नई दिल्ली : कोरोना महामारी के बीच प्रभावित हो रही विकास दर और बढ़ती महंगाई को लेकर कई अहम बातें सामने आई हैं. ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि मांग-आपूर्ति के बेमेल होने (demand-supply mismatch) के कारण वैश्विक सप्लाई चेन पर असर पड़ा है.
ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स के प्रमुख अर्थशास्त्री एडम स्लेटर का कहना है कि हाल के महीनों में दुनिया की कई देशों की अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति व्यापक रूप से बढ़ी है.
स्लेटर ने रिपोर्ट में लिखा है कि जी 7 देशों में मुद्रास्फीति 3.5% तक पहुंच गई है, अमेरिका में कोर मुद्रास्फीति 4 % है. उन्होंने लिखा है कि 1990 के दशक की शुरुआत से ऐसा नहीं देखा गया है. स्लेटर के मुताबिक एशिया के बाहर, उभरते बाजारों में मुद्रास्फीति दोगुनी होकर लगभग 8% हो गई है.
भारत में थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index ) के रूप में मापी गई थोक मुद्रास्फीति इस साल सितंबर में दोहरे अंकों में थी.
क्यों बढ़ रही है वैश्विक मुद्रास्फीति ?
ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स (Oxford Economics) के शोधकर्ताओं के अनुसार दुनिया भर में मुद्रास्फीति में वृद्धि के पीछे मांग और आपूर्ति दोनों हैं. हालांकि, भारत, रूस, चीन, ब्राजील और कुछ अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं के मामले में बढ़ती मांग का प्रभाव अधिक दिखाई दे रहा था, क्योंकि वैश्विक महामारी में भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India) सहित कई केंद्रीय बैंकों ने मांग आधारित विकास को आगे बढ़ाने के लिए एक लूज मनी पॉलिसी (loose money policy) अपनाई थी.
ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स के अर्थशास्त्रियों ने कहा कि 2020 की शुरुआत से तेज मुद्रा आपूर्ति वृद्धि मुद्रास्फीति में उछाल का एक स्पष्ट संभावित कारण है. हमारा विश्लेषण उभरते बाजारों की मुद्रास्फीति के लिए एक स्पष्ट लिंक का सुझाव देता है, लेकिन उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के लिए कमजोर है.
इसके अलावा बढ़ोतरी का एक अन्य कारक कमोडिटी की कीमतों में वृद्धि (rise in commodity prices) है, जिसमें कच्चे तेल की कीमतें भी शामिल हैं.
अंतरराष्ट्रीय बाजार में, कच्चे तेल की कीमतें अप्रैल 2020 में 20 अमेरिकी डॉलर के निचले स्तर से बढ़कर अक्टूबर में 40 डॉलर हो गई हैं और इस साल अक्टूबर में कच्चे तेल की कीमत एक साल पहले की तुलना में दोगुनी से अधिक हो गई है.
सरकारी उधारी का दबाव