पटना: ड्रिफ्टवुड आर्ट(Driftwood Art) एक विधा है. इस विधा में चुनिंदा लोग ही पारंगत होते हैं. ड्रिफ्टवुड आर्ट के मैटेरियल यहां वहां मिल जाएंगे लेकिन उन्हें पहचानना हुनरमंदों का काम है. बिहार में ड्रिफ्टवुड आर्ट का शौक एक आईपीएस ऑफिसर रखते हैं. कह सकते हैं कि प्राणतोष कुमार दास (Prantosh Kumar Das IG) बिहार ही नहीं बल्कि देश में ड्रिफ्टवुड आर्ट से रूबरू करवाने वाले पहले आईपीएस ऑफिसर हैं. उनका शौक ही अब जुनून बन चुका है. इन्होंने बिहार के भागलपुर के बूढ़ानाथ मंदिर के पास ड्रिफ्टवुड म्यूजियम एवं पार्क (Driftwood Museum and Park) बनाया हुआ है. वहां का प्राकृतिक नजारा हर किसी को मंत्रमुग्ध कर लेता है. पीके दास अभी बिहार स्टेट रिकॉर्ड्स ब्यूरो में आईजी के पद पर कार्यरत हैं.
भागलपुर के बूढ़ानाथ मंदिर के सामने पीके दास ने अपना ड्रिफ्टवुड म्यूजियम बनाया है. गंगा के दियारा को पार कर 40 सीढ़ी चढ़कर इस म्यूजियम में पहुंचा जा सकता है. ये गंगा के टापू पर बना हुआ म्यूजियम है जो लगभग साढ़े तीन एकड़ में फैला हुआ है. यहां ड्रिफ्टवुड आर्ट के 125 पीस करीने से तराशकर रखे गए हैं. जिसमें डांसिंग लेडीज, डांसिंग एलियंस, ऑक्टोपस, एक गाय जिसका थन भी है, हाथी का हेड, हाथी का सूंड, कछुआ, बड़ा सा सांप जिसके ऊपर एक इंसान खड़ा है. ये सब बिल्कुल ओरिजन हैं. यहां विजिट करने में लोगों को काफी रोमांचकारी फील होगा.
ईटीवी भारत से एक्सक्लूसिव बातचीत में आईजी प्राणतोष कुमार दास ने कहा कि उनके ड्रिफ्टवुड म्यूजियम में 125 आकृतियों को सहेजकर रखा गया है. इन सभी कलाकृतियों का संकलन उन्होंने दो दशकों के लंबे संघर्षों में किया है. इसकी शुरूआत उन्होंने एक लकड़ी के बहते टुकड़े से की. उस बड़े से टुकड़े को लेकर वो अपने लॉन में आए. वहां कई साल तक वो वैसे ही पड़ा रहा लेकिन एक दिन उन्होंने उसमें हाथी की सिर वाली आकृति दिखने लगी. फिर उसे बढ़ई से तराश कर नेचुरल शेप दिया. वहीं से उनकी इस क्षेत्र में दिलचस्पी बढ़ी.
ड्रिफ्टवुड आर्ट क्या है (What is Driftwood Art)? इसका जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि अमूमन ये लकड़ी का एक टुकड़ा होता है जो नदी, समुद्र, तालाब आदि के किनारे मिल जाते हैं. ये लहरों के थपड़े सहते सहते, हवा की मार झेलते झेलते किनारे लग जाते हैं. लेकिन इस लंबे सफर के दौरान लकड़ी का शेप बदल जाता है. बस उस लकड़ी में आकृति को पहचानकर तराशना ही चुनौती भरा होता है.