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कश्मीर में मादक पदार्थों की तस्करी चरम पर, एक पीढ़ी के खोने की चेतावनी

जम्मू-कश्मीर के डीजीपी दिलबाग सिंह ने कहा कि पिछले दो वर्षों में नशीले पदार्थों से जुड़ी बुराई में काफी वृद्धि हुई है. उन्होंने कहा कि हम जानते हैं कि मादक पदार्थों की बिक्री से होने वाली आय का इस्तेमाल आतंकवाद के वित्तपोषण में किया जाता है और इसलिए हम इस बारे में अतिरिक्त रूप से सतर्क रहे हैं तथा इस पर अंकुश लगाने के प्रयास कर रहे हैं.

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Published : Nov 14, 2021, 8:14 PM IST

कश्मीर मादक पदार्थ
कश्मीर मादक पदार्थ

श्रीनगर : कश्मीर में मादक पदार्थों, खासकर हेरोइन की तस्करी नई ऊंचाइयों को छू रही है और विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि इस बुराई से एक पीढ़ी के खोने का खतरा है तथा अधिकतर युवा नशे की लत के शिकार हो सकते हैं. जम्मू-कश्मीर के पुलिस प्रमुख दिलबाग सिंह का कहना है कि पाकिस्तान युवाओं को मादक पदार्थों का आदी बना रहा है.

आतंकवाद की शिकार कश्मीर घाटी के समग्र परिदृश्य में सामाजिक कार्यकर्ताओं और डॉक्टरों की राय है कि तीन दशकों से चली आ रही आतंकी हिंसा ने जहां एक पीढ़ी को खा लिया है, वहीं नशे की बुराई का वर्तमान पीढ़ी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.

डीजीपी दिलबाग सिंह ने पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा, 'वे वही गंदा खेल दोहरा रहे हैं, जो उन्होंने पंजाब में खेला था - पहले हथियारों का प्रशिक्षण देना और बाद में युवाओं को मादक पदार्थों से बर्बाद करना.

विशेषज्ञों की इन टिप्पणियों के बारे में पूछे जाने पर कि कश्मीर ने आतंकवाद में एक पीढ़ी खो दी है और नशीले पदार्थों की बुराई से वह अगली पीढ़ी खो सकता है, सिंह ने कहा, 'निश्चित रूप से हां, मेरी इस बारे में कोई दो राय नहीं हैं.'

दिलबाग सिंह ने कहा कि पिछले दो वर्षों में नशीले पदार्थों से जुड़ी बुराई में काफी वृद्धि हुई है और मादक पदार्थों की तस्करी पंजाब तथा जम्मू की सीमाओं से की जाती है. उन्होंने कहा, 'हम जानते हैं कि मादक पदार्थों की बिक्री से होने वाली आय का इस्तेमाल आतंकवाद के वित्तपोषण में किया जाता है और इसलिए हम इस बारे में अतिरिक्त रूप से सतर्क रहे हैं तथा इस पर अंकुश लगाने के प्रयास कर रहे हैं.'

पुलिस प्रमुख ने कहा कि मादक पदार्थों के जोखिम से प्रभावित मुख्य क्षेत्र उत्तरी कश्मीर में करनाह, दक्षिण कश्मीर में अनंतनाग और जम्मू के कुछ इलाके हैं. उन्होंने कहा कि पुलिस ने श्रीनगर और जम्मू में नशामुक्ति केंद्र स्थापित करने में अग्रणी भूमिका निभाई है तथा कुछ और नशामुक्ति केंद्र उत्तरी कश्मीर में बनाए जा रहे हैं.

दिलबाग सिंह ने अपनी अपील में कहा, 'मुझे लगता है कि यह सामाजिक-धार्मिक नेताओं के लिए युवाओं को खतरे से दूर करने के लिए तत्काल आधार पर कदम उठाने का समय है. आज, हमारे पास समय है और हो सकता है कि कल हमारे पास समय न हो. इसलिए, अभी और तेजी से कार्य करना बेहतर है.'

