जयपुर: कोरोना प्रबंधन को लेकर केंद्र और राज्य सरकार के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर लगातार चल रहा है. वैक्सीनेशन को लेकर भी सियासत गरमाई. इधर कोरोना की दूसरी लहर के बाद राजस्थान से लेकर पंजाब कांग्रेस तक की अंतर्कलह फिर से सामने आ गई. राजस्थान में पायलट कैंप और पंजाब में सिद्धू समर्थकों ने अपनी ही सरकार के खिलाफ जैसे मोर्चा खोल दिया है. राजस्थान में मंत्रिमंडल विस्तार की कवायद और राजनीतिक नियुक्तियों की भी चर्चा है. तो उधर पंजाब में विधानसभा चुनाव से पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह की मुश्किलें अपनों ने ही बढ़ा दी है. दोनों राज्यों की कलह दिल्ली दरबार भी पहुंच गई है. इन सभी मुद्दों पर बात करने के लिए हमारे साथ आए राजस्थान के राजस्व मंत्री हरीश चौधरी. उनके साथ बातचीत की 'ईटीवी भारत' के रीजनल न्यूज को-ऑर्डिनेटर सचिन शर्मा ने. पढ़ें पूरी बातचीत.
हरीश चौधरी राजस्थान सरकार में राजस्व मंत्री हैं. वे राजस्थान विधानसभा में बायतू से विधायक हैं. वे बाड़मेर लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र से सांसद रह चुके हैं. वो पहली बार 2009 में सांसद बने थे. पेश है उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश...
सवाल: कोरोना प्रबंधन में राजस्थान सरकार ने लगातार अपनी लाचारी जाहिर की है. हर बार केंद्र के पाले में आरोपों का पिटारा छोड़ दिया. आपने जनसहयोग से अपने क्षेत्र के लोगों को राहत दिलाने की कोशिश की. क्या आपको नहीं लगता कि अशोक गहलोत सरकार इस मसले पर निदान का रास्ता कम और सियासत का रास्ता ज्यादा चुन रही थी ?
जवाब: दुनिया में कोरोना प्रबंधन का सबसे अच्छा मॉडल राजस्थान का है. पेंडेमिक एक्ट के माध्यम से केंद्र सरकार ने सभी शक्तियां अपने पास रखीं. इतिहास इस बात का गवाह है कि देश में पहले सभी टीकाकरण केंद्र सरकार ने ही किए हैं. पेंडेमिक एक्ट के माध्यम से पूरे देश के सभी ऑक्सीजन स्त्रोत को केंद्र सरकार ने अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया और उन्होंने री-डिस्ट्रिब्यूट किया. जब केंद्र सरकार ने अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया तो जिम्मेदारी भी केंद्र सरकार की है. राजस्थान की गहलोत सरकार कभी भी अपनी जिम्मेदारी से पीछे नहीं हटी.
सीमित संसाधन के बावजूद राजस्थान में सभी क्षेत्र में बेहतर प्रबंधन हुआ. एक समय था जब 700 मीट्रिक टन से ज्यादा ऑक्सीजन की जरूरत थी, लेकिन 300 मीट्रिक टन ऑक्सीजन ही मिल रही थी. इसके बावजूद बेहतर प्रबंधन हुआ और कोरोना मरीजों का इलाज किया गया. आज भी ब्लैक फंगस की जितनी दवाई की जरूरत है, उससे कम मिल रही है. विवाद करने से किसी का भी मकसद हल नहीं होगा. वैक्सीनेशन के बाद खराब वैक्सीन या यूज्ड वैक्सीन को डिस्पोज करने का प्रोटोकॉल केंद्र सरकार ने ही तय किया है.
सवाल: क्या आप राजस्थान सरकार के साल भर के सभी प्रयास से पूर्ण रूप से संतुष्ट हैं?
जवाब:सबसे बेहतर प्रबंधन किया गया. सरकार में हूं, इसलिए नहीं कह रहा. राजस्थान के आसपास उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, हरियाणा, गुजरात से तुलना करें तो यह समझ आ जाएगा कि राजस्थान ने बेहतर प्रबंधन किया है.
