रायपुर :भारत को आजादी दिलाने और देश के विकास में भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri second Prime Minister of India) का अतुलनीय योगदान रहा है. प्रधानमंत्री पद में रहने के बावजूद भी उनका सहज और सरल स्वभाव अपने आप में एक मिसाल था. लाल बहादुर शास्त्री जी के बेटे और वरिष्ठ कांग्रेस नेता अनिल शास्त्री (Senior Congress leader Anil Shastri) हाल ही में छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर पहुंचे. उनसे देश की मौजूदा राजनीति समेत कई मुद्दों पर ईटीवी भारत संवाददाता ने खास बातचीत की.
सवाल - आपको कॉलेज में प्रवेश लेना था उस दौरान आपने एडमिशन फॉर्म में घर का पता 10 जनपद पता लिख दिया था, उसके बाद आपके पिता जी नाराज हो गए थे. ये पूरी घटना क्या थी ?
जवाब- मैं दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज (St Stephen's College, Delhi) में एडमिशन लेने के लिए एक साधारण विद्यार्थी की तरह गया था. सामान्य विद्यार्थी की तरह मैंने आवेदन किया. अपना नाम मैंने अनिल कुमार शास्त्री (Anil Kumar Shastri) की जगह अनिल कुमार लिखा, लेकिन घर का पता 10 जनपद लिखा था और पिता का नाम मैने केवल लाल बहादुर लिखा था. पिता का ऑक्यूपेशन गवर्नमेंट सर्विस लिखा था. जो मेरा आवेदन स्वीकार कर रहे थे, उन्होंने मुझसे कहा कि जो आपने पता लिखा है वह प्रधानमंत्री निवास (prime minister residence) है. उसके बाद उन्होंने पूछा कि तुम्हारे पिता वहां क्या करते हैं. बताइए, मैनें उन्हें बताया कि वे देश के प्रधानमंत्री हैं. मेरे इतना कहने के बाद वह शिक्षक खड़े हो गए. उन्होंने मुझे प्रिंसिपल से मिलाया और मेरा दाखिला हो गया. यह सारी बातें मैंने अपने पिताजी को बताई उन्होंने कहा कि, तुमने उनके प्रश्नों के उत्तर दिए यह बात सही है. लेकिन तुम्हे ले जाकर प्रिंसिपल से मिलवाया वह बात ठीक नहीं है. क्या उस शिक्षक ने दूसरे विद्यार्थियों को भी प्रिंसिपल से मिलवाया था? मैंने कहा नहीं, मेरे पिताजी ने मुझे एक सीख दी कि सब बराबर हैं. जो दूसरे विद्यार्थी आवेदन करने आए थे और तुम भी. दोनों में कोई फर्क नहीं है. केवल तुम प्रधानमंत्री के बेटे हो इसका मतलब यह नहीं है तुम्हें किसी प्रकार से ज्यादा महत्व मिलना चाहिए.
यही बात मुझे मेरे पिताजी से याद आती है कि जब मेरे पिताजी प्रधानमंत्री बने, उस दैरान मैं 15 वर्ष का था, लेकिन मैने चुपचाप कार चलाना सीखा था. मुझे कार चलानी आती थी. उसी दैरान मेरे ख्याल में आया कि क्यों न मैं एक ड्राइविंग लाइसेंस ले लूं. प्रधानमंत्री कार्यालय में कैलाश नारायण सचिव हुआ करते थे. मैंने उनसे ड्राइविंग लाइसेंस बनने की बात कही. उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या आपको ड्राइविंग करना आता है. मैंने उन्हें बताया हां मुझे ड्राइविंग करना आता है. उसके बाद डेढ़ घंटे में मेरे पास ड्राइविंग लाइसेंस आ गया. ड्राइविंग लाइसेंस पाकर मैं बहुत खुश हुआ, क्योंकि ड्राइविंग लाइसेंस 18 वर्ष की उम्र में बनते हैं. लेकिन मुझे 15 वर्ष की उम्र में ही ड्राइविंग लाइसेंस मिल गया था. इस बात के कारण मेरे अंदर घमंड सा आ गया. पिताजी रात को आए तो मैंने उन्हें ड्राइविंग लाइसेंस दिखाया. जैसे ही उन्होंने लाइसेंस देखा वे गंभीर हो गए. मैंने उनसे पूछा कि आप इतने गंभीर क्यो हो गए हैं. लाल बहादुर शास्त्री जी ने कहा कि यह कोई प्रशंसा की बात नहीं है. मुझे बड़ा कष्ट हो रहा है. तुम्हारे पास लाइसेंस आ गया. मैंने पिताजी से कारण पूछा. उन्होंने कहा कि देश के एक कानून का उल्लंघन प्रधानमंत्री के बेटे ने प्रधानमंत्री निवास प्रांगण के अंदर किया है. यह कितने अफसोस की बात है. मैं यहां बैठा हूं देश का कानून बनाने के लिए और रोजाना लोगों से आह्वान करता हूं कि देश के कानूनों का पालन होना चाहिये. उसी प्रधानमंत्री के बेटे ने एक देश के कानून को तोड़ा है. यह सुनते ही मैं रोने लगा. उन्होंने मुझे एक ऐसी सीख दी. जिसके बाद मैं हमेशा प्रयास करता हूँ कि मैं देश के किसी भी कानून का उल्लंघन न करूं. मेरे तीन बेटे हैं तीनों बेटों को मैंने 18 वर्ष पूरा होने के बाद ही गाड़ी चलाने की इजाजत दी.