इसी तरह के विचार श्रीनगर में नशामुक्ति केंद्र के प्रमुख डॉ मोहम्मद मुजफ्फर खान ने व्यक्त किए. उन्होंने कहा कि घाटी में ऐसे केंद्रों की संख्या मादक पदार्थों से प्रभावित लोगों की संख्या की तुलना में बहुत कम है.

खान ने कहा कि धरातल पर स्थिति और भी खराब है क्योंकि बड़ी संख्या में युवा लड़के नशीले पदार्थों के आदी हो रहे हैं.

उन्होंने कहा, 'पहले, हम 18 वर्ष और इससे अधिक उम्र के लड़कों (नशीले पदार्थों के आदी) को देखते थे, लेकिन अब 12 और 13 साल के बच्चों से जुड़े मामले आ रहे हैं तथा नशीले पदार्थों के सेवन की प्रकृति भी बदल गई है. पहले यह चरस या औषधीय ओपिऑइड होता था, लेकिन अब हेरोइन इनकी जगह ले रही है.'

नशे के लिए इंजेक्शन पर निर्भर हो जाते हैं युवा

खान ने कहा कि युवा जल्दी हेरोइन के आदी हो जाते हैं और कुछ ही दिनों में नशे के लिए इंजेक्शन पर निर्भर हो जाते हैं. उन्होंने कहा कि यह खतरा पूरे कश्मीर में शहरी और ग्रामीण इलाकों में तथा अमीर और गरीब आबादी में फैल गया है.

उन्होंने कहा कि उनके नेतृत्व वाले युवा विकास एवं पुनर्वास केंद्र में 50 बिस्तरों का अस्पताल है.

खान ने कहा, प्रभावित लोगों की संख्या की तुलना में यह एक छोटा केंद्र है. लगभग 10 साल पहले, हमें नशामुक्ति केंद्रों की आवश्यकता थी, लेकिन आज हमें एक चिकित्सा आपातकालीन सुविधा की आवश्यकता है क्योंकि कभी-कभी किसी नशेड़ी को अधिक मात्रा में हेरोइन के सेवन के कारण तुरंत वेंटिलेटर की आवश्यकता होती है.

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली के राष्‍ट्रीय औषधि निर्भरता उपचार केन्‍द्र द्वारा 'भारत में मादक पदार्थ के उपयोग की मात्रा' पर किए गए एक सर्वेक्षण का हवाला देते हुए खान ने कहा, 'मैं अब कहूंगा कि यह फिर से एक दकियानूसी अनुमान है.'

इस सर्वेक्षण में जम्मू कश्मीर को मादक पदार्थों के सेवन के मामले में पांचवें स्थान पर बताया गया था और कहा गया था कि केंद्रशासित प्रदेश में मादक पदार्थों से छह लाख से अधिक लोग प्रभावित हैं.

उन्होंने कहा, 'सामाजिक बदनामी के कारण लोग नशीले पदार्थों के इस्तेमाल की बात स्वीकार नहीं करते हैं. हर महीने आने वाले रोगियों की संख्या को देखते हुए, जो प्रति दिन 10 से 15 के बीच होती है, मुझे लगता है कि अधिक लोग इससे प्रभावित हैं.'

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नशे की लत के शिकार लोगों को चिकित्सा सहायता और पुनर्वास प्रदान करने के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन 'कन्सर्न्ड अबाउट यूनिवर्सल सोशल एम्पावरमेंट' के सह-संस्थापक मीर जुबैर राशिद ने कहा, 'हमने संघर्ष में एक पीढ़ी खो दी है और अगली पीढ़ी को मादक पदार्थों के सेवन की बुराई के चलते खो देंगे.'

राशिद ने कहा, 'देखिए, इलाज के बाद काउंसलिंग बहुत जरूरी है. हम अपनी तरफ से कुछ करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन मुझे लगता है कि पूरे समाज को जागना होगा.'

(पीटीआई-भाषा)

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