नई दिल्ली : एक राज्य जो 15 साल (1980-1995) आतंक से घिरे होने के कारण लगभग तबाह हो गया था और जहां 'खालिस्तान' को अलग राष्ट्र बनाने की पुरानी मांग को लेकर आंदलन हुए, वहां किसान द्वारा किया जा रहा विरोध बड़ी मुसीबत का संकेत है.
दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर और किसान आंदोलनों और संघर्ष स्थितियों का अध्ययन करने वाले, कुमार संजय सिंह कहते हैं कि जिस राजनीतिक संदर्भ में भावनाएं भड़काई जा रही हैं, उससे यह और भी जरूरी हो जाता है कि नई दिल्ली किसानों के गुस्से को स्वीकार करे. पंजाब में खालिस्तान आंदोलन की वापसी की खबरें हैं. कृषि संकट इसके पुनरुद्धार के लिए आधार साबित होगा.
केवल वे लोग जो ऐतिहासिक वास्तविकताओं से बेखबर हैं, वे 1980 के दशक में कृषि संकट और 'खालिस्तान' आंदोलन के बीच संबंधों की अनदेखी करेंगे.
खालिस्तान आंदोलन के दौरान 21,000 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी, हजारों लोग घायल हो गए थे और एक पीढ़ी मनोवैज्ञानिक रूप से आहत हो गई थी, जिसमें कृषि पृष्ठभूमि के साथ ग्रामीण समुदाय का एक बड़ा घटक शामिल था.
इसी तरह की चिंता को साझा करते हुए पंजाब के एक प्रमुख किसान नेता का कहना है कि किसानों का आंदोलन आज नहीं तो कल खत्म हो जाएगा. युवा और लोग निराश होकर वापस चले जाएंगे. बिना नौकरियों और असंतोष की लहर के साथ, स्थिति का लाभ उठाने के लिए अलगाववादी तत्वों को मौका मिल जाएगा.
यह वैसी ही स्थिति है, जब 1982 में एशियाई खेलों के दौरान नई दिल्ली में पंजाब से दिल्ली तक एक मार्च को रोका गया था. इसने बड़े पैमाने पर असर डाला था. यही इस बार भी हो रहा है. टिपिंग प्वाइंट अभी भी नहीं है, लेकिन उस टिपिंग प्वाइंट तक पहुंचने के लिए एक स्थिति बनाई जा रही है.
उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा पारित नए कृषि कानूनों का विरोध करते हुए शनिवार को पंजाब और हरियाणा के हजारों किसानों ने दिल्ली चलो मार्च निकाला. किसान पुलिस से झड़प के बाद और बैरिकेडिंग को तोड़कर दिल्ली पहुंचे.
अलगाववादियों के सुर उठ रहे
किसान नेता ने कहा कि पिछले दो-तीन महीनों से 1984 में सिख विरोधी दंगों को अलगाववादियों के सुर उठ रहे हैं. पाकिस्तान इसका इस्तेमाल करेगा. चंडीगढ़ में सीमावर्ती क्षेत्रों से हथियारों, पेम्पलेट्स और अन्य चीजों के साथ आने वाले ड्रोनों को लेकर चर्चाएं हो रही हैं. इस बारे में नई दिल्ली को सूचित किया गया है.
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आतंकवाद ने अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया. पंजाब के आतंकी चरण के परिणामस्वरूप राज्य से बहुत अधिक पूंजी खत्म हुई, विशेषकर हिंदू पंजाबियों की पूंजी. हिंदू पंजाबियों ने हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और आस-पास के स्थानों में निवेश करना शुरू कर दिया.
किसान नेता ने जोर दिया कि वर्तमान में चल रहे किसानों का विरोध किसान यूनियनों के नेताओं द्वारा प्रेरित है, जिन्होंने बड़े पैमाने पर असंतोष को बढ़ाने का काम किया है, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि संघ के नेता आंदोलन और प्रदर्शनकारी युवाओं पर नियंत्रण खो रहे हैं, जबकि नई दिल्ली मांगों को नहीं मान रही है. वहीं राज्य सरकार लोगों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाई है. इसलिए राज्य में एक राजनीतिक शून्य है.