नई दिल्ली :केंद्र सरकार द्वारा एमएसपी का मूल्य बढ़ाए जाने पर किसान संगठनों ने मिलीजुली प्रतिक्रिया व्यक्त की है. वहींकुछ किसान संगठनों ने महंगाई दर के अनुसार फसल के मूल्य में वृद्धि की बात की है. जबकि कृषि अर्थशास्त्री विजय सरदाना (Vijay Sardana) मानते हैं कि सरकार की नई एमएसपी घोषणा ने किसानों की खेती को ज्यादा लाभकारी बनाने की ओर कदम बढ़ाया है. उनका मानना है कि यदि किसान अनाज की खेती के बजाय दाल और तेल की खेती का रुख करें तो उन्हें दोगुना तक लाभ मिल सकता है.
बता दें कि मोदी सरकार की कैबिनेट ने बुधवार को रबी फसल वर्ष 2022-23 के लिए नए एमएसपी की घोषणा की है जिसमें जौ और गेहूँ पर 35 और 40 रुपये प्रति क्विंटल की मामूली वृद्धि की गई है जबकि दलहन और तिलहन पर 400 रुपये प्रति क्विंटल तक की वृद्धि की गई है.
इस बारे में इस संबंध में ईटीवी भारत से बातचीत में कृषि अर्थशास्त्री सरदाना ने कहा कि यह समझना आवश्यक है कि एमएसपी क्यों दिया जाता है. उन्होंने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य एक शॉर्टेज इकोनॉमी का फॉर्मूला है. जब देश में किसी चीज की कमी हो उसको प्रोत्साहन देने के लिये सरकार यह व्यवस्था करती है ताकि किसानों को प्रोत्साहन मिले कि वह उस खेती को अपनाएं जिसकी देश में कमी है. यदि किसान उन फसलों को छोड़ें जिसकी देश में अधिकता है और दलहन तिलहन की तरफ बढ़ते हैं तो इससे देश को भी फायदा होगा कि जो पैसा आयात के लिए विदेशों में जाता है वह किसानों के पास पहुंचेगा और देश में खाद्य सुरक्षा की स्थिति भी मजबूत हो सकेगी. उन्होंने कहा कि एमएसपी को कभी भी किसानों के लिए आर्थिक मदद के फॉर्मूले की तरह नहीं देखा जाना चाहिए.
विजय सरदाना मानते हैं कि दलहन और तिलहन पर ज्यादा एमएसपी का असर तुरंत देखने को मिलेगा क्योंकि किसानों को भी व्यापार की समझ है. उन्होंने कहा कि किसानों को मजदूर की बजाय एक उद्यमी माना जाना चाहिए बेशक उनका रकबा और उनके कार्य क्षेत्र कितने भी छोटे हों. मौजूदा समय में तिलहन की एमएसपी 4500 से 5000 रुपये प्रति क्विंटल है लेकिन बाजार भाव 8 से 9 हजार तक भी गए और किसानो को ज्यादा लाभ मिला.
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इससे किसानों के बीच एक संदेश गया कि जहां गेहूं या अन्य अनाज को उगाने के बाद एमएसपी पर बेचने के लिए उन्हें एफसीआई पर निर्भर होना पड़ता है वहीं दूसरी तरफ यदि किसान उसी जमीन में सरसों या सूरजमुखी की खेती करता है तो अनाज की तुलना में पैदावार बेशक कम मिले लेकिन जब अच्छे दर पर उनकी फसल बिकेगी तो अंततः उन्हें लाभ ही होगा. तिलहन की खेती में अनाज के बनस्पति खर्चे कम हैं, इससे लागत मूल्य भी कम आएगी. भारत जैसे देश में दलहन और तिलहन आर्थिक और वैज्ञानिक दृष्टि से किसानों को अपनाना चाहिए क्योंकि बाजार उसका साथ देगा. वहीं मॉनसून पर निर्भरता कम होगी क्योंकि ये फसल कम सिंचाई में भी हो सकती है.
उन्होंने कहा कि किसानों की दूसरी बड़ी शिकायत एमएसपी पर खरीद की रही है इसलिए वह तय एमएसपी पर अनिवार्य खरीद के लिए कानून बनाने की मांग भी कर रहे हैं. अर्थशास्त्री विजय सरदाना ने कहा कि देश तेल के मामले में आज भी विदेशों पर निर्भर है और 50 फीसदी से ज्यादा तेल देश में आयात किया जाता है. ऐसे में यदि किसान तिलहन का रुख करें तो न केवल खरीद की समस्या का सामना उन्हें नहीं करना पड़ेगा बल्कि बाजार में मांग होने के कारण उन्हें बेहतर कीमत मिलने की उम्मीद भी रहेगी.
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खरीद की बात पर विशेषज्ञ विजय सरदाना ने कहा कि एमएसपी पर खरीद भारत सरकार पीडीएस के तहत खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए करती है. सरकार आवश्यकता अनुसार जनता को सस्ते दर पर अनाज उपलब्ध कराने के लिए देश के किसानों से अनाज और अन्य फसल खरीदती है. अतः यह व्यवस्था भारत सरकार के द्वारा खरीद के लिए है न कि बाजार के लिए. उन्होंने कहा कि बाजार मांग और आपूर्ति के आधार पर चलता है न कि एमएसपी पर. बाजार में जिस चीज की कमी होती है उसकी कीमत ज्यादा मिलती है और जो प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होती है वह सस्ते दर पर मिलती है. इसी बात को किसानों को भी समझने की आवश्यकता है.
सरदाना ने कहा कि किसानों के द्वारा खरीद की गारंटी की मांग जायज नहीं है क्योंकि सरकार को शत प्रतिशत खरीद करने के लिए जब पैसे जुटाने होंगे तब उसकी व्यवस्था जनता पर टैक्स बढ़ा कर ही कि जाएगी. टैक्स बढ़ने से लोगों पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा. किसनों को हर पहलू पर विचार करना चहिए.विजय सरदाना ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद से ही भारत में कृषि को आर्थिक गतिविधि के बजाय राजनीतिक ज्यादा बना दिया गया है. यही कारण है कि आंदोलन करने वाले किसान नेता आज भी कृषि में राजनीति कर रहे हैं न कि किसानों की माली हालत सुधारने का प्रयास.