संसद द्वारा भारतीय कृषि सुधार कानून 2020 पारित किए जाने से विवाद खड़ा हो गया है. कोविड -19 महामारी के बीच केंद्र ने तीन कृषि कानून पारित कर दिए – कृषि उपज, व्यापार और विनयन कानून, किसानों के समर्थन मूल्य समझौते और आवश्यक सामग्री (संशोधन) कानून जो बिना किसानों या विपक्षी दलों के सलाह मशविरे के पारित कर दिए गए. इस कारण व्यापक विरोध खड़ा हो गया है. वैसे ही, उद्योग और सेवा क्षेत्र महामारी की चपेट में लड़खड़ाई हालत में हैं.
ऐसे में केवल कृषि क्षेत्र लगातार उत्पादन बढ़ा रहा था जब केंद्र सरकार ने कृषि को पूँजीपतियों और निजी खिलाड़ियों के हाथों सौंपने का तय कर दिया. कुछ राज्य सरकारों ने इन तथाकथित सुधार कानूनों के खिलाफ अपने अलग कानून भी बना दिए जिससे संघीय अवधारणा पर प्रश्न खड़े हो गए हैं.
छोटे और मझले किसानों की रोजी रोटी की कीमत पर सरकार का पूंजीपतियों के निहित हितों की रक्षा करने के निर्णय का समाज के हर तबके से विरोध होने लगा. ये कानून बिना लोक सहमति के या राज्य सरकारों के परामर्श के पारित किए गए. देश के किसानों के पास कृषि उत्पादन के लिए पर्याप्त प्रसंस्करण, भंडारण और विपणन सुविधाएं नहीं हैं. कृषि उत्पाद को बेचना एक जटिल प्रक्रिया है. किसान अपनी उपज का महत्तम मूल्य तय नहीं कर सकता. सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों को उचित मुआवजा नहीं देता.
ऐसे में, सरकार को चाहिए कि मंडियों की हालत सुधारें और न्यूनतम समर्थन मूल्य में इजाफा करें न कि उन सुरक्षात्मक नियमों को हटाए जो बीमार कृषक समाज को सुरक्षा प्रदान करते हैं. कृषि उपज, व्यापार और विनयन कानून कृषि बाजार समितियों पर राज्यों का नियंत्रण कम कर देगा और उनके राजस्व मे कमी लाएगा. इस कारण, मंडियों के विकास के लिए धन की कमी होगी. सरकार के नियंत्रण के अभाव मे बड़े व्यापारी और बहुराष्ट्रीय कंपनी बाजार भाव को आसानी से प्रभावित कर पाएंगे.
प्रतिद्वंद्विता से ही अर्थतन्त्र को फायदा
कृषि उत्पाद बाजार समिति के बाहर किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की कोई गारंटी नहीं होगी. किसानों के समर्थन मूल्य समझौते और आवश्यक सामग्री (संशोधन) कानून के अनुसार किसान उपज तैयार होने से पहले भी खरीददार के साथ करार अनुबंध कर सकता है. खटका तो इस बात पर है कि भारत मे कृषि क्षेत्र के 85 प्रतिशत छोटे और सीमांत किसान हैं. इनकी हैसियत नहीं है कि वे ताकतवर बड़ी कंपनी के साथ फायदे का सौदा तय कर सकें. मुक्त बाजार की परिभाषा मे समान प्रतिद्वंद्विता से ही अर्थतन्त्र को फायदा हो सकता है. दो असमान व्यक्तियों के बीच मुकाबले मे मजबूत खिलाड़ी की ही जीत होगी और प्रतिपक्ष एवं बाजार को दबना पड़ेगा.
बाजार को प्रभावित करने वाले कारक