पूर्णिया :एक तरफ जहां देशभर के सांसद और विधायकों की संपत्ति खूब बढ़ी है. वहीं, दूसरी तरफ बिहार के एमपी और एमएलए की संपत्ति में अब तक औसत 2.46 करोड़ रुपये का इजाफा आया है, लेकिन क्या आपको पता है कि पांच बार के सांसद का बेटा दुकानदार और तीन बार के मुख्यमंत्री का परिवार मजदूर है. वहीं, सीपीआई की सीट से 1995 में एमएलए रहे सरयुग मंडल का परिवार पेट पालने के लिए आज भी खेतों में खून-पसीना बहा रहा है.
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दरअसल, ये सब देखकर कुछ पल के लिए यकीन करना मुश्किल हो जाएगा, लेकिन बात बिहार के पहले दलित मुख्यमंत्री बने भोला पासवान शास्त्री की करें या फिर पांच बार सांसद रहे फनी गोपाल सेन गुप्ता की या रुपौली विधानसभा सीट से साल 1995 में सीपीआई की सीट से विधायक बने बाल किशोर मंडल जैसे चंद नेताओं के आगे, राजनीतिक मौकापरस्ती और ऐशो आराम शून्य और निरर्थक नजर आते हैं.
ईमानदारी की मिसाल फनी गोपाल
- 1905 में पूर्णिया सिटी में हुआ जन्म
- तीनों भाइयों में मझले थे फनी गोपाल
- 1929 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े
- 1932, 1940, 1944 में जेल गए
- पूर्णिया से पांच बार रहे सांसद
- प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के रहे चहेते
- 1980 में फनी सेन गुप्ता का हुआ निधन
पांच बार विधायक रहे फनी गोपाल
शहर के रजनी चौक इलाके में आज भी पूर्णिया के पहले और पांच बार सांसद रहे फनी गोपाल सेन गुप्ता के बेटे देवनाथ तथा उनका एक छोटा सा परिवार रहता है. फनी सेन गुप्ता का साथ जहां 1980 में छूट गया. वहीं, उनकी पत्नी साल 2012 में हमेशा के लिए परिवार को अलविदा कहकर चली गईं.
पांच बार के सांसद का बेटा दुकानदार
शहर के लोग सम्मान से देवनाथ को 'देवू दा' के नाम से पुकारते हैं. करीब छह दशक से 'देवू दा' दुकान चलाकर परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं. करीब 74 साल के हो चले देवू दा की शहर के बस स्टैंड के समीप मौजूद विकास बाजार स्थित छोटी सी दुकान है, जिसका सफर वह आम तौर पर ऑटो से तय करते हैं.
हालांकि, बढ़ती उम्र के बावजूद वह एक नियत दूरी पैदल भी तय करते हैं. उनका कहना है कि इससे उन्हें उनके पिता फनी सेन गुप्ता की सादगी, संघर्ष और मूल्यों की याद दिलाते हैं.
फनी गोपाल सेनगुप्ता के बेटे देवनाथ सेनगुप्ता ने कहा, '1929 में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े हैं, जिसके बाद वे 1932, 1940, 1944 में जेल गए. 1933 में उनकी शादी हो गई, लेकिन ये ऐसा पल था जब वह ज्यादातर समय जेल में रहे. शायद इसलिए उनकी नानी कहा करती थी कि उन्होंने अपनी बेटी के गले में कलसी बांधकर पानी में डुबो दिया है.'
संसद सदस्यों के रहे चहेते
फनी गोपाल सेन गुप्ता अपनी बौद्धिकता और भाषाओं पर ज्ञान के लिए पार्लियामेंट मेंबरों के चहेते बने रहे. पूर्णिया और भागलपुर से अपनी पढ़ाई करने वाले फनी गोपाल सेन गुप्ता को बांग्ला, हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी भाषाओं का ज्ञान था. वे अपनी सादगी, ईमानदारी और निश्चल स्वभाव के कारण हमेशा ही प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के चहेते रहे हैं.
सादगी और संघर्ष भरा रहा जीवन
देवू दा कहते हैं कि उनके पास आज भी पार्लियामेंट के वे नोटपैड संरक्षित हैं, जिसमें फनी गोपाल अपने खर्च का लेखा-जोखा लिखा करते थे. उस वक्त जब सत्र चलता था, तब 40 रोजाना मिलता था. वे लॉज में रहते थे और दिल्ली आना-जाना भी अपने पैसे से ही किया करते थे. हालांकि, दिल्ली में जब भी जाते थे, ज्यादातर वे अपने सबसे करीबी मित्र भोला पासवान शास्त्री के पास रुका करते थे. वे कहते हैं कि पिताजी थर्ड क्लास में सफर करते थे और साइकिल के सहारे ही उनका पूरा जीवन कटा है.
सांसद होने के बावजूद रही आर्थिक तंगी
खुद उनकी पढ़ाई आर्थिक तंगी के कारण छूट गई. पिताजी सांसद थे, लेकिन परिवार में बहुत तंगी थी, जिसके चलते पूर्णिया कॉलेज में दाखिला लेने के बावजूद भी वे पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए और 1971 में दुकान खोल ली. वे कहते हैं कि भले ही वे छोटी सी दुकान चला रहे हैं, उनके पिता के नाम के कारण आज भी लोग उन्हें बेहद सम्मान से बुलाते हैं. उनकी ईमानदारी की चर्चा आज भी जिले के लोग मिसाल के तौर पर पेश किया करते हैं.