नई दिल्ली : हरिद्वार धर्म संसद में नफरत फैलाने वाले भाषण दिए जाने के खिलाफ सशस्त्र बलों के कुछ पूर्व प्रमुखों सहित कई जानी-मानी हस्तियों द्वारा कार्रवाई की मांग किए जाने के कुछ दिनों बाद, भारतीय विदेश सेवा (IFS) के पूर्व अधिकारियों के एक समूह ने बुधवार को उन पर सरकार को 'बदनाम करने का अभियान' चलाने का आरोप लगाया. और कहा कि ऐसी निंदा सार्वभौम होनी चाहिए, न कि चुनिंदा तरीके से की जानी चाहिए.
कंवल सिब्बल (Kanwal Sibal), वीणा सीकरी (Veena Sikri), लक्ष्मी पुरी (Lakshmi Puri) समेत 32 पूर्व आईएफएस अधिकारियों के समूह ने एक खुले पत्र में कहा है कि हिंसा के सभी तरह के आह्वानों की निंदा की जानी चाहिए, चाहे उसके धार्मिक, जातीय, वैचारिक या क्षेत्रीय उत्पत्ति स्थल कुछ भी हो तथा इसकी निंदा करने में किसी भी तरह का दोहरा मापदंड और चयनात्मकता उद्देश्यों व नैतिकता पर सवाल उठाती है.
'सरकार को बदनाम करने का बहाना'
उन्होंने आरोप लगाया कि सक्रियतावादियों के एक समूह , जिनमें माओवादियों से सहानुभूति रखने वाले कई जाने माने वामपंथी शामिल हैं, के साथ कुछ पूर्व लोक सेवकों और अपने करियर में उच्च पदों पर रहे सशस्त्र बलों के सेवानिवृत्त अधिकारियों के अलावा मीडिया के कुछ हिस्से ने मौजूदा सरकार को बदनाम करने का अभियान चला रखा है. इसकी वजह ये है कि उन्हें लगता है कि सरकार देश के धर्मनिरपेक्ष लोकाचार का उल्लंघन कर रही है.
उन्होंने दावा किया कि 'हिंदुत्व विरोध' की आड़ में यह तेज़ी से 'हिंदू विरोधी' तत्व बन रहा है. उन्होंने दावा किया कि हिंदू विरोध 'धर्मनिरपेक्षता' का दिखावा करने, अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान खींचने के लिए 'नाज़ीवाद' और 'नरंसहार' जैसी शब्दावली का इस्तेमाल करने और (केंद्र की नरेंद्र) मोदी सरकार को बदनाम करने का आसान बहाना हो गया है.
सशस्त्र बलों के पांच पूर्व प्रमुखों ने लिखा था पत्र
इससे पहले, सशस्त्र बलों के पांच पूर्व प्रमुखों, नौकरशाहों समेत कई प्रतिष्ठित नागरिकों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 'नफरत फैलाने वाले भाषणों की हालिया घटनाओं' को लेकर पत्र लिखा था और उनसे उपयुक्त कदम उठाने का आग्रह किया था. पत्र में, 100 से अधिक लोगों के समूह ने हाल में उत्तराखंड के हरिद्वार में की गई मुस्लिम विरोधी टिप्पणियों का हवाला दिया था और इसकी निंदा की थी.
जानिए जवाबी पत्र में क्या