सवाल - शास्त्री जी ऐसे प्रधानमंत्री हुए, जिन्होंने अपने परिवार को किसी भी तरह से प्रधानमंत्री पद का इस्तेमाल करने नहीं दिया. आज के समय में विधायक, सांसद या पार्षद के कोई रिश्तेदार होते हैं. वह पद का इस्तेमाल करते हैं. राजनीति में आप कितना बदलाव देखते हैं?
जवाब- राजनीति में बड़ी तेजी से राजनीतिक मूल्यों में गिरावट (decline in political values) आई है. मेरा ऐसा मानना है यह एक मंथन के दौर से गुजर रहे है. हो सकता है कि कुछ दिन में यह ठीक हो जाए. आज से 15 साल पहले मुझसे कोई पूछता तो ऐसी कल्पना भी नहीं कर सकता था कि कोई मुख्यमंत्री या कोई मंत्री जेल भी जा सकता है. लेकिन देश के दो मुख्यमंत्री ने जेल की सजा काटी है. हमारी जो लोकतांत्रिक व्यवस्था है यह इसकी मजबूती का यह प्रमाण है. डेमोक्रेटिक स्ट्रक्चर की नींव इतनी मजबूत है. और इसे मजबूत करने का श्रेय देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू (Pandit Jawaharlal Nehru the first Prime Minister of India) को जाता है. जिन्होंने हमेशा लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करने के लिए कार्य किया. आज भी हम लोकतांत्रिक व्यवस्था से इलेक्शन लड़ते हैं. समय के साथ राजनीतिक मूल्य में गिरावट आई है. एक समय था जब लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) ने एक रेल दुर्घटना के बाद नैतिक जिम्मेदारी समझकर रेल मंत्री के पद से अपना इस्तीफा दे दिया था. आज के समय में इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती. राजनेता अपनी नैतिक जिम्मेदारी को नहीं समझ पा रहे हैं. वे नैतिक जिम्मेदारी की परिभाषा भी नहीं समझते. मेरा ऐसा मानना है कि लोगों को अधिक से अधिक प्रयास करना चाहिए वे अपने इतिहास और जो महापुरुष हुए हैं, उनकी जीवनी से बहुत कुछ सीख कर, अपने जीवन में उसे उतारने का प्रयास करें. अगर ऐसा होता है तो हमारे समाज और देश के लिए अच्छा साबित हो सकता है.
सवाल- लाल बहादुर शास्त्री जी ने नारा दिया "जय जवान जय किसान", (Jai jawan jai kisan) उनके इस नारे को वर्तमान सरकार कितना चरितार्थ कर पा रही है?
जवाब- वर्तमान की मोदी सरकार (Modi government worked against farmers) ने इसके विपरीत कार्य किया है. पिछले एक सालों से किसानों का धरना प्रदर्शन होता रहा. गांव के किसान मारे गए, केंद्रीय मंत्री के बेटे ने किसानो को गाड़ी से रौंद दिया. लेकिन शास्त्री जी ने जो 'जय जवान और जय किसान' का नारा दिया है. वह आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना 1965 में था. 'जय जवान और जय किसान' का नारा हमारे स्वालंबन और स्वाभिमान का प्रतीक है. उन्होंने यह नारा इसलिए दिया कि जवानों ने हमारे देश की रक्षा की. जब पाकिस्तान ने अटैक किया. किसानों का नारा इसलिए दिया क्योंकि अमेरिका ने धमकी दी थी, आपको गेंहू नहीं देंगे. अगर आप पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध नहीं रोकते. उन्हें इस बात का धक्का लगा, लाल बहादुर शास्त्री ने यह सोचा कि वे किस तरह से इसका जवाब दे. तब उन्होंने देशवासियों से आह्वान किया कि सप्ताह में एक दिन उपवास करें. शास्त्री जी ने कहा था कि हम अमेरिका के सामने खाने के लिए हाथ नहीं फैलाएंगे. तब उन्होंने जय जवान और जय किसान का नारा दिया. जिसके बाद देश में किसानों ने भी बहुत अधिक मेहनत की. सही मायने में लाल बहादुर शास्त्री जी ने अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल में हरित क्रांति की शुरुआत की थी.