नई दिल्ली :भारत के विधि आयोग की ओर से समान नागरिक संहिता (UCC) पर सार्वजनिक और धार्मिक संगठनों से नए सुझाव आमंत्रित किए जाने के दो दिन बाद, इस मुद्दे ने एक और विवाद को जन्म दिया है. कई धार्मिक संगठनों के लोग इसके पक्ष में हैं तो कई विरोध जता रहे हैं.
ईटीवी भारत से बात करते हुए पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) डॉ. एस.वाई. कुरैशी (ex CEC Dr Quraishi) ने कहा, '21वें विधि आयोग ने यूसीसी पर विषय की समीक्षा की थी और अपनी अपील के माध्यम से 2016 में एक प्रश्नावली और 2018 में सार्वजनिक नोटिस के साथ सभी हितधारकों के विचार मांगे थे. एक विस्तृत विश्लेषण और दो साल की कड़ी मेहनत के बाद, न्यायमूर्ति बीएस चौहान 2018 में इस सरकार द्वारा नियुक्त किए गए. वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि यह न तो आवश्यक है और न ही वांछनीय है.'
उन्होंने कहा कि 'मुझे जो लगता है वह यह है कि सिद्धांत रूप में यूसीसी एक अच्छा विचार है, यहां तक कि संविधान सभा ने भी कहा कि यह वांछनीय है. लोग इस मुद्दे को हिंदू-मुस्लिम के नजरिए से देख रहे हैं जो है नहीं. मुख्य मुद्दा व्यक्तिगत कानूनों को संहिताबद्ध करना है ताकि भेदभावपूर्ण प्रथाओं को समाप्त किया जा सके, विशेष रूप से महिलाओं के खिलाफ. लेकिन इस मुद्दे की टाइमिंग दिलचस्प है क्योंकि चुनाव ज्यादा दूर नहीं हैं.'
उन्होंने कहा कि, 'आइए यह न मानें कि यह गलत है. मुसलमानों को इसका विरोध नहीं करना चाहिए क्योंकि यह एक विकास है. सरकार को पहले एक मसौदा तैयार करने दीजिए, तभी हम कह पाएंगे कि यह अच्छा है या बुरा.'
2014 में जब से मोदी सरकार केंद्र में आई है तब से अनुच्छेद 370 की समाप्ति, राम मंदिर और यूसीसी जैसे मुद्दे उनके चुनावी घोषणापत्र में सबसे ऊपर थे और पहले दो काम हो चुके हैं.