाद किसान मोर्चा का रुख लगातार नरम होता दिखाई दे रहा है. बुधवार को संयुक्त किसान मोर्चा में शामिल हरियाणा के 23 किसान संगठनों और पंजाब के 32 किसान संगठनों की कुंडली स्थित संयुक्त किसान मोर्चा (SAMYUKTA KISAN MORCHA) के मुख्यालय में अलग-अलग बैठक हुई.
दोनों गुट आंदोलन वापस लेने के लिये सहमत हुए लेकिन उनकी मांग है कि सरकार मुकदमें वापस लेने और एमएसपी कानून पर बातचीत के लिये कमेटी गठित करने की बात लिखित रूप में दे. जहां तक आंदोलन के दौरान मृत किसानों की बात है, किसान संगठनों का कहना है कि पंजाब सरकार ने मृत किसानों के परिवार को 5 लाख रुपये मुआवजा और परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने की बात कही है. यदि उसी तर्ज पर हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान की सरकार भी मान जाए तो वह मान जाएंगे.
हरिंदर सिंह लखोवाल से विशेष बातचीत वहीं, पंजाब की 32 और हरियाणा के 23 संगठनों के अलावा संयुक्त किसान मोर्चा में शामिल अन्य किसान संगठनों की राय इससे अलग है. वह चाहते हैं कि संसद के शीतकालीन सत्र में ही एमएसपी गारंटी कानून बना दिया जाए और यदि सरकार को समय चाहिये तो वह ठोस आश्वासन दे कि कितने समय में वह कानून बना देंगे. इस तरह से संयुक्त किसान मोर्चा में शामिल किसान संगठनों ने न केवल अलग अलग बैठकें करनी शुरू कर दी हैं बल्कि उनके अलग अलग बयान भी सामने आ रहे हैं. जहां पंजाब और हरियाणा के किसान संगठन अब नरमी के साथ आंदोलन का समापन चाह रहे हैं वहीं दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और अखिल भारतीय किसान सभा अड़ियल रुख के साथ आंदोलन आगे भी जारी रखना चाहते हैं.
किसान मुकदमे लेकर घर वापस नहीं जाना चाहते : लखोवाल
'ईटीवी भारत' ने इन तमाम विषयों पर पंजाब के भारतीय किसान यूनियन के महासचिव हरिंदर सिंह लखोवाल से विशेष बातचीत की. उन्होंने अपना मत बताया कि तमाम किसान संगठन अब घर जाना चाहते हैं बशर्ते कि सरकार जो भी प्रस्ताव उनके पास अनौपचारिक रूप से भेज रही है वह लिखित में भेजे. लखोवाल ने कहा कि देर से ही सही लेकिन सरकार ने सकारात्मक पहल की है इसलिये किसान संगठनों ने भी लचीलापन दिखाया है. किसान मुकदमे लेकर घर वापस नहीं जाना चाहते हैं. जहां तक एमएसपी का सवाल है, सरकार ने कमेटी बनाने का प्रस्ताव उनके पास भेजा था जिसमें पांच किसान नेताओं को शामिल करने की बात कही गई है. पंजाब के किसान संगठनों ने 2 नामों पर विचार भी कर लिया है और अन्य नामों पर संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में विचार किया जाएगा.
किसान संगठनों की मांग है कि सरकार एमएसपी पर जो कमेटी गठित करना चाहती है उसकी एक तय समय सीमा होनी चाहिये जिसके भीतर कमेटी को निष्कर्ष पर आना होगा और एमएसपी पर कानून बनाने की प्रक्रिया शुरू होगी. जहां तक आंदोलन के दौरान किसानों पर दर्ज मुकदमे की बात है, किसान संगठनों का कहना है कि केवल हरियाणा में ही 48000 किसानों पर मुकदमे दर्ज हैं, हालांकि राज्य सरकार ने मुकदमे वापसी का संकेत दिया है लेकिन 26 जनवरी के ट्रैक्टर मार्च के दौरान जो मुकदमे दिल्ली में दर्ज हुए उसे वापस लेना केंद्र सरकार के हाथ में है और गृह मंत्रालय को यह लिखित में देना चाहिये कि किसानों पर आंदोलन के दौरान दर्ज सभी मुकदमे वापस ले लिये जाएंगे.
कुल मिलाकर अब इन किसान संगठनों की 4 मांगें हैं जिस पर वह केंद्र सरकार से ठोस आश्वासन चाहते हैं. हालांकि इन संगठनों से अलग विचार रखने वाले टिकैत गुट और अखिल भारतीय किसान सभा के नेता चाहते हैं कि सरकार चंद किसान संगठनों को अनौपचारिक रूप से प्रस्ताव या उनसे बातचीत करने की बजाय सीधे संयुक्त किसान मोर्चा से संवाद करे और उन्हें वार्ता के लिये आमंत्रित करे.
3 दिसंबर को फिर होगी बैठक
पंजाब के 32 किसान संगठनो ने अब एक बार फिर 3 दिसंबर को बैठक करने की बात कही है. सरकार को एक दिन का समय देते हुए मांग की है कि वह उनकी अगली बैठक से पहले अपना प्रस्ताव लिखित में भेजें. राकेश टिकैत ने अपना धमकी भरा अड़ियल रुख बरकरार रखते हुए कहा कि सरकार ने यदि मांगें नहीं मानी तो 26 जनवरी को एक बार फिर वह लाखों ट्रैक्टरों के साथ दिल्ली में प्रवेश करेंगे. लेकिन पंजाब की जत्थेबंदीयों का मानना है कि अब अन्य मांगों के लिये संवाद का रास्ता अपनाना चाहिये.
'जीत में शत प्रतिशत मिले ऐसा जरूरी नहीं'
हरिंदर सिंह लखोवाल कहते हैं कि कभी भी जीत में शत प्रतिशत मिले ऐसा जरूरी नहीं होता है. किसानों की लड़ाई आगे भी जारी रहेगी. उनका संगठन 50 साल पुराना है और उनके पिता ने भी किसानों के लिये लगातार संघर्ष किये हैं. आगे के एजेंडे में स्वामिनाथन कमीशन की रिपोर्ट लागू करवाना और किसानों के कर्ज माफ करवाना है. कमेटी की समय सीमा वह इसलिये चाहते हैं कि कहीं ऐसा न हो कि कमेटी में बातचीत और चर्चा ही कई वर्षों तक चलती रहे और कुछ नतीजा ही न निकल सके. केंद्रीय कृषि मंत्री द्वारा संसद में किसानों की मौत और उनके मुआवजे की मांग पर कहा गया कि केंद्रीय कृषि मंत्रालय के पास आंदोलन के दौरान किसानों की मौत का कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है इसलिये इसका सवाल पैदा नहीं होता. कृषिमंत्री के बयान की तमाम किसान संगठनों ने आलोचना की है. लखोवाल ने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा के पास तमाम आंकड़े उपलब्ध हैं और यदि सरकार मांगती हैं तो वह जरूर आंकड़े देंगे.
पढ़ें- किसानों की मौत का रिकॉर्ड नहीं कहकर उनके बलिदान का अपमान कर रही सरकार: SKM
कुल मिलाकर पंजाब और हरियाणा के किसान संगठन घर वापसी का मन बना चुके हैं लेकिन उनका कहना है कि इस पर कोई भी निर्णय सरकार के रुख और 4 दिसंबर को संयुक्त किसान मोर्चा की होने वाली बड़ी बैठक पर निर्भर करेगा.
पढ़ें-Farmers Protest : सरकार लिखित आश्वासन दे तो घर वापसी संभव !