नई दिल्ली :भाजपा का गढ़ कहे जाने वाले गुजरात में पिछले चुनाव में उसे कांग्रेस ने कड़ी टक्कर दी थी. यह बात भारतीय जनता पार्टी अभी तक भूली नहीं है. यही वजह है कि बीजेपी के चाणक्य माने जाने वाले गृह मंत्री अमित शाह ने सौराष्ट्र में स्थित सोमनाथ के मंदिर में पूजा अर्चना करके गुजरात चुनाव का अधिकारिक बिगुल फूंका है. वैसे भी सौराष्ट्र और कच्छ का क्षेत्र भारतीय जनता पार्टी के लिए हमेशा से कठिन माना जाता रहा है लेकिन इस बार शाह ने सोमनाथ पहुंचकर गुजरात वासियों को एक संदेश देने की कोशिश की है. 14 और 15 सितंबर को भी गृह मंत्री अमित शाह सूरत के इनडोर स्टेडियम में भाजपा के कार्यकर्ताओं को संबोधित कर उनमें जीत को लेकर उत्साह का संचार करेंगे (bjps strategy for gujarat elections).
ज्यादा एहतियात बरत रही भाजपा :सौराष्ट्र और कच्छ को लेकर भारतीय जनता पार्टी इस बार कुछ ज्यादा ही एहतियात बरत रही है, क्योंकि ये इलाके ऐसे हैं जहां बीजेपी कुछ कमजोर पड़ जाती है, यही वजह है कि पिछले दिनों प्रधानमंत्री ने भी कच्छ की यात्रा की थी. यात्रा के दौरान गांधीनगर के भाजपा कार्यालय में उन्होंने भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं से मुलाकात भी की थी और उन्हें चुनाव के लिए पूरी तरह से कमरकस लेने का आह्वान भी किया था.
भाजपा की चिंता यह है कि गुजरात में बहुमत का आंकड़ा 92 था और पिछली बार पार्टी को 99 सीटे ही मिली थीं. कांग्रेस ने उसे कड़ी टक्कर दी थी. 32 सालों में इस चुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी को सबसे बड़ी शिकस्त दी थी. इससे पहले 1985 में कांग्रेस को 149 सीटें मिली थीं, लेकिन इस बार कांग्रेस ने गुजरात में विधानसभा चुनाव को लेकर अभी तक बहुत ज्यादा तैयारियां शुरू नहीं की हैं. ऐसा इसलिए है कि गुजरात के चुनाव के मात्र तीन महीने ही बचे हैं और राहुल गांधी गुजरात में कैंपेन करने की बजाय भारत जोड़ो यात्रा पर निकल पड़े हैं. ना तो गुजरात में कोई सभा और ना ही कोई संगठन की ज्यादा बैठक कांग्रेस ने आयोजित की हैं
कांग्रेस की वॉकओवर देने की तैयारी तो नहीं! :सूत्रों की मानें तो बीजेपी की चिंता का विषय यही है कि कहीं कांग्रेस गुजरात में दिल्ली की तरह आम आदमी पार्टी को वॉकओवर देने का मन तो नहीं बना चुकी है? यदि ऐसा होता है तो इसका सबसे ज्यादा नुकसान बीजेपी को हो सकता है, क्योंकि बीजेपी अभी तक ये मान कर चल रही थी की कांग्रेस और आप के बीच में बंटने वाले वोट का फायदा पार्टी उठा लेगी, मगर नई रणनीति की आशंका से बीजेपी में रात दिन मंथन चल रहा है कि उसकी काट क्या ढूंढी जाए.