पटना : बिहार में धर्म की नगरी से जाना जाने वाला गया वैसेे तो तिलकुट के लिए प्रसिद्ध (Gaya Tilkut) है, लेकिन अब यह जिला तिलकुट के साथ-साथ पंडित जी का एक किलो का रसगुल्ला (Famous Rasgulla Of Panditji Shop) के लिए काफी प्रसिद्ध हो रहा है. इस रसगुल्लाको गया (Gaya) के लोग कई नामों से बुलाते हैं. कोई इस रसगुल्ला को गलफार रसगुल्ला कहता है, कोई पेटभरवा रसगुल्ला कहता है तो वहीं छात्र, पुलिस और नक्सली इसे शगुनिया रसगुल्ला कहते हैं.
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दरअसल गया जिला मुख्यालय से तकरीबन 18 किलोमीटर दूर पंचानपुर स्थित पंडितजी की दुकान में 360 रुपये में एक रसगुल्ला मिलता है. यह रसगुल्ला आज से नहीं बल्कि 52 वर्षों से मिल रहा है. यहां पंडितजी के दुकान पर 50 ग्राम से लेकर पौने दो किलो तक का रसगुल्ला मिलता है.
यह दुकान साल 1969 में रामचंद्र मिश्र ने एक झोपड़ी में खोली थी. रसगुल्ला का आकार और स्वाद से यह दुकान आज बहुत बड़े दुकान में तब्दिल हो गई है. इस गलफार रसगुल्ले का स्वाद देश के कई नामचीन हस्तियों ने भी चखा है. पंडितजी मिठाई दुकान के मालिक खुद से मिठाई बनाते हैं, हालांकि काम ज्यादा होने पर वे मजदूरों की मदद भी लेते हैं. पंडितजी दुकान के मालिक के भाई अनिल मिश्र बताते है कि इस मिठाई की प्रसिद्धि मगध क्षेत्र में भी है.
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'पिताजी दुकान चलाते और बड़ा आकार का मिठाई बनाते थे. मैं उनसे सीखा हूं. मैं खुद स्वच्छ तरीके से शुद्ध दूध से मिठाई बनाता हूं. इसे बनाने के लिए अन्य रसगुल्ला जैसा विधि है. कारीगरी इसे बड़ा आकार देने में है. बड़ा आकर रसगुल्ला बनाने में कम से कम तीन घण्टे का समय लगता है. हर दिन करीब 10 बड़ा रसगुल्ला बनता है और बिक जाता है. रसगुल्ले की पहचान आकार और स्वाद से ही है.'-जय किशोर मिश्र, दुकान मालिक
यह इलाका एक दशक पूर्व नक्सल प्रभावित क्षेत्र था. उस वक्त अपने मिशन की सफलता के लिए नक्सली और पुलिस इस मिठाई को खाते थे. आज भी छात्र जब परीक्षा देने जाते हैं तो शगुन के तौर पर मिठाई खाकर जाते हैं. मिठाई की शुद्धता की वजह से लोग पर्व पर भी खरीद कर अपने घर ले जाते हैं.
इस रसगुल्ले का स्वाद देश के पूर्व उप-प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर, जगन्नाथ मिश्रा, लालू प्रसाद यादव, वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी चखा है. आज भी नेता, पदाधिकारी और आमलोग उपहार के तौर पर इस मिठाई को ले जाते हैं.
'मेरी उम्र 75 वर्ष है. जब मैं कॉलेज में पढ़ता था तब से यहां का मिठाई खा रहा हूं. उस वक्त 500 ग्राम तक का मिठाई दो रुपये में खाता था. यहां की मिठाई में बहुत स्वाद है. बचपन, जवानी से लेकर बुढ़ापा तक यहां की मिठाई खा रहा हूं. यहां से गुजरता हूं तो खुद को रोक नहीं पाता हूं. जब स्कूल में पढ़ता था उस वक्त परीक्षा शुरू होती थी तो शगुन के तौर पर परीक्षा देने के पहले ज्यादातर छात्र पंडितजी दुकान का रसगुल्ला खाकर ही जाते थे.'-श्रीधर सिंह, ग्राहक