सवाल: आपने जिस भूमि का सामरा क्षेत्र में अस्पताल के लिये चुनाव किया था, उसे लेकर विवाद भी हुआ. आप पर आरोप लगा कि आपने गरीबों के कच्चे घर तोड़कर अस्पताल बनवाया. आपने इस बारे में सफाई भी दी, लेकिन आपके प्रतिद्वंद्वियों (केन्द्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी) ने इसे नहीं माना. वे इसे आपके सत्ता के नशे से जोड़ते रहे. इस पर क्या कहेंगे आप?
जवाब:सामरा क्षेत्र में अस्पताल के लिए भूमि आवंटन की प्रक्रिया एक दिन में नहीं हुई. हमने तारीखें भी दीं. करीब साल भर प्रक्रिया के बाद भूमि आवंटित हुई. तथाकथित बेदखल करने के आरोप लगाए जा रहे हैं. वो खसरा, वो जमीन इस के अंदर नहीं थी. सामरा के अस्पताल को बदनाम करने की मंशा से आरोप लगाए जा रहे हैं. राजस्व रिकॉर्ड देख सकते हैं. एक किलोमीटर तक किसी प्रकार की निजी जमीन नहीं है. या तो राजस्व की जमीन है, सरकारी जमीन है या उद्योग विभाग की जमीन है. आरोप लगाने के लिए आरोप नहीं लगाएं. ग्राउंड लेवल पर जाकर इंवेस्टिगेशन कर लें. तथ्य लेकर आएं, फिर आरोप लगाएं.
सवाल: आपके जिले (बाड़मेर) के दो कांग्रेस विधायक मुखर होकर सरकार के खिलाफ उतर आये हैं. एक मंत्री के नाते क्या आपने हेमाराम चौधरी और मदन प्रजापति से बात की. आखिर क्यों आपके जिले के नेताओं में असंतोष पनप रहा है. इस बारे में आप क्या कहना चाहेंगे ?
जवाब: मैं लगातार संवाद कर रहा हूं. संवाद में कहीं कोई कमी नहीं है. उनके कुछ मूल मुद्दे हैं. उनको सुलझाएंगे. लोकतंत्र में संवाद सशक्त माध्यम है. हमने संवाद रखा है और आगे भी उनसे बात करेंगे. किसी भी प्रकार की कमी है तो बात करेंगे. हमारे विरोधी भी कोई मुद्दे उठाते हैं तो भी हम बात करते हैं. यही लोकतंत्र है. मेरी जो जिम्मेदारी है, उसे पूरा करूंगा. मैं संवाद से जो समाधान निकाल सकता हूं, वो निकालूंगा. जो मेरे अधिकार क्षेत्र से बाहर है, वो समाधान मैं नहीं निकाल सकता.
सवाल: क्या आपको नहीं लगता है कि हेमाराम चौधरी को उनके तजुर्बे के हिसाब से सरकार में भागीदारी नहीं मिली? जब शपथ ग्रहण हुआ था, उससे पहले आपने कहा था कि मुझे मंत्री नहीं बनना है, लेकिन आप बन गए. क्या इस बार भी आपकी लाइन यही रहेगी.. किसी के लिए अपना बलिदान देंगे आप ?
जवाब: मैं कांग्रेस का कार्यकर्ता हूं. साल 1989 में पहला चुनाव लड़ा. उस समय से संगठन से जुड़ा हूं. मेरी प्राथमिकता हर समय यही रही है कि मैं संगठन के अंदर काम करूं. मंत्री बनाने का अधिकार मेरा नहीं बल्कि मुख्यमंत्री का है. मुख्यमंत्री किनसे सलाह लें? परंपरा यह है कि मुख्यमंत्री संगठन से सलाह लेते हैं. किसे मंत्री बनना चाहिए या मंत्री नहीं बनना चाहिए, यह मेरे अधिकार क्षेत्र में नहीं है. किसी भी संस्था या संगठन में आप काम करते हैं तो संगठन और संस्था तय करते हैं कि आपको कहां काम करना चाहिए.