नई दिल्ली : विशेषज्ञों का कहना है कि ओमीक्रोन को प्राकृतिक टीका समझने की धारणा खतरनाक विचार (experts warn of accepting omicron as natural vaccine) है, जिसे ऐसे गैरजिम्मेदार लोग फैला रहे हैं, जो कोविड-19 के बाद होने वाली स्वास्थ्य संबंधी दीर्घकालीन परेशानियों पर गौर नहीं करते. कोरोना वायरस के अन्य स्वरूपों की तुलना में अधिक संक्रामक समझे जाने वाले ओमीक्रोन स्वरूप से संक्रमण के अपेक्षाकृत कम गंभीर मामले सामने आ रहे हैं, इससे संक्रमित लोगों को अस्पताल में भर्ती कराने की आवश्यकता कम पड़ती है और इससे लोगों की मौत की संख्या भी अपेक्षाकृत कम है. इन्हीं वजहों से इस धारणा को जन्म मिला है कि यह स्वरूप एक प्राकृतिक टीके की तरह काम कर सकता है.
महाराष्ट्र के एक स्वास्थ्य अधिकारी ने भी हाल में दावा किया था कि ओमीक्रोन एक प्राकृतिक टीके की तरह काम करेगा और इससे कोविड-19 को स्थानीय महामारी (एन्डेमिक) के चरण में जाने में मदद मिल सकती है. जाने माने विषाणु वैज्ञानिक शाहिद जमील ने कहा कि ओमीक्रोन को एक प्राकृतिक टीका मानने वाली धारणा एक खतरनाक विचार है, जिसे गैरजिम्मेदार लोग फैला रहे हैं.
उन्होंने कहा, 'इस धारणा से बस एक संतुष्टि मिलती है, लेकिन इसका कारण इस समय उपलब्ध सबूतों के बजाय वैश्विक महामारी के कारण पैदा हुई थकान तथा और कदम उठाने की अक्षमता है.' जमील ने कहा कि जो लोग इस धारणा की वकालत करते हैं, वे कोरोना वायरस संक्रमण के बाद स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दीर्घकालीन प्रभावों पर गौर नहीं करते और उन्हें इस बारे में अधिक जानकारी नहीं है.