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चुनाव परिणाम से मोर्चा का लेना-देना नहीं, आगे भी चलेगा किसान आंदोलन : योगेंद्र यादव - Kisan Morcha was not successful but the movement will move forward

संयुक्त किसान मोर्चा के नेता योगेंद्र यादव (Samyukt Kisan Morcha Leader Yogendra Yadav) ने कहा है कि किसान मोर्चा की बात सफल नहीं हुई लेकिन आगे बढ़ेगा आंदोलन. उन्होंने कहा कि मोर्चा की आगे रणनीति के लिए 14 मार्च को दिल्ली में किसान नेताओं की बैठक होगी. पढ़िए ईटीवी भारत संवाददाता अभिजीत ठाकुर की रिपोर्ट...

Samyukt Kisan Morcha Leader Yogendra Yadav
संयुक्त किसान मोर्चा के नेता योगेंद्र यादव

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Published : Mar 11, 2022, 4:31 PM IST

Updated : Mar 11, 2022, 6:36 PM IST

नई दिल्ली :पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के परिणाम भाजपा और आम आदमी पार्टी के अलावा तमाम विपक्षी पार्टियों के लिए निराशाजनक साबित हुए हैं.इसके अलावा एक साल तक किसानों के मुद्दे पर आंदोलन चलाने वाले किसान संगठनों के साझा मंच संयुक्त किसान मोर्चा के लिए भी भाजपा की बड़ी जीत कम निराशाजनक नहीं है. किसान मोर्चा की बात सफल नहीं हुई लेकिन आंदोलन आगे बढ़ेगा.

उक्त बातें संयुक्त किसान मोर्चा के नेता योगेंद्र यादव (Samyukt Kisan Morcha Leader Yogendra Yadav) ने ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में कही. संयुक्त किसान मोर्चा की आगे की रणनीति पर बात करते हुए योगेंद्र यादव ने बताया कि 14 मार्च को दिल्ली में किसान नेताओं की राष्ट्रीय बैठक होगी. इसमें संयुक्त किसान मोर्चा आने वाले समय में एमएसपी पर आंदोलन की रूप रेखा तैयार करेगा. किसानों का आंदोलन चुनाव पर निर्भर नहीं करता. किसान की बातों को मनवाने के लिए किसानों का आंदोलन आगे भी चलेगा.

उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में किसान मोर्चा से जुड़े नेताओं ने एड़ी चोटी का जोर लगाकर भाजपा के खिलाफ जनमत की अपील की थी. किसान नेताओं ने मिशन उत्तर प्रदेश के तहत सैंकड़ों बैठकें, छोटी सभाओं और प्रेस कांफ्रेंस कर जनता से भाजपा को सबक सिखाने की अपील की थी. ऐसा माना जा रहा था कि चुनाव के नतीजों में इसका असर दिखेगा लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी किसान नेताओं का प्रयास कुछ खास या निर्णायक असर नहीं दिखा सका.

जानिए क्या कहा किसान नेता योगेंद्र यादव ने

योगेंद्र यादव ने यह माना कि चुनाव में उनके द्वारा जनता से की गई अपील सफल नहीं हुई. लेकिन साथ ही उनका कहना है कि इन चुनावों में किसान आंदोलन या संयुक्त किसान मोर्चा मुख्य खिलाड़ी नहीं थे बल्कि केवल ग्राउंड्स मैन की भूमिका में थे. ऐसा भी माना जा रहा था कि लखीमपुर खीरी की घटना का असर कम से कम उस संसदीय क्षेत्र में व्यापक रूप से दिखेगा और भाजपा को नुकसान होगा लेकिन लखीमपुर की सभी आठ विधानसभा सीटों पर भाजपा के उम्मीदवार जीते.

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उन्होंने कहा कि किसान आंदोलन के स्थगित होने के बाद भी लखीमपुर खीरी में किसानों का मोर्चा चलता रहा और चुनाव में इसे एक बड़े मुद्दे के रूप में भी बताया गया लेकिन नतीजों में बीजेपी के क्लीन स्वीप से साबित होता है कि लोगों ने मतदान के समय इस मुद्दे को ध्यान में नहीं रखा. क्या इसे संयुक्त किसान मोर्चा की बड़ी विफलता मानी जाए? इस सवाल के जवाब में योगेंद्र यादव ने कहा कि उत्तर प्रदेश में यदि विपक्ष की पहले की स्थिति से अब की स्थिति की तुलना की जाए तो दिखेगा उत्तर प्रदेश में विपक्ष लड़ने की स्थिति में ही तब आया जब किसान आंदोलन हुआ और मोर्चे शुरू हुए. यदि किसान आंदोलन न होता तो विपक्ष के लिए परिणाम और खराब होते. इसलिए किसान आंदोलन का असर निश्चित रूप से हुआ लेकिन हम अपने उद्देश्य में सफल नहीं हुए.

किसान नेता ने कहा कि किसान आंदोलन को सफल बनाने में पंजाब के किसान और जत्थेबंदियों की बड़ी भूमिका रही. आंदोलन स्थगित होने के बाद 22 किसान संगठनों ने पंजाब चुनाव में कूदने की घोषणा की. वहीं संयुक्त समाज मोर्चा के नाम से किसान नेताओं ने राजनीतिक पार्टी बनाई और पंजाब के सभी 117 सीटों पर प्रत्याशी उतारे. लेकिन नतीजे आने के बाद उन्हें बड़ी हताशा हाथ लगी. किसान आंदोलन के प्रमुख चेहरे और संयुक्त समाज मोर्चा की तरफ से मुख्यमंत्री के रूप में प्रस्तुत किये गए किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल खुद अपनी सीट पर ही महज 4 प्रतिशत वोट पा सके. आंदोलन के समय जनता का व्यापक समर्थन प्राप्त करने का दावा करने वाले किसान संगठनों को किसानों ने भी वोट नहीं दिया.

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योगेंद्र यादव ने कहा कि जब पंजाब के 22 किसान संगठनों ने चुनाव लड़ने की बात कही तभी उन्होंने किसान नेताओं को समझाया था कि ऐसा न करें. संयुक्त किसान मोर्चा ने स्पष्ट बयान जारी किया था कि राजनीतिक पार्टी संयुक्त समाज मोर्चा से उनका कोई संबंध नहीं है और वह तमाम नेता अब संयुक्त किसान मोर्चा में शामिल नहीं हैं. चुनाव मैदान में बिना किसी तैयारी के उतरना समझदारी का कदम नहीं था और मतदाताओं ने उसे स्वीकार भी नहीं किया. लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि किसान अपने नेताओं को पसंद नहीं करते.

Last Updated : Mar 11, 2022, 6:36 PM IST

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