नई दिल्ली :दिल्ली हाईकोर्ट ने दुष्कर्म के झूठे आरोप लगाने के मामलों पर गंभीर टिप्पणी की है. न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद, जो कि दो पार्टियों के बीच समझौते के आधार पर बलात्कार मामले की प्राथमिकी रद्द करने की एक याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, ने कहा कि इसके परिणामस्वरूप न्यायिक और जांच में पुलिस द्वारा खर्च किए गए समय का नुकसान हुआ है. कोर्ट ने कहा कि झूठे आरोप, बलात्कार के आरोपी का जीवन और करियर नष्ट कर सकते हैं.
कोर्ट ने कहा कि बलात्कार के झूठे मामले में आरोपी अपना सम्मान खो देता है. अपने परिवार का सामना नहीं कर सकता और उसे जीवन भर के लिए कलंकित कर दिया जाता है. न्यायाधीश ने 16 अगस्त को अपने आदेश में कहा कि व्यक्तिगत रुप से बदला लेने के लिए आईपीसी की धारा 376 के तहत एक जैसे अपराधों के संबंध में आरोप नहीं लगाए जा सकते.
यह देखते हुए कि बलात्कार जैसे अपराधों के झूठे केस में केवल अभियुक्तों का हाथ शामिल होने के मामलों में खतरनाक वृद्धि हुई है. अदालत ने कहा कि जो लोग बलात्कार के ऐसे झूठे आरोप लगाते हैं, उन्हें मुक्त होने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.
न्यायाधीश ने टिप्पणी की है कि अपराधों की गंभीर प्रकृति के कारण छेड़छाड़ और बलात्कार के मामलों से संबंधित झूठे दावों और आरोपों से सख्ती से निपटने की जरूरत है. इस तरह के मुकदमे बेईमान वादियों द्वारा इस उम्मीद में लगाए जाते हैं कि दूसरा पक्ष डर या शर्म से उनकी मांगों को स्वीकार कर लेगा.