नागपुर :महाराष्ट्र की राजनीति की बात करें तो राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता अनिल देशमुख एक ऐसा नाम है, जो पिछले दो दशक में देवेन्द्र फडणवीस नीत सरकार को छोड़कर हर सरकार में मंत्री पद पर रहे हैं. बंबई उच्च न्यायालय ने सोमवार को सीबीआई को निर्देश दिया कि महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख पर मुम्बई पुलिस के पूर्व आयुक्त परमबीर सिंह द्वारा लगाये गये भ्रष्टाचार एवं कदाचार के आरोपों की प्रारंभिक जांच 15 दिन के भीतर पूरी की जाए.
अदालत का यह फैसला मंत्री के लिए बड़ा झटका साबित हुआ और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल से अनिल देशमुख ने आखिरकार इस्तीफा दे दिया. नागपुर जिले में कटोल के पास वाड्विहीरा गांव से नाता रखने वाले 70 वर्षीय देशमुख ने 1995 में बतौर निर्देलीय विधायक अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की. फिर तत्कालीन शिवसेना नीत सरकार को अपना समर्थन दिया, जिसके बदले में उन्हें राज्य में एक मंत्री बनाया गया.
उस समय शिवसेना ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई थी. वर्ष 1999 में उन्होंने शिवसेना-भाजपा सरकार से नाता तोड़ दिया और नवगठित राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) में शामिल हो गए. कटोल विधानसभा सीट से उन्होंने एक बार फिर जीत दर्ज की और 2001 में कांग्रेस-राकांपा सरकार में एक बार फिर मंत्री बने.
देशमुख को मंत्रिमंडल में बदलाव के बाद मंत्री पद से हटा दिया गया था, लेकिन 2009 में एक बार फिर वह मंत्रिमंडल में शामिल हुए और खाद्य नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता संरक्षण विभाग का कार्यभार उन्हें सौंपा गया. देशमुख को 2014 विधानसभा चुनाव में उनके ही भतीजे ने हराया, लेकिन 2019 में एक बार फिर कटोल सीट से उन्होंने चुनाव जीता.