पटना : कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए लोग अब शरीर को स्वस्थ और सेहतमंद बनाए रखने वाले रोग प्रतिरोधी फलों को दैनिक आहार में शामिल कर रहे हैं. लिहाजा कोविड काल में इंसानी खानपान में आए परिवर्तन के साथ ही खेती का ट्रेंड भी तेजी से बदल रहा है. पारंपरिक खेती से मुंह मोड़ बिहार के पूर्णिया जिले के किसान अनोखी इंटरक्रॉपिंग तकनीक से माउंटेन फल ड्रैगन फ्रूट की खेती कर रहे हैं. किसान के मुताबिक इसमें एक बार की लागत में करीब 25 साल तक मुनाफा होता है.
जलालखढ़ प्रखंड के किसान तीन एकड़ में ड्रैगन फ्रूट की खेती कर रहे हैं. दरअसल, जिला मुख्यालय से तकरीबन 15 किलोमीटर दूर जलालगढ़ प्रखंड क्षेत्र के हांसी बेगमपुर गांव में रहने वाले किसान रंजय कुमार मंडल करीब तीन एकड़ जमीन पर पहाड़ी फल ड्रैगन फ्रूट की खेती कर रहे हैं. जिसमें उन्हें उनके परिवार के लोगों का भी भरपूर सहयोग मिल रहा है.
उनका कहना है कि संक्रमण के इस दौर में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर कोरोना से जारी जंग जीतने के लिए इसकी खेती शुरू की. इसके लिए उन्होंने तीन एकड़ भूमि पर 1800 पिलर लगाए हैं. इस हिसाब से ड्रैगन फ्रूट के 7200 पौधे लगाए गए हैं.
आधुनिक तकनीक से खेती
इंटरक्रॉपिंग तकनीक ने पारंपरिक खेती के घाटे से उबारा है. वे बताते हैं कि जादुई फल ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए इंटरक्रॉपिंग तकनीक अपनाई है. इसके तहत खेत की खाली जगहों का भी समुचित उपयोग किया जा रहा है. इसके लिए उन्होंने शिमला मिर्च, फूलगोभी, पपीता समेत करीब आधा दर्जन हरी सब्जियों के पौधे लगाए हैं. सबसे खास बात यह है कि वे इसकी खेती जैविक विधि से खेती कर रहे हैं. दूसरे साल में ही उन्हें इसका मुनाफा मिलना शुरू हो गया.
मक्का छोड़ शुरू की ड्रैगन फ्रूट की खेती
किसान रंजय कुमार मंडल ने कहा कि इससे पहले इन खेतों में वे मक्के की खेती करते आ रहे थे. लेकिन इसमें लगातार होते घाटे के बाद उन्होंने खेती का ट्रेंड बदला और ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू की. वह बताते हैं कि वर्ष 2018 में जब सबसे पहले उन्होंने इस पहाड़ी फल की खेती प्रारंभ की, तो उम्मीद के मुताबिक मुनाफा हाथ नहीं लगा. इसके बाद उन्होंने ड्रैगन फ्रूट के साथ इंटरक्रॉपिंग तकनीक के तहत करीब आधा दर्जन हरी सब्जियों और पपीते जैसे फलों के पौधे लगाए. जैसे-जैसे लोगों को इसके फायदे की जनकारी मिलने लगी, ड्रैगन फ्रूट की डिमांड भी बढ़ने लगी है.