नई दिल्ली : ऐसे समय में जब कोरोना महामारी के कारण देश की अर्थव्यवस्था संघर्षरत है और इसमें 18.3 प्रतिशत की गिरावट देखी गई, कृषि क्षेत्र ने सकारात्मक विकास दिखया और वर्ष 2020-21 में 3.4 प्रतिशत का विकास दर्ज किया गया. सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में भी कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 2019-20 में 17.8 से बढ़कर 2020-21 में लगभग 20% हुई.
महामारी ने न केवल देश की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया बल्कि इसका असर रोजगार पर भी देखने को मिला. CMIE के द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार जून माह में देश में बेरोजगारी दर 13% के आस पास पहुंच गई और विशेषज्ञयों ने इसमें आगे और बढ़ोतरी होने की आशंका भी जताई है.
कोरोना महामारी की दूसरी लहर में पारिस्थियां और जटिल हो गई हैं लेकिन इसके बावजूद जून माह में संक्रमण की घटती संख्या और टीकाकरण अभियान के जोर पकड़ने से अब देश इन परेशानियों से उबरने की उम्मीद कर रहा है.
ऐसे समय में अब विशेषज्ञ कृषि क्षेत्र में न केवल युवाओं के लिए बल्कि व्यापार क्षेत्र के लिए भी असीम संभावनाएं देख रहे हैं. ईटीवी भारत ने कृषि क्षेत्र और इसमें भविष्य की संभावनाओं पर भारतीय खाद्य और कृषि परिषद के अध्यक्ष एमजे खान से विशेष बातचीत की जिन्होंने भारत में कृषि व्यापार की मौजूदा परिस्थिति और भविष्य की संभावनाओं के बारे में विस्तार से बताया और देश के युवाओं के लिए कृषि प्रबंधन और कृषि क्षेत्र में शिक्षा के प्रति छात्रों के बढ़ते रुझान पर भी जानकारी दी.
एमजे खान मानते हैं कि कृषि क्षेत्र लंबे समय से नजरअंदाज किया जाता रहा है क्योंकि इसके मुकाबले अन्य क्षेत्र जैसे कि उद्योग, तकनीकी और सेवाओं ने बेहतर विकास दिखाया है. जब कोरोना महामारी के दौरान लॉकडाउन और प्रतिबंधों के कारण लोग मूलभूत आवश्यकतओं के साथ अपने घरों में रहने को विवश हुए तब उन्हें जीने के लिए आवश्यक जरूरी चीजों में भोजन और आवश्यक दवाओं की महत्ता सबसे ज्यादा महसूस हुई. यही समय था जब अन्य क्षेत्र जहां नकारात्मक विकास दर की तरफ बढ़े वहीं कृषि विकास में औसत बढ़ोतरी 1.8 से 2.4 प्रतिशत तक पहुंची और कोरोना महामारी के पहले दौर में कृषि विकास दर लगभग 3.5 प्रतिशत तक पहुंच गई.
तमाम बंदिशों और लॉकडाउन के बावजूद यह बढ़ोतरी अप्रत्याशित थी. न केवल कृषि विकास बल्कि कृषि में निर्यात भी 24 प्रतिशत तक बढ़ा जो पहले कभी नहीं हुआ था. अब इन कारणों से इस क्षेत्र में निवेशकों बल्कि युवाओं के रोजगार के लिए भी इस तरफ रुझान बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है. ऐसे व्यावसायिक संस्थान भी अब कृषि क्षेत्र में प्रवेश कर अवसर तलाश रहे हैं जिनका कृषि से पहले कोई जुड़ाव नहीं रहा है.
एमजे खान ने बताया कि इस क्षेत्र में परंपरागत रूप से बहुत सारे व्यवधान रहे हैं और मूल्य संवर्धन के नाम पर कोई काम होने के बजाय कई स्तर पर व्यापारियों और बिचौलियों ने केवल मुनाफे बढ़ाने का काम किया जिसके कारण किसान अपनी फसल कम से कम कीमत पर बेचने को मजबूर हुए जबकि उपभोक्ता तक वही उत्पाद महंगे दर में पहुंचता रहा है.