रायपुर:आजादी के 75वीं वर्षगांठ को पूरा देश अमृत महोत्सव के तौर पर मना रहा है. अंग्रेजों की 200 वर्ष की गुलामी के बाद भारत ने 15 अगस्त 1947 को आजादी का स्वाद चखा. कहते हैं यह आजादी इतनी आसान नहीं थी. इसके पीछे था उन वीर सपूतों का योगदान, जिन्होंने हंसते-हंसते देश की आजादी के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे. ऐसे वीर सपूतों में से एक नाम थे मंगल (Mangal Pandey grandson Raghunath Pandey) पांडे. जिन्होंने 1857 की क्रांति में आजादी का बिगुल फूंका.
शहीद मंगल पांडे की चौथी पीढ़ी यानी उनके प्रपौत्र रघुनाथ पांडे रायपुर में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के राष्ट्रीय सम्मेलन में शामिल होने रायपुर पहुंचे. इस मौके पर उन्होंने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. उन्होंने बताया कि आजादी के बाद देश की राजनीति स्वच्छ नहीं है. राजनीति की वजह से हिन्दू-मुस्लिम दंगे हो रहे हैं.
सवाल:आप मंगल पांडे के क्या लगते हैं? जरा मंगल पांडे के इतिहास के बारे में बताइए?
जवाब: मैं शहीद मंगल पांडे की चौथी पीढ़ी का वंशज हूं. मेरे पिताजी का नाम महेश पांडे है. शहीद मंगल पांडे का जन्म बलिया जिले के नगवा गांव में हुआ था. उनका जन्म 30 जनवरी 1831 में हुआ. बैरकपुर में एक सिपाही के रूप में वे पदस्थ थे. उनको जब किसी माध्यम से मालूम हुआ कि कारतूस में गाय और सुअर की चर्बी मिली हुई है, जिसे दांत से खींचकर बंदूक भरनी पड़ती थी. तो ब्राह्मण होने के नाते उन्होंने यह काम करने से इंकार कर दिया और दूसरों को भी यह काम करने से मना कर दिया कि अब हम बंदूक नहीं चलाएंगे. इस पर 29 मार्च 1857 को उनको गिरफ्तार कर लिया गया. कम अंतराल के बाद 6 अप्रैल 1857 को फौजी मुकदमा में उनका फैसला हुआ. जिस पर फांसी देने का आदेश हुआ. 7 अप्रैल 1857 को फांसी देने का समय तय हुआ लेकिन वहां के जल्लादों ने उनको फांसी देने से इनकार कर दिया. क्योंकि जल्लाद भी उनके साथ शामिल हो गए थे. इसके बाद कोलकाता से जल्लाद बुलाए गए. उनको बताया नहीं गया कि क्या करना है. यदि उन्हें भी पता होता तो शायद वे भी फांसी देने से इनकार कर देते. चूंकि मंगल पांडे को फांसी देना उनके लिए आवश्यक हो गया था. इसके बाद 8 अगस्त 1857 को साढ़े पांच बजे उनको फांसी के फंदे पर लटका दिया गया.
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सवाल: मंगल पांडे को फांसी देने के बाद परिवार को अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा किस तरह की यातनाएं दी गई?
जवाब: उनको जब फांसी के फंदे पर लटकाया गया. उसके बाद एक प्रकार से स्वतंत्रता के बारे में लोगों के अंदर भावना जागृत होनी शुरू हो गई. आजादी की लड़ाई की चिंगारी मेरठ में गिरी. 10 मई को इस चिंगारी ने विकराल रूप ले लिया और तत्कालीन बहादुर शाह जफर, तात्या टोपे, झांसी की रानी, वीर कुंवर सिंह आदि लोग स्वतंत्रता के आंदोलन में शामिल हुए और इस तरह 90 वर्षों के संघर्षों के बाद हमारा देश आजाद हुआ. उस समय अंग्रेजों को यह विश्वास था. फौजी मुकदमा में केवल एक ही फैसला होता था केवल फांसी दे दो. क्योंकि इससे बड़ा कोई दंड होता नहीं था. उनको यह था कि फांसी देने का सिलसिला जारी रहेगा तो यह मामला थम जाएगा और आजादी का आंदोलन भारतवासी करना बंद कर देंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. कुछ वर्ष तक यह मामला बंद रहा. फिर नए भारत में महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में स्वतंत्रता का आंदोलन जारी रहा. जिसके 90 वर्षों के बाद हमारा देश आजाद हुआ.
सवाल: स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने आजादी से पहले जो सपने देखे थे आजादी के बाद क्या उनके सपनों का भारत बना?