पटना: बिहार की राजनीति में इन दिनों भारी उथल पुथल चल रहा है, फिर चाहे बात सत्ता पर काबिज जदयू की हो या विपक्षी दलों की. सब कुछ ठीक तो कहीं नहीं है. कहीं कहीं मनभेद खुलकर सामने आ गया है, तो कहीं विरोधी सुर अभी अंदर ही बज रहे हैं. ऐसा ही कुछ जदयू संसदीय दल के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह के बीच भी सब कुछ ठीक नहीं है. हालांकि, जब ईटीवी भारत के संवाददाता अविनाश ने इस बारे में सवाल किया, तो उपेंद्र कुशवाहा ने साफ इंकार किया. ऐसे ही कई सियासी सवालों के जवाब उन्होंने बड़ी ही बेबाकी से दिए. पेश है बातचीत के प्रमुख अंश...
कार्यकर्ता के रूप में कर रहा हूं काम
जदयू में शामिल होने के फैसले और अपनी भूमिका के सवाल पर उपेंद्र कुशवाहा बताते हैं कि विधानसभा चुनाव के बाद व्यक्तिगत रूप से मुझे लगा कि लोग चाहते हैं उपेंद्र कुशवाहा और नीतीश एक साथ आएं. जनता के आदेश के बाद हम लोगों ने फैसला लिया. पार्टी में शामिल होने के बाद एक कार्यकर्ता के तौर पर काम कर रहा हूं. पार्टी जो भी भूमिका तय करेगी उसे पूरा करूंगा. जदयू को फिर से बिहार में नंबर वन पार्टी बनाएंगे. उसके लिए काम कर रहे हैं.
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बहुत कुछ किया है अभी और करना बाकी है
नितीश कुमार को विकास पुरुष बताते हुए कुशवाहा कहते हैं कि पार्टी में शमिल होने के बाद पूरी तरह से सहज हूं. बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में विकास के बहुत काम हुए हैं और अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है. नीतीश कुमार समाज के लिए कुछ अलग काम करते रहे हैं. उनके नेतृत्व में जो कुछ हो रहा है, वह अच्छा लग रहा है. आगे और अच्छा काम होगा. हम लोग उनके साथ हैं. हम आंदोलन चलाते थे. सरकार से मांग करते थे, लेकिन अब सत्ताधारी दल में शामिल हो गए तो लोगों की मांग को और बेहतर ढंग से पूरा कर सकेंगे.
उपेंद्र कुशवाहा का इंटरव्यू राष्ट्रीय अध्यक्ष से नहीं है कोई मतभेद
बिहार की राजनीति में लोजपा में चल रहे विरोध के साथ ही जदयू में उपेंद्र कुशवाहा और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की सुगबुगाहट भी खूब है. इससे जुड़े सवाल पर उपेंद्र कुशवाहा इसे सिर्फ कोरी अफवाह बताते हुए कहते हैं कि पार्टी में कोई गुटबाजी नहीं है. आरसीपी सिंह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और उनके साथ लगातार बातचीत होती है और मुलाकात भी हुई है. उनके साथ कोई मतभेद नहीं है. जहां तक बात पार्टी कार्यालय की बैठकों में शामिल होने पर है तो कोरोना काल में अभी तक कोई कार्यक्रम नहीं हुआ है और आरसीपी सिंह पार्टी नेताओं की बैठक करते हैं जिसमें सभी लोग जाते हैं.
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यूपी चुनाव है बेहद अहम
उत्तर प्रदेश में 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाग लेने के सवाल पर कुशवाहा ने बेबाकी से अपना पक्ष रखते हुए कहा कि पार्टी के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने चुनाव लड़ने की बात कही है. हालांकि हम लोग चाहते हैं कि बीजेपी के साथ गठबंधन हो जाए. वैसे पार्टी अपने स्तर से तैयारी कर रही है. बीजेपी के नेताओं की बयानबाजी वाले सवाल पर कहते हैं कि दोनों दल अलग-अलग हैं. हम लोग गठबंधन में एक साथ हैं. बयानबाजी का असर गठबंधन पर नहीं पड़ेगा. जनसंख्या नियंत्रण कानून, कॉमन सिविल कोड और धर्मांतरण के मुद्दे पर जदयू और बीजेपी की अपनी-अपनी नीति है.
साथ में काम करना है पसंद
भविष्य में मुख्यमंत्री बनने की संभावनाओं के सवाल को कुशवाहा निराधार बताते हुए कहते हैं कि पहले जो भूमिका थी उसके लिए काम कर रहे थे. अब जो भूमिका मेरे लिए तय है, उस पर काम कर रहा हूं. जहां तक भविष्य की है, तो इस बारे में कोई नहीं जानता.
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कभी नीतीश के खासम खास थे कुशवाहा
बता दें कि उपेंद्र कुशवाहा कभी नीतीश कुमार के खासम-खास थे. बिहार के वैशाली जिले से आने वाले उपेंद्र कुशवाहा राजनीति में आने से पहले लेक्चरर थे. उन्होंने मुजफ्फरपुर के बीआर अंबेडकर बिहार यूनिवर्सिटी से राजनीति विज्ञान में एमए किया है. कुशवाहा ने कर्पूरी ठाकुर से प्रभावित होकर 1985 में राजनीति में एंट्री की और लोकदल से अपना सियासी सफर शुरू किया. 1985 से 1988 तक लोकदल के युवा राज्य महासचिव रहे फिर पार्टी में उन्हें राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेवारी मिली.
नाराजगी के चलते हो गए थे अलग
लोकदल के बाद कुशवाहा समता पार्टी में शामिल हो गए और वहां महासचिव बने. 2000 से 2005 तक बिहार विधानसभा के सदस्य भी रहे. नीतीश ने उन्हें विधानसभा का उप नेता और नेता प्रतिपक्ष भी बनाया. नीतीश ने उपेंद्र को राज्यसभा भी भेजा. नीतीश से नाराजगी के बाद उपेंद्र अलग हो गए थे. इसके बाद कई दलों में गए. 2013 में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी की स्थापना की. 2014 में एनडीए में शामिल हो गए और इनकी पार्टी को लोकसभा चुनाव में 3 सीट पर जीत मिली. वह काराकाट से सांसद बने थे. केंद्र में राज्य मंत्री भी बने, लेकिन नीतीश के एनडीए में आने के बाद इनकी स्थिति लगातार कमजोर होती गई.
नीतीश के खिलाफ चलाया था अभियान
उपेंद्र कुशवाहा नीतीश कुमार के खिलाफ बिहार में शिक्षा को लेकर लगातार अभियान भी चलाते रहे. 2019 लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए से अलग हो गए और महागठबंधन में शामिल हो गए, लेकिन लोकसभा चुनाव में सफलता नहीं मिली. 2020 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में तीसरे मोर्चे का निर्माण किया और खुद मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बन गए, लेकिन रालोसपा को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली. उपेंद्र ने अपनी पार्टी रालोसपा का विलय जदयू में कराया और फिर से नीतीश कुमार के साथ हैं.