दिल्ली

delhi

ETV Bharat / bharat

मार्च से जून तक सुरक्षाबलों को जाल में फंसाने के लिए ऐसा खेल खेलते हैं नक्सली - नक्सलियों का आतंक

छत्तीसगढ़ के बीजापुर में हुए एक नक्सली हमले में 22 जवान शहीद हो गए और 31 जवान घायल हैं. एक जवान अभी भी लापता है. सूत्रों के अनुसार मुठभेड़ के दौरान 400 नक्सलियों ने घात लगाकर हमला किया था. इससे पहले भी नक्सलियों ने बड़े हमले को अंजाम दिया है. और खास बात यह है कि लगभग सभी मार्च से जून के बीच हुए थे. ऐसे क्यों? पढ़ें ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट...

maoist heartland
maoist heartland

By

Published : Apr 4, 2021, 9:31 PM IST

Updated : Apr 4, 2021, 10:55 PM IST

नई दिल्ली : छत्तीसगढ़ में हल्की मशीन गन (एलएमजी) से लैस करीब 400 नक्सलियों के एक समूह ने विशेष अभियान के लिए तैनात सुरक्षा बलों पर घात लगाकर 3 अप्रैल 2021 को हमला किया जिसमें कम से कम 22 जवान शहीद हो गए और 30 अन्य घायल हो गए. नक्सली इस दौरान सुरक्षा बलों के एक दर्जन से अधिक अत्याधुनिक हथियार लूट ले गए.

शनिवार को हुआ हमला बड़ा था इसमें कोई शक नहीं है. हालांकि, 6 अप्रैल, 2010 में दंतेवाड़ा में नक्सलियों के साथ मुठभेड़ में 76 अर्धसैनिक बल के जवान शहीद हो गए थे. इसके अलावा 25 मई, 2013 को दरभा घाटी में माओवादियों के हमले में लगभग पूरे कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व का सफाया हो गया था, जिसमें पार्टी के वरिष्ठ नेता महेंद्र कर्मा और नंद कुमार पटेल व 23 अन्य शामिल थे.

हाल के दिनों में हुए बड़े हमलों में एक 24 अप्रैल, 2017 को सुकमा जिले में हुआ था, जिसमें सीआरपीएफ के 25 जवान शहीद हो गए थे. वहीं, 21 मार्च 2020 को सुकमा में एलमगुडा वन क्षेत्र में हुए हमले में 17 पुलिसकर्मी मारे गए थे.

इन सभी हमलों एक समान बात यह है कि इन्हें मार्च से लेकर जून के बीच अंजाम दिया गया था. इस मौसम में जहां तक नजर जाती है भूरे रंग का जंगल दिखाई देता है. यह पतझड़ का समय होता है. यह वह समय है जब सुरक्षा बल आक्रामक हो जाते हैं. शुष्क मौसम में, सुरक्षा बल मजबूत और सूचना-आधारित नक्सल विरोधी अभियान चलाते हैं.

दूसरी और पतझड़ के मौसम में माओवादियों के लिए यह जंगल छुपने में मददगार नहीं होते. लिहाजा वह सैन्य स्तर कै कैंप नहीं लगा पाते और अन्य गतिविधियों को भी अंजाम नहीं दे पाते. इस अवधि के दौरान उनके मुख्य उद्देश्यों में सुरक्षा बलों के साथ आक्रामक अभियानों को अंजाम देना (TCOC) शामिल हैं जो मार्च के मध्य से जून के मध्य तक चलता है.

पढ़ें-छत्तीसगढ़ : जानें हमले का कौन है मास्टरमाइंड, जिसकी अगुआई में नक्सलियों ने किया दुस्साहस

अप्रैल-मई में स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के अवसरों की कमी के कारण सीपीआई (माओवादी) के लिए भर्ती की प्रक्रिया तेज हो जाती है.

जून के बाद यह क्षेत्र हरे भरे जंगलों में बदल जाता है, जिसकी आड़ में नक्सली ट्रेनिंग कैंप चलाते हैं. इस समय सुरक्षा बल माओवादियों के खिलाफ अभियान नहीं चलाते क्यों कि परिस्थितियां दुश्मन के अनुकूल होती हैं.

ऐसा माना जा रहा है कि लॉकडाउन के दौरान माओवादियों ने अपनी स्थिति को और मजबूत किया है. सूत्रों के अनुसार, सीपीआई (माओवादी) अपनी 'केंद्रीय समिति' (सीसी) को फिर से बहाल करने में सफल रहा है, जिसमें 21 सदस्य नामबाला केशव राव उर्फ ​​बसवा राजू (65) के नेतृत्व में पार्टी के पदों पर हैं.

लगभग 15 साल पहले सीसी में 39 सदस्य शामिल थे, जिनमें से केवल 17 को ही 'ऑपरेशनल' माना जाता है.

Last Updated : Apr 4, 2021, 10:55 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details