हैदराबाद : हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में कहा कि राज्य ने कोरोना महामारी से निबटने के लिए अच्छा काम किया है. इसके साथ ही उन्होंने सुजानपुर से मिली हार पर कहा कि मेरी सीट बदली हुई थी और मैंने अपने चुनाव क्षेत्र में एक भी दिन प्रचार नहीं किया था, जहां मेरा व्यक्तिगत संपर्क होना चाहिए था वो नहीं हो पाया. इसलिए मैं इस बार कसर निकाल रहा हूं. जहां मैं दो हजार वोटों से हारा था वो लोकसभा में हमने 25 हजार वोटों से जीत हासिल की है. उन्होंने राजनीति से लेकर अपने बेटे तक के बारे में खुलकर बातचीत की. आप भी देखें और पढ़ें उनका पूरा इंटरव्यू.
सवाल : हिमाचल में भाजपा को मजबूत करने में आपका अहम योगदान है. दो बार मुख्यमंत्री रहते हुए विकास के कई काम आपके कार्यकाल में हुए. आपको सड़कों वाले मुख्यमंत्री के रूप में जाना जाता है. आपने पूरे हिमाचल में सड़कों के नेटवर्क को पहुंचाया है. अब वर्तमान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली सरकार के अब तक के कामकाज को आप कैसे देखते हैं ?
जबाव : वर्तमान सरकार में कोरोना महामारी एक बड़े संकट के रूप में उभरकर सामने आई, लेकिन सरकार ने इससे निबटने के लिए अच्छा काम किया है. महामारी ने राज्य के विकास की गति को काफी हद तक धीमा कर दिया.
सवाल : छोटा पहाड़ी राज्य होने के नाते हिमाचल प्रदेश के पास सीमित आर्थिक संसाधन हैं. केंद्रीय सहायता पर निर्भर हिमाचल पर कर्ज का भी भारी बोझ है. हिमाचल के विकास के लिए विशेष औद्योगिक पैकेज दिलाने में आपकी अहम भूमिका रही है. क्या आप हिमाचल को कर्ज से उबारने के लिए केंद्र से टोटल बेल आउट पैकेज दिए जाने की जरूरत पर जोर देते हैं ? या फिर हिमाचल को आर्थिक समृद्धि के रास्ते पर ले जाने के लिए आपकी नजर में और भी कोई उपाय हैं ?
जवाब : मैं मानता हूं कि हिमाचल जैसा छोटा राज्य केवल अपने संसाधनों के आधार पर न विकास कर सकता है और न ही आगे बढ़ सकता है. केंद्र का सहयोग और समर्थन हमेशा चाहिए. मैं कहना चाहूंगा कि एक समय ऐसा आया था कि जब कांग्रेस सरकार ने हमारा विशेष राज्य का दर्जा वापस ले लिया था, जिसके कारण संसाधनों पर काफी दुष्प्रभाव पड़ा था.
इसके लिए मैं पीएम मोदी को धन्यवाद देना चाहता हूं, जिन्होंने सत्ता में आने के बाद शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन किया. उस कमेटी की सिफारिश आते ही, हिमाचल प्रदेश को विशेष श्रेणी का दर्जा वापस लौटाया था, जबकि उस समय प्रदेश में कांग्रेस सरकार थी, लेकिन पीएम मोदी ने भेदभाव नहीं किया और हिमाचल प्रदेश को विशेष श्रेणी का दर्जा वापस लौटाया.
पीएम मोदी ने हिमाचल के साथ-साथ उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर को भी विशेष श्रेणी का दर्जा वापस लौटाया, जिसमें अगर केंद्र से हमें 100 रुपये मिलते हैं तो उसमें से 90 रुपये उसमें अनुदान होते हैं और 10 रुपये एक ऋण के तौर पर होते हैं. कोरोना काल में केंद्र सरकार ने 50 साल के लिए ब्याजमुक्त 400 करोड़ रुपये सहायता प्रदेश को दी है. वहीं, कोरोना से लड़ने के लिए केंद्र ने काफी संसाधन भी मुहैया करवाए हैं.
मैं मानता हूं कि केंद्र की मदद की जरूरत रहती है और बेल आउट का जो पैकेज है, वो किस-किस राज्य को देना है. केंद्र के संसाधन भी काफी सीमित होते हैं. बाकि रही बात हमारे शासनकाल की तो पीएम मोदी आज स्वच्छता अभियान चला रहे हैं. हमने 1999 में पॉलिथीन और प्लास्टिक को बैन लगा दिया था. वहीं, हजारों करोड़ की मदद हमें केंद्र के माध्यम से वर्ल्ड बैंक द्वारा दी गई थी.
हिमाचल में पर्यटन को बढ़ावा देना होगा. यह चाहे धार्मिक पर्यटन हो या साहसिक पर्यटन. हमें अरबी कल्चर को विकसित करना होगा. हिमाचल में पंजाब जैसा गर्म क्षेत्र भी है और सबसे ठंडा स्थान भी हिमाचल में है. इसका अर्थ है कि हर प्रकार की जड़ी बूटियां यहां पैदा हो सकती हैं.
सवाल : हिमाचल देवभूमि के साथ-साथ वीरभूमि भी है. भारतीय सेना में 'हिमालयन रेजीमेंट' आपका मूल विचार रहा है. इस संदर्भ में हिमाचल विधानसभा से प्रस्ताव पारित कर भी केन्द्र सरकार को भेजे गए हैं. वर्तमान पीएम नरेंद्र मोदी से भी आपके नजदीकी रिश्ते हैं. क्या निकट भविष्य में आप हिमालयन रेजीमेंट का सपना साकार होते देख रहे हैं ?
जवाब : हमने तो कहा था कि हिमाचल रेजीमेंट. पंजाब रेजीमेंट, जाट रेजीमेंट, बिहार रेजीमेंट, कुमाऊं रेजीमेंट, गढ़वाल रेजीमेंट, मद्रास रेजीमेंट राज्यों के नाम से होती थीं, लेकिन फिर केंद्र ने निर्णय लिया कि राज्यों के आधार पर रेजीमेंट नहीं बनेंगी. डोगरा रेजीमेंट है, जिसमें हमारे अधिकतर जवान जाते हैं. कारगिल युद्ध में चार परमवीर चक्र मिले थे. इसमें से दो जवान हिमाचल प्रदेश के थे, जिनमें कैप्टन विक्रम बत्रा, संजय कुमार शामिल हैं. इसी को लेकर हम कई बार आग्रह करते रहे, इसके बाद हमने कहा कि अगर हिमाचल रेजीमेंट नहीं बनती है तो हिमालयन रेजीमेंट बनाई जानी चाहिए.
अब अगर कोई दूसरा युद्ध होता है, चाहे वो पाकिस्तान या चीन के साथ हो, युद्ध ज्यादातर पहाड़ी इलाकों में होते हैं. ऐसे में जो लोग पहाड़ी इलाकों में पैदा हुए होते हैं, वो पहाड़ों की रग-रग से वाकिफ होते हैं. जो निचले इलाकों से आतें है, उनको पहाड़ों पर एडजस्ट करने में समय लगेगा. ऐसे में जिनका जन्म पहाड़ों पर हुआ है वो यह काम बड़े आराम से कर लेंगे. मैंने हिमाचल के बजाय हिमालयन रेजीमेंट की मांग की थी. जम्मू कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखंड, सिक्किम और जितने भी पहाड़ी राज्य हैं, इन राज्यों के लोगों को इस रेजीमेंट में भर्ती किया जाना चाहिए. अगर ऐसा होता हो तो यह रजीमेंट सैन्य लिहाज से काफी महत्वपूर्ण होगा.
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सवाल : ये दुखद है कि कांग्रेस के कद्दावर नेता वीरभद्र सिंह अब हमारे बीच नहीं हैं, प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस की इस रिक्तता को आप कैसे देखते हैं और चिर राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी से आपके रिश्तों को आप कैसे बयां करेंगे ?
जवाब : वीरभद्र सिंह हमारे प्रदेश के कद्दावर नेता थे. हमारी तुलना कोई नहीं है. वो राज परिवार से थे और मैं फौजी और किसान परिवार से हूं, लेकिन विचारधारा के मतभेद हमारे बीच हमेशा रहे, फिर भी हमारे बीच कोई व्यक्तिगत मतभेद नहीं रहे. विधानसभा के बाहर हम हमेशा मिलते थे और चर्चा में खूब गहमागहमी होती थी. वो भी अपनी बात पूरे दम के साथ रखते थे और हम भी.