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farm laws repeal : बिल संसद में बिना चर्चा के पारित, राहुल बोले- डरती है सरकार

राहुल गांधी ने कृषि कानूनों को निरस्त (rahul gandhi farm laws repeal) करने के संबंध में कहा है कि सरकार विधेयकों पर चर्चा नहीं करना चाहती. उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा कानूनों को रद्द करने का फैसला (Farm Laws Repeal Bill 2021 Passed), किसानों और मजदूरों की जीत है. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार बिल पर बहस करने से डरती है. कांग्रेस किसानों की मांग के साथ खड़ी रहेगी. उन्होंने कहा कि अब सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) समेत उनकी अन्य मांगें भी स्वीकार करनी चाहिए.

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राहुल गांधी कृषि कानून निरसन

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Published : Nov 29, 2021, 2:53 PM IST

Updated : Nov 29, 2021, 7:19 PM IST

नई दिल्ली : कृषि कानूनों के निरस्त होने पर राहुल गांधी (rahul gandhi farm laws repeal) ने कहा है कि मोदी सरकार विधेयकों पर चर्चा और बहस करने से डरती है. राहुल गांधी ने कहा कि अगर सरकार चर्चा नहीं कराना चाहती तो संसद को बंद कर देना चाहिए.

राहुल ने कहा कि कृषि कानूनों को निरस्त करने का फैसला बताता है कि सरकार ने अपनी गलती मानी है. उन्होंने कहा कि सरकार को कृषि कानून रद्द करने पड़े ये किसानों और मजदूरों की सफलता है. राहुल ने मीडिया कर्मियों से कहा कि कांग्रेस ने कहा था कि सरकार को तीन काले कानून वापस लेने पड़ेंगे. उन्होंने कहा कि हमने कानूनों की वापसी की बात इसलिए कही थी कि तीन-चार बड़े पूंजीपतियों की शक्ति हिंदुस्तान के किसानों के सामने खड़ी नहीं हो सकती. ऐसा हुआ भी. तीन काले कानूनों को रद्द करना पड़ा.

उन्होंने कहा कि कानूनों को बिना किसी चर्चा के जिस प्रकार से रद्द किया गया, इससे स्पष्ट है कि सरकार चर्चा से डरती है. राहुल ने कहा कि सरकार जानती है कि उन्होंने गलत किया. संसद में चर्चा के बिंदुओं पर राहुल गांधी ने कहा कि जिन 700 किसानों की शहादत हुई इस पर चर्चा होनी थी. इस बात पर भी चर्चा होनी थी कि जिन कानूनों को बनाया गया, इसके पीछे किसकी शक्ति थी.

कृषि कानूनों को निरस्त करने के संबंध में राहुल गांधी का बयान

उन्होंने कहा कि किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी पर चर्चा होनी थी. लखीमपुर खीरी और गृह राज्यमंत्री (अजय मिश्रा टेनी) के मुद्दे पर भी चर्चा होनी थी. राहुल ने कहा कि कानूनों के विरोध से लेकर इनके रद्द होने तक का पूरा घटनाक्रम यह दिखाता है कि सरकार दुविधा में है.

राहुल ने कहा कि सरकार सोचती है कि गरीब, किसान, मजदूरों के पास कोई शक्ति नहीं है, इनको दबाया जा सकता है, लेकिन इस पूरे घटनाक्रम से साफ है कि किसानों, मजदूरों, गरीबों और कमजोर लोगों को इस देश में दबाया नहीं जा सकता.

संसद की क्या जरूरत पर सवाल ?

एक सवाल के जवाब में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ने कहा, 'ये तीनों कानूनों किसानों और मजदूरों पर आक्रमण था. किसानों की मांगों की लंबी सूची है जिसका हम समर्थन करते हैं.' उन्होंने सरकार की टिप्पणी से जुड़े अन्य प्रश्न के उत्तर में कहा, 'अगर चर्चा नहीं करनी है तो फिर संसद की क्या जरूरत है? बंद कर देते हैं, प्रधानमंत्री को जो कहना है वो कह दें.'

राहुल गांधी ने कहा, 'प्रधानमंत्री ने माफी मांगी है. उन्होंने यह स्वीकार किया कि उनकी गलती से 700 लोगों की जान गई और यह पूरा आंदोलन हुआ. अगर गलती मान ली तो फिर मुआवजा देना पड़ेगा.'

सरकार एमएसपी की कानूनी गारंटी समेत दूसरी मांगें माने

उन्होंने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, 'सरकार ने इस विधेयक में कहा कि किसानों का एक समूह प्रदर्शन कर रहा है. यह किसानों का अपमान है. पहले आपने इनको खालिस्तानी कहा और अब आप इन्हें किसानों का समूह कह रहे हैं. ये किसानों का समूह नहीं है, बल्कि देश के सारे किसान हैं. ये समझते हैं कि कौन सी शक्तियां इन आक्रमण कर रही हैं.' कांग्रेस नेता ने कहा कि सरकार मारे गए किसानों को पूरा मुआवजा दे और एमएसपी की कानूनी गारंटी समेत दूसरी मांगें माने.

प्रधानमंत्री ने माफी क्यों मांगी ?

राहुल गांधी ने एक सवाल के जवाब में दावा किया, 'ये वही ताकते हैं जिन्होंने नोटबंदी करवाई, त्रूटिपूर्ण जीएसटी लागू करवाई और कोरोना काल में गरीबों को मदद नहीं देने दी. सवाल यह नहीं है कि सरकार फिर ये ऐसे कानून लाने का प्रयास करेगी, बल्कि सवाल यह है कि इस सरकार पर एक ऐसे समूह का कब्जा है जो गरीब लोगों के खिलाफ है और उनके हितों को नुकसान पहुंचा रहा है' उन्होने यह सवाल किया, 'अगर सरकार किसानों के पक्ष में थी तो एक साल से क्या कर रही थी, 700 किसानों की जान कैसे चली गई? प्रधानमंत्री ने माफी क्यों मांगी ?'

इससे पहले कृषि कानूनों के निरस्त होने का रास्ता साफ हो गया. कृषि कानूनों को निरस्त करने संबंधी तीनों विधेयक राज्य सभा से भी पारित हो गए. विधेयकों के पेश होने के बाद कांग्रेस सांसद और राज्य सभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि सरकार का फैसला चुनावी नतीजों से प्रभावित है. उन्होंने कहा कि उपचुनाव के नतीजों को देखते हुए सरकार ने अपने पैर पीछे खींचे हैं. हालांकि, नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि सरकार ने किसानों के हित में फैसला लिया है. उन्होंने कांग्रेस पर राजनीति करने का आरोप लगाया है.

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इससे पहले कृषि कानूनों को निरस्त (farm law repeal) करने के लिए नरेंद्र सिंह तोमर ने लोक सभा में विधेयक पेश किए. विपक्ष के हंगामे के बीच लोक सभा से विधेयक पारित हो गए. संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन लोकसभा ने विपक्ष के हंगामे के बीच तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करने संबंधी कृषि विधि निरसन विधेयक 2021 (Farm Laws Repeal Bill 2021) को बिना चर्चा के ही मंजूरी प्रदान कर दी.

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उल्लेखनीय है कि पिछले साल सितंबर महीने में केंद्र सरकार विपक्षी दलों के भारी विरोध के बीच कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) कानून, कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार कानून और आवश्यक वस्तु संशोधन कानून, 2020 लाई थी.

बता दें कि गत 19 नवंबर को पीएम मोदी ने कृषि कानूनों को निरस्त करने का एलान किया था. उन्होंने कहा था कि शीतकालीन सत्र में कानूनों को सरकार वापस लेगी. राष्ट्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुरु पर्व और कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर तीन नए कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की. उन्होंने देशवासियों से माफी भी मांगी. पीएम ने कहा कि इस महीने के अंत में तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की संवैधानिक प्रक्रिया शुरू कर देंगे.

इसके बाद तीन कृषि कानूनों को रद्द करने से संबंधित विधेयकों को बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी दे दी थी. केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने बताया था कि कैबिनेट बैठक में कृषि कानूनों को औपचारिक रूप से वापस लेने का निर्णय लिया गया है. अगले हफ्ते में संसद की कार्यवाही शुरू होगी, वहां पर दोनों सदनों में कृषि कानूनों को वापस लेने की प्रक्रिया को पूरा किया जाएगा.

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एक सवाल के जवाब में ठाकुर ने कहा कि संसद में भी इस कार्य (तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने) को प्राथमिकता के आधार पर लिया जायेगा. उन्होंने कहा कि मंत्रिमंडल के कार्य को हमने पूरा कर लिया है और संसद को जो करना है, उस दिशा में काम को हम सत्र के पहले हफ्ते और पहले दिन से ही आरंभ करेंगे.

कृषि कानूनों को वापस लेने से जुड़ी खबरें-

गौरतलब है कि तीन कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के आंदोलनकारी किसान पिछले साल नवंबर से दिल्ली की सीमाओं पर तीन जगहों पर बैठे हैं. उनका कहना है कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं हो जातीं, तब तक वे वापस नहीं जाएंगे.

(एजेंसी इनपुट)

Last Updated : Nov 29, 2021, 7:19 PM IST

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