नई दिल्ली : छत्तीसगढ़ में हल्की मशीन गन (एलएमजी) से लैस करीब 400 नक्सलियों के एक समूह ने विशेष अभियान के लिए तैनात सुरक्षा बलों पर घात लगाकर 3 अप्रैल 2021 को हमला किया जिसमें कम से कम 22 जवान शहीद हो गए और 30 अन्य घायल हो गए. नक्सली इस दौरान सुरक्षा बलों के एक दर्जन से अधिक अत्याधुनिक हथियार लूट ले गए.
शनिवार को हुआ हमला बड़ा था इसमें कोई शक नहीं है. हालांकि, 6 अप्रैल, 2010 में दंतेवाड़ा में नक्सलियों के साथ मुठभेड़ में 76 अर्धसैनिक बल के जवान शहीद हो गए थे. इसके अलावा 25 मई, 2013 को दरभा घाटी में माओवादियों के हमले में लगभग पूरे कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व का सफाया हो गया था, जिसमें पार्टी के वरिष्ठ नेता महेंद्र कर्मा और नंद कुमार पटेल व 23 अन्य शामिल थे.
हाल के दिनों में हुए बड़े हमलों में एक 24 अप्रैल, 2017 को सुकमा जिले में हुआ था, जिसमें सीआरपीएफ के 25 जवान शहीद हो गए थे. वहीं, 21 मार्च 2020 को सुकमा में एलमगुडा वन क्षेत्र में हुए हमले में 17 पुलिसकर्मी मारे गए थे.
इन सभी हमलों एक समान बात यह है कि इन्हें मार्च से लेकर जून के बीच अंजाम दिया गया था. इस मौसम में जहां तक नजर जाती है भूरे रंग का जंगल दिखाई देता है. यह पतझड़ का समय होता है. यह वह समय है जब सुरक्षा बल आक्रामक हो जाते हैं. शुष्क मौसम में, सुरक्षा बल मजबूत और सूचना-आधारित नक्सल विरोधी अभियान चलाते हैं.
दूसरी और पतझड़ के मौसम में माओवादियों के लिए यह जंगल छुपने में मददगार नहीं होते. लिहाजा वह सैन्य स्तर कै कैंप नहीं लगा पाते और अन्य गतिविधियों को भी अंजाम नहीं दे पाते. इस अवधि के दौरान उनके मुख्य उद्देश्यों में सुरक्षा बलों के साथ आक्रामक अभियानों को अंजाम देना (TCOC) शामिल हैं जो मार्च के मध्य से जून के मध्य तक चलता